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Speech on Mahatma Gandhi in Hindi – स्टूडेंट्स के लिए 100, 200 और 300 शब्दों में

mahatma gandhi birthday speech in hindi

  • Updated on  
  • सितम्बर 16, 2023

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गांधी जयंती 2 अक्टूबर को मनाई जाती है, क्योंकि मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। स्टूडेंट्स के लिए गांधीजी के संदेश महत्वपूर्ण माने जाते हैं और उनके विचार स्टूडेंट्स को अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए हर वर्ष 2 अक्टूबर के दिन पूरे देश में जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और इनमें लोगों द्वारा गांधी जी के बारे में बताया जाता है, इसलिए इस ब्लाॅग Speech on Mahatma Gandhi in Hindi में आप 100, 200 और 300 शब्दों में महात्मा गांधी पर भाषण ।

This Blog Includes:

महात्मा गांधी के बारे में, महात्मा गांधी पर स्पीच कैसे तैयार करें, महात्मा गांधी पर स्पीच 100 शब्दों में, महात्मा गांधी पर स्पीच 200 शब्दों में, स्पीच की शुरुआत में, स्पीच में क्या बोलें, स्पीच के अंत में, महात्मा गांधी से जुड़े रोचक तथ्य, गांधी जयंती कब मनाई जाती है.

Speech on Mahatma Gandhi in Hindi शुरू करने से पहले हमें महात्मा गांधी के बारे में जानना जरूरी है। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 02 अक्टूबर 1869 गुजरात के पोरबंदर गांव में हुआ था। गांधीजी हमेशा अहिंसा के रास्ते पर चलते थे। 1930 दांडी यात्रा करके नमक सत्याग्रह किया था। गांधीजी ने वकालत की पढ़ाई लंदन से पूरी की थी। लोग प्यार से उन्हें बापू कहते हैं और बापू हिंसा के खिलाफ थे। बापू हमेशा साधारण सा जीवन जीते थे।

यह भी पढ़ें- जानिए कैसे तैयार करें हिंदी दिवस पर स्पीच

भारत ही नहीं बल्कि किसी भी देश में कई आयोजन होते रहते हैं और इन आयोजनों में स्पीच का काफी महत्व होता है। अगर आप स्पीच देते हैं तो यह आपको औरों से अलग बनाता है। भारत में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती है और इस दिन जगह-जगह कार्यक्रमों में स्पीच (Speech on Mahatma Gandhi in Hindi) देने के लिए ये स्टेप्स अपनाएंः

  • महात्मा गांधी पर स्पीच देने से पहले उनके बारे में सही से जानकारी करना जरूरी है।
  • स्पीच लिखते समय आपको शब्दों का सही चयन करना होगा।
  • सही से स्पीच तैयार करने और समय का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। 
  • अपनी स्पीच में भाषा के महत्व को देखना है कि आप जहां बोल रहे हैं, वहां हिंदी सही रहेगी या इंग्लिश। 
  • स्पीच की शुरुआत महात्मा गांधी से जुड़े तथ्यों या फिर उनकी शिक्षा या अन्य कोई बड़ी कामयाबी से कर सकते हैं। 
  • स्पीच में महात्मा गांधी का महत्व बताते हुए उनके कुछ बड़े आंदोलन का उल्लेख कर सकते हैं।
  • स्पीच तैयार करते समय यह जानना जरूरी है कि लोगों पर इसका क्या असर रहेगा और यह हमारे लिए कैसे फायदेमंद रहेगी।
  • स्पीच में विषय से भटकना नहीं चाहिए, अगर महात्मा गांधी पर बोल रहे हैं तो पूरे समय में उनके बारे में ही बात होनी चाहिए।

यह भी पढ़ें- जानिये कैसे तैयार करें इंजीनियर्स दिवस पर 100, 200, 300 शब्दों में स्पीच

100 शब्दों में Speech on Mahatma Gandhi in Hindi इस प्रकार हैः

महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। इसमें कोई शक नहीं कि लोग उन्हें राष्ट्रपिता कहते हैं। गरीबों, पीड़ितों और निचली जाति के लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति बिल्कुल अद्वितीय है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गाँधी के पिता कठियावाड़ के छोटे से रियासत (पोरबंदर) के दिवान थे। 13 वर्ष की आयु में गाँधी जी का विवाह कस्तूरबा से करवा दिया गया था। गांधी जी की शिक्षा का विचार मुख्य रूप से चरित्र निर्माण, नैतिक मूल्यों, नैतिकता और मुक्त शिक्षा पर केंद्रित था।

200 शब्दों में Speech on Mahatma Gandhi in Hindi इस प्रकार हैः

देश में आंदोलनों की जब भी बात होती है तो महात्मा गांधी को सबसे ऊपर रखा गया है। 2 अक्टूबर को हम सब इसलिए एकत्र होते हैं कि उन्हें उनकी जयंती पर नमन करें और उनके योगदान को जानें। महात्मा गांधी के बारे में हर भारतवासी को जानना चाहिए। जलियांवाला बाग नरसंहार से गांधी जी को यह ज्ञात हो गया था कि ब्रिटिश सरकार से न्याय की अपेक्षा करना व्यर्थ है, इसीलिए उन्होंने सितंबर 1920 से फरवरी 1922 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया। यह आंदोलन काफी सफल रहा और इससे ब्रिटिश सरकार को भारी झटका लगा।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गांधी के पिता कठियावाड़ के छोटे से रियासत (पोरबंदर) के दिवान थे। 13 वर्ष की आयु में गांधी जी का विवाह कस्तूरबा से करा दिया गया था। 1930 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन चलाया और 1942 में उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आह्वान किया। अपने इन आन्दोलन के दौरान वह कई बार जेल गए और गांधी जी से अन्य लोगों के दृढ़ निश्चय से हमारा भारत 1947 में आजाद हुआ था।

महात्मा गांधी पर स्पीच 300 शब्दों में

300 शब्दों में Speech on Mahatma Gandhi in Hindi इस प्रकार हैः

गांधी जयंती या फिर महात्मा गांधी के ऊपर स्पीच की शुरुआत में सबसे पहले जहां स्पीच दे रहे हैं वहां के वरिष्ठ लोगों का संबोधन करना है और फिर महात्मा गांधी और गांधी जयंती के बारे में थोड़ा बताना है। जैसे- भारत की आजादी से पहले और बाद तक महात्मा गांधी का योगदान या फिर उनके आंदोलन आदि। गांधी जी के परिवार के बारे में भी बता सकते हैं। 

गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। 2 अक्टूबर को हम उन्हीं की याद में गांधी जयंती मनाते हैं। गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। गांधी जी के पिता का नाम करमचंद उत्तमचंद गांधी था और वह राजकोट के दीवान रह चुके थे। गांधी जी की माता का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी ने पोरबंदर में पढ़ाई की थी और फिर माध्यमिक परीक्षा के लिए राजकोट गए थे। वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए। बाद में उन्हें कानूनी केस में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा और वहां उन्होंने रंग के चलते हो रहे भेदभाव को महसूस किया और उसके खिलाफ अपनी आवाज़ उठाने की सोची। 

वहां से इंडिया आने के बाद उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाह को जवाब देने के लिए और अपने समाज को एकजुट करने के बारे में सोचा। इसी दौरान उन्होंने कई आंदोलन किए, जिसके लिए वे कई बार जेल भी जा चुके थे। बिहार के चम्पारण में किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई। यह आंदोलन उन्होंने जमींदार और अंग्रेज़ों के खिलाफ किया था। 1930 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन चलाया और 1942 में उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आह्वान किया। अपने इन आंदोलन के दौरान वह कई बार जेल गए थे।

महात्मा गांधी ने अपनी छाप वैश्विक पटल छोड़ी है और इसीलिए प्यार से लोग उन्हें बापू बुलाते हैं। महात्मा गांधी को 2 अक्टूबर के दिन यानी गांधी जयंती पर नमन किया जाता है और देश के लिए किए उनके कार्यों को ध्यान दिलाया जाता है। इन शब्दों के साथ मैं अपने भाषण को विराम देता हूं। धन्यवाद।

महात्मा गांधी से जुड़े रोचक तथ्य इस प्रकार हैंः

  • एक छोटे बच्चे के रूप में गांधी बहुत शर्मीले थे और किसी से बात करने से बचने के लिए स्कूल खत्म होते ही घर भाग जाते थे।
  • संयुक्त राष्ट्र ने 2007 में गांधी के जन्मदिन, 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया।
  • गांधीजी को 5 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था लेकिन उन्हें कभी पुरस्कार नहीं मिला।
  • टाइम मैगजीन ने 1930 में महात्मा गांधी को पर्सन ऑफ द ईयर नामित किया।
  • इतिहास की किताबों के अनुसार गांधीजी को महात्मा की उपाधि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने दी थी।
  • ब्रह्मचर्य का व्रत लेने से पहले, महात्मा गांधी के चार बेटे थे।
  • मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या पूर्व बिड़ला हाउस के बगीचे में की गई थी।
  • गांधी जी और प्रसिद्ध लेखक लियो टॉल्स्टॉय पत्रों के माध्यम से एक-दूसरे से बातचीत करते थे।
  • महात्मा गांधी की मातृभाषा गुजराती थी।
  • गांधी जी ने सत्याग्रह संघर्ष में अपने सहयोगियों के लिए दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग से 21 मील दूर 1100 एकड़ की जगह पर एक छोटी कॉलोनी, टॉल्स्टॉय फार्म की स्थापना की।
  • 1930 में उन्होंने दांडी नमक मार्च का नेतृत्व किया और 1942 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया।

हर वर्ष 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती है। गांधी जयंती को पूरे भारत में प्रार्थना सेवाओं और श्रद्धांजलि के साथ मनाया जाता है, जिसमें नई दिल्ली में गांधी के स्मारक, राजघाट, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था भी शामिल है।

संबंधित ब्लाॅग

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है।

महात्मा गांधी का मुख्य नारा भारत छोड़ो, करो या मरो है।

महात्मा गांधी की बेटी नहीं थी, उनके चार बेटे थे।

महात्मा गांधी का विवाह कस्तूरबा से हुआ था।

आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको Speech on Mahatma Gandhi in Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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स्टडी अब्राॅड प्लेटफाॅर्म Leverage Edu में सीखने की प्रक्रिया जारी है। शुभम को 4 वर्षों का अनुभव है, वह पूर्व में Dainik Jagran और News Nib News Website में कंटेंट डेवलपर रहे चुके हैं। न्यूज, एग्जाम अपडेट्स और UPSC में करंट अफेयर्स लगातार लिख रहे हैं। पत्रकारिता में स्नातक करने के बाद शुभम ने एजुकेशन के अलावा स्पोर्ट्स और बिजनेस बीट पर भी काम किया है। उन्हें लिखने और रिसर्च बेस्ड स्टोरीज पर फोकस करने के अलावा क्रिकेट खेलना और देखना पसंद है।

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महात्मा गांधी पर भाषण

स्वतंत्रता दिवस 2022 के अवसर पर भारत में आजादी के 76 साल की वर्षगांठ मनाई जा रही है। 15 अगस्त 1947 की नई सुबह देखने के लिए मंगल पांडेय से लेकर भगत सिंह तक कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए।.

इस वर्ष 2 अक्टूबर 2022 को महात्मा गांधी की 153वीं जयंती मनाई जा रही है। स्वतंत्रता दिवस 2022 के अवसर पर भारत में आजादी के 76 साल की वर्षगांठ मनाई गई। 15 अगस्त 1947 की नई सुबह देखने के लिए मंगल पांडेय से लेकर भगत सिंह तक कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। स्वतंत्रता सेनानियों में महात्मा गांधी ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अहिंसा के मार्ग पर चलकर गांधी जी के आजाद भारत का सपना साकार किया गया। महात्मा गांधी के आंदोलनों में चंपारण आंदोलन, खेड़ा आंदोलन, खिलाफत आंदोलन, असहयोग आंदोलन, नमक मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन ने लोगों को आजादी के लिए प्रेरित किया।

लोग महात्मा गांधी जी के आन्दोलनों में जुड़ते गए और आजादी की राह को आसान बनाते गए। अंत में 15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश राज से आजाद हुआ। स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में महात्मा गांधी पर भाषण लिखने की तैयारी कर रहे हैं तो करियर इंडिया हिंदी आपके लिए सबसे बेस्ट महात्मा गांधी पर भाषण लेकर आया है, जिसकी मदद से आप आसानी से महात्मा गांधी पर भाषण लिख सकते हैं।

महात्मा गांधी पर भाषण

महात्मा गांधी पर भाषण अगर आज गांधीजी जिंदा होते तो 2 अक्टूबर 2022 को 153 साल के हो जाते, लेकिन आज गांधी जी हम सबके मन में जिंदा है। इस साल 2 अक्टूबर 2022 को महात्मा गांधी की 153वीं जयंती मनाई जाएगी। मेरे लिए हर दिन के अचरण में गांधीजी के जीवनदर्शन को उतारना ही सही मायनों में गांधीवादी होना है और सही मायनों में उनके प्रति सम्मान व्यक्त करना है। गांधी जी ने भारत की आजादी के लिए अपना पूरा जीवन देश को समर्पित किया। देश में उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया और उनके नाम में महात्मा शब्द जोड़ा गया। जयंती मनाना महज एक रस्म अदायगीभर होती है। महत्वपूर्ण यह है कि क्या हमारे जीवन में उस जीवन का कोई अंश या प्रभाव है, जिसकी हम जयंती मना रहे हैं? अगर ये होता है तो वह फिर हमारी जिंदगी एक नई राह पर चलती है।

किसी के प्रति सम्मान का सबसे सही तरीका यही है, इसलिए मुझे गांधी जयंती मनाने या उनके भव्य कार्यक्रम में जाने से ज्यादा उनके विचारों को जीवन में उतरना है। भारत जिस तरह की समरस्ता के लिए सदियों से जाना जाता रहा है और जिस तरह के भारत को दुनिया जानती, मानती व सम्मान करती है, उस समरस भारत की तो अब छवि ही ध्वस्त की जा रही है। एक मुल्क के लिए और एक समाज के लिए वह आईना उसकी सूरत को दिखाने वाला आईना नहीं होता बल्कि उसकी आत्मा को दर्शाने वाला आईना होता है। सूरत को हम चाहे जितनी साफ सुथरी बनाकर रखें, उसे सुंदर गढ़ लें, लेकिन जो आईना हमारी आत्मा को दिखाता है, उसे हमारी सूरत से कुछ लेना देना नहीं होता। इसलिए गांधीजी के विचारों का सम्मान करें, यही हमें गांधीवादी बनता है।

जब तक कि हम गांधीजी के जीवनदर्शन को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में नहीं उतारते, तक तब उनके सपनों का भारत का निर्माण नहीं होगा। मुझे चिंता इस बात की है कि गांधीजी को उत्सव में तब्दील करने के बाद भी मुल्क के आईने में जो हमारी आत्मा की तस्वीर नजर आयेगी, क्या उसे हम खुद स्वीकार कर पायेंगे? यह गांधी की छवि पूजा का दौर है, उनका दिनरात खूब नाम लिया जा रहा है। लेकिन अपने जीवन और अपनी सोच में उन्हें बिल्कुल जगह नहीं दी जा रही। इसका बहुत बुरा असर पड़ा रहा है। गांधी के नाम पर जो बड़े बड़े कार्यक्रम करने की होड़ लगी हुई, वह दरअसल जनता को कन्फ्यूज करने के लिए है। जनता को यह बताने या दर्शाने की कोशिश की जा रही है कि सरकार गांधीजी के बताये हुए मार्ग पर चल रही है और इसी के बल पर उससे अपने लिए समर्थन मांगा जाता है।

जब लोग नासमझी में किसी को समर्थन देते हैं तो ऐसे लोग गर्व से यह कहते हें, उन्हें जनता ने चुना है। यह गांधी दर्शन के साथ एक राजनीतिक साजिश है। लेकिन मैं समझता हूं, जो खरा है, वो कभी खत्म नहीं होगा। इतिहास गवाह है जो खरा है, उसे थोड़े समय तक के लिए भले बरगला दिया जाए लेकिन कोई भी ताकत खरे प्रभाव को कभी भी खत्म नहीं कर सकती। अगर गांधीजी को इस किस्म से बरगलाना आसान होता तो अब तक दुनिया में गांधीजी का प्रभाव खत्म हो गया होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हर गुजरते दिन के साथ गांधीजी पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण और पहले से ज्यादा दुनिया की जरूरत बन गए हैं, जो लोग गांधीजी की मूर्ति की पूजा के बहाने अपने मंसूबो को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें मालूम होना चाहिए कि नकली भक्ति हमेशा के लिए कभी नहीं टिकती, वह जल्दी बेनकाब हो जाती है।

गांधीजी के साथ कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ हुआ या हो रहा है। जो लोग राम के भक्त कहलाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम याद नहीं आता जिसके कारण उन्हें भगवान का दर्जा मिला। वह तो बस राम का नाम लेकर अपनी राजनीति को चमकाना चाहते हैं। इसी तरह गांधी के साथ हो रहा है। इस दौर के राजनेता आईकोनिक पूजा का दिखावा करते हैं, लेकिन जिन्हें अपना आदर्श बताते हैं, कभी उनके कदमों पर चलने की कोशिश नहीं करते। क्योंकि यह उन्हें बहुत कठिन लगता है और यह भी सही है कि उनकी फितरत भी अलग है। आज के दौर में राजनीति, आईकोनिक पूजा के बहाने अपने उद्देश्यों को गाठने की कोशिश करती है। इस क्रम में भले उसे अपने ही आर्दश की छवि के साथ नाइंसाफी करनी पड़े।

बापू के साथ भी यही कोशिश हो रही है। लेकिन जनता अब ऐसी नहीं है कि राजनेताओं के बरगलाने पर वह लंबे समय तक बरगलायी जाती रहे। अब जनता का भ्रमित होना आसान नहीं है। हां, थोड़े बहुत लोग भ्रमित हो भी रहे हैं तो उसकी वजह यह है कि आज की दुनिया में ऐसे लोग दिखते ही नहीं जिनकी तुलना गांधीजी से की जा सके या जिन्हें आज के दौर का गांधी कहा जा सके। किसी भी महान आत्मा से दर्शाया गया प्रेम हमारे आचरण और व्यवहार में तभी दिखता है जब वह सच्चा या सचमुच का प्रेम हो। अभी जो बापू के प्रति प्रेम दिखता है, जो भक्ति दिखती है, वह एक छलावा है। बापू के नाम पर अपने ही एजेंडा को सेट करने का षडयंत्र है, एक तरह से बापू का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस सबसे देश को कोई फायदा नहीं होगा, देश को फायदा तब होगा जब हम उनके बताए मार्ग पर चलेंगे।

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महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही सत्य और अहिंसा का स्मरण होता है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने किसी दूसरे को सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया। जिन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोङा। महात्मा गाँधी महान व्यक्तित्व के राजनैतिक नेता थे। इन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। गाँधी जी सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे, और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्णं जीवन में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी से संबंधित तथ्य:

पूरा नाम – मोहनदास करमचन्द गाँधी अन्य नाम – बापू, महात्मा, राष्ट्र-पिता जन्म-तिथि व स्थान – 2 अक्टूबर 1869, पोरबन्दर (गुजरात) माता-पिता का नाम – पुतलीबाई, करमचंद गाँधी पत्नी – कस्तूरबा गाँधी शिक्षा – 1887 मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की,

  • विद्यालय – बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज
  • इंग्लैण्ड यात्रा – 1888-91, बैरिस्टर की पढाई, लंदन युनिवर्सिटी

बच्चों के नाम (संतान) – हरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास प्रसिद्धि का कारण – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम राजनैतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस स्मारक – राजघाट, बिरला हाऊस (दिल्ली) मृत्यु – 30 जनवरी 1948, नई दिल्ली मृत्यु का कारण – हत्या

महात्मा गाँधी की जीवनी (जीवन-परिचय)

महात्मा गाँधी (2 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948)

जन्म, जन्म-स्थान व प्रारम्भिक जीवन

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर, गुजरात में करमचंद गाँधी के घर पर हुआ था। यह स्थान (पोरबंदर) पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य का एक तटीय शहर है। ये अपनी माता पुतलीबाई के अन्तिम संतान थे, जो करमचंद गाँधी की चौथी पत्नी थी। करमचंद गाँधी की पहली तीन पत्नियों की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान इनके पिता पहले पोरबंदर और बाद में क्रमशः राजकोट व बांकानेर के दीवान रहें।

महात्मा गाँधी जी का असली नाम मोहनदास था और इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी। इसी कारण इनका नाम पूरा नाम मोहन दास करमचंद गाँधी पङा। ये अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे। इनकी माता पुतलीबाई, बहुत ही धार्मिक महिला थी, जिस का गाँधी जी के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पङा। जिसे उन्होंने स्वंय पुणे की यरवदा जेल में अपने मित्र और सचिव महादेव देसाई को कहा था, ‘‘तुम्हें मेरे अंदर जो भी शुद्धता दिखाई देती हो वह मैंने अपने पिता से नहीं, अपनी माता से पाई है…उन्होंने मेरे मन पर जो एकमात्र प्रभाव छोड़ा वह साधुता का प्रभाव था।’’

गाँधी जी का पालन-पोषण वैष्णव मत को मानने वाले परिवार में हुआ, और उनके जीवन पर भारतीय जैन धर्म का गहरा प्रभाव पङा। यही कारण है कि वे सत्य और अहिंसा में बहुत विश्वास करते थे और उनका अनुसरण अपने पूरे जीवन काल में किया।

गाँधी जी का विवाह (शादी)/ गाँधी जी का वैवाहिक जीवन

गाँधी जी की शादी सन् 1883, मई में 13 वर्ष की आयु पूरी करते ही 14 साल की कस्तूरबा माखन जी से हुई। गाँधी जी ने इनका नाम छोटा करके कस्तूरबा रख दिया और बाद में लोग उन्हें प्यार से बा कहने लगे। कस्तूरबा गाँधी जी के पिता एक धनी व्यवसायी थे। कस्तूरबा गाँधी शादी से पहले तक अनपढ़ थीं। शादी के बाद गाँधीजी ने उन्हें लिखना एवं पढ़ना सिखाया। ये एक आदर्श पत्नी थी और गाँधी जी के हर कार्य में दृढता से उनके साथ खङी रही। इन्होंने गाँधी जी के सभी कार्यों में उनका साथ दिया।

1885 में गाँधी जी जब 15 साल के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया। लेकिन वह कुछ ही समय जीवित रहीं। इसी वर्ष इनके पिताजी करमचंद गाँधी की भी मृत्यु हो गयी। गाँधी जी के 4 सन्तानें थी और सभी पुत्र थे:- हरीलाल गाँधी (1888), मणिलाल गाँधी (1892), रामदास गाँधी (1897) और देवदास गाँधी (1900)।

गाँधी जी की शिक्षा- दीक्षा

प्रारम्भिक शिक्षा

गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी। पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। इनके पिता की बदली राजकोट होने के कारण गाँधी जी की आगे की शिक्षा राजकोट में हुई। गाँधी जी अपने विद्यार्थी जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्तर के विद्यार्थी नहीं थे। इनकी पढाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी। हालांकि गाँधी जी एक एक औसत दर्जें के विद्यार्थी रहे, किन्तु किसी किसी प्रतियोगिता और खेल में उन्होंने पुरुस्कार और छात्रवृतियॉ भी जीती। 21 जनवरी 1879 में राजकोट के एक स्थानीय स्कूल में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने अंकगणित, इतिहास और गुजराती भाषा का अध्यन किया।

साल 1887 में जैसे-तैसे उन्होंने राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिये भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया। घर से दूर रहने के कारण वे पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाये और अस्वस्थ होकर पोरबंदर वापस लौट आये। यदि आगे की पढ़ाई का निर्णय गाँधी जी पर छोड़ा जाता तो वह डॉक्टरी की पढ़ाई करके डॉक्टर बनना चाहते थे, किन्तु उन्हें घर से इसकी अनुमति नहीं मिली।

इंग्लैण्ड में उच्च स्तर की पढाई

गाँधी जी के पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार के एक करीबी मित्र भावजी दवे ने उन्हें वकालत करने की सलाह दी और कहा कि बैरिस्टर की पढ़ाई करने के बाद उन्हें अपने पिता का उत्तराधिकारी होने के कारण उनका दीवानी का पद मिल जायेगा।

उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के कुछ सदस्यों ने उनके विदेश जाने के फैसले का विरोध किया, किन्तु गाँधी जी ने अपनी माँ से वादा किया कि वे शाकाहारी भोजन करेगें। इस प्रकार अपनी माँ को आश्वस्त करने के बाद उन्हें इंग्लैण्ड जाने की आज्ञा मिली।

4 सितम्बर 1888 को गाँधी जी इंग्लैण्ड के लिये रवाना हुये। यहाँ आने के बाद इन्होंने पढ़ाई को गम्भीरता से लिया और मन लगाकर अध्ययन करने लगे। हालांकि, इंग्लैण्ड में गाँधी जी का शुरुआती जीवन परेशानियों से भरा हुआ था। उन्हें अपने खान-पान और पहनावे के कारण कई बार शर्मिदा भी होना पड़ा। किन्तु उन्होंने हर एक परिस्थिति में अपनी माँ को दिये वचन का पालन किया।

बाद में इन्होंने लंदन शाकाहारी समाज (लंदन वेजीटेरियन सोसायटी) की सदस्यता ग्रहण की और इसके कार्यकारी सदस्य बन गये। यहाँ इनकी मुलाकात थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ लोगों से हुई जिन्होंने गाँधी जी को भगवत् गीता पढ़ने को दी। गाँधी जी लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के सम्मेलनों में भाग लेने लगे और उसकी पत्रिका में लेख लिखने लगे। यहाँ तीन वर्षों (1888-1891) तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और 1891 में ये भारत लौट आये।

गाँधी जी का 1891-1893 तक का समय

1891 में जब गाँधी जी भारत लौटकर आये तो उन्हें अपनी माँ की मृत्यु का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि वकालत एक स्थिर व्यवसायी जीवन का आधार नहीं है। गाँधी जी ने बंबई जाकर वकालत का अभ्यास किया किन्तु स्वंय को स्थापित नहीं कर पाये और वापस राजकोट आ गये। यहाँ इन्होंने लागों की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरु कर दिया। एक ब्रिटिश अधिकारी को नाराज कर देने के कारण इनका यह काम भी बन्द हो गया।

गाँधी जी की अफ्रीका यात्रा

एक वर्ष के कानून के असफल अभ्यास के बाद, गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के व्यापारी दादा अब्दुला का कानूनी सलाहकार बनने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 1883 में गाँधी जी ने अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान किया। इस यात्रा और वहाँ के अनुभवों ने गाँधी जी के जीवन को एक महत्वपूर्ण मोङ दिया। इस यात्रा के दौरान गाँधी जी को भारतियों के साथ हो रहें भेदभाव को देखा।

ऐसी कुछ घटनाऐं उनके साथ घटित हुई जिससे उन्हें भारतियों और अश्वेतों के साथ हो रहे अत्याचारों का अनुभव हुआ जैसे: 31 मई 1883 को प्रिटोरिया जाने के दौरान प्रथम श्रेणी की टिकट के बावजूद उन्हें एक श्वेत अधिकारी ने गाडी से धक्का दे दिया और उन्होंने ठिठुरते हुये रात बिताई क्योंकि वे किसी से पुनः अपमानित होने के डर से कुछ पूछ नहीं सकते थे, एक अन्य घटना में एक घोङा चालक ने उन्हें पीटा क्योंकि उन्होंने एक श्वेत अंग्रेज को सीट देकर पायदान पर बैठकर यात्रा करने से इंकार कर दिया था, यूरोपियों के लिये सुरक्षित होटलों पर जाने से रोक आदि कुछ ऐसी घटनाऐं थी जिन्होंने गाँधी जी के जीवन का रुख ही बदल दिया।

नटाल (अफ्रीका) में भारतीय व्यापारियों और श्रमिकों के लिये यह अपमान आम बात थी और गाँधी जी के लिये एक नया अनुभव। यहीं से गाँधी जी के जीवन में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। गाँधी जी ने सोचा कि यहाँ से भारत वापस लौटना कायरता होगी अतः वहीं रह कर इस अन्याय का विरोध करने का निश्चय किया। इस संकल्प के बाद वे अगले 20 वर्षों (1893-1894) तक दक्षिण अफ्रीका में ही रहें और भारतियों के अधिकारों और सम्मान के लिये संघर्ष किया।

दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष का प्रथम चरण (1884-1904) –

  • संघर्ष के इस प्रथम चरण के दौरान गाँधी जी की राजनैतिक गतिविधियाँ नरम रही। इस दौरान उन्होंने केवल सरकार को अपनी समस्याओं और कार्यों से संबंधित याचिकाएँ भेजते थे।
  • भारतियों को एक सूत्र में बाँधने के लिये 22 अगस्त 1894 में “नेटाल भारतीय काग्रेंस का” गठन किया।
  • “इण्डियन ओपिनियन” नामक अखबार के प्रकाशन की प्रक्रिया शुरु की।
  • इस संघर्ष को व्यापारियों और वकीलों के आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

संघर्ष का दूसरा चरण –

  • अफ्रीका में संघर्ष के दूसरे चरण की शुरुआत 1906 में हुई।
  • इस समय उपनिवेशों की राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन हो चुका था, तो गाँधी जी ने नये स्तर से आन्दोलन को प्रारम्भ किया। यहीं से मूल गाँधीवादी प्राणाली की शुरुआत मानी जाती है।
  • 30 मई 1910 में जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।
  • काग्रेंस के कार्यकर्ताओं को अहिंसा और सत्याग्रह का प्रशिक्षण।

महात्मा गाँधी का भारत आगमन

1915 में 46 वर्ष की उम्र में गाँधी जी भारत लौट आये, और भारत की स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन किया। गोपाल कृष्ण गोखले (गाँधी जी के राजनीतिक गुरु) की सलाह पर गाँधी जी नें एक वर्ष शान्तिपूर्ण बिना किसी आन्दोलन के व्यतीत किया। इस समय में उन्होंने भारत की वास्तविक स्थिति से रूबरू होने के लिये पूरे भारत का भ्रमण किया। 1916 में गाँधी जी नें अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। फरवरी 1916 में गाँधी जी ने पहली बार बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में मंच पर भाषण दिया। जिसकी चर्चा पूरे भारत में हुई।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका

चम्पारण और खेडा आन्दोलन (1917-1918)

साल 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में रहने वाले किसानों के हक के लिये गाँधी जी ने आन्दोलन किया। यह गाँधी जी का भारत में प्रथम सक्रिय आन्दोलन था, जिसनें गाँधी जी को पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। इस आन्दोलन में उन्होंने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और इस प्रयोग में प्रत्याशित सफलता भी अर्जित की।

19 वीं शताब्दी के अन्त में गुजरात के खेड़ा जिले के किसान अकाल पड़ने के कारण असहाय हो गये और उस समय उपभोग की वस्तुओं के भी दाम बहुत बढ़ गये थे। ऐसे में किसान करों का भुगतान करने में बिल्कुल असमर्थ थे। इस मामले को गाँधी जी ने अपने हाथ में लिया और सर्वेंट ऑफ इण्डिया सोसायटी के सदस्यों के साथ पूरी जाँच-पड़ताल के बाद अंग्रेज सरकार से बात की और कहा कि जो किसान लगान देने की स्थिति में है वे स्वतः ही दे देंगे बशर्तें सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दें। ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों का लगान माफ कर दिया।

1918 में अहमदाबाद मिल मजदूरों के हक के लिये भूख हङताल

1918 में अहमदाबाद के मिल मालिक कीमत बढने के बाद भी 1917 से दिये जाने वाले बोनस को कम बंद कर करना चाहते थे। मजदूरों ने माँग की बोनस के स्थान पर मजदूरी में 35% की वृद्धि की जाये, जबकि मिल मालिक 20% से अधिक वृद्धि करना नहीं चाहते थे। गाँधी जी ने इस मामले को सौंपने की माँग की। किन्तु मिल मालिकों ने वादा खिलाफी करते हुये 20% वृद्धि की। जिसके खिलाफ गाँधी जी नें पहली बार भूख हङताल की। यह इस हङताल की सबसे खास बात थी। भूख हङताल के कारण मिल मालिकों को मजदूरों की माँग माननी पङी।

इन आन्दोलनों ने गँधी जी को जनप्रिय नेता तथा भारतीय राजनीति के प्रमुख स्तम्भ के रुप में स्थापित कर दिया।

खिलाफत आन्दोलन (1919-1924)

तुर्की के खलीफा के पद की दोबारा स्थापना करने के लिये देश भर में मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। यह एक राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था, जो अंग्रेजों पर दबाव डालने के लिये चलाया गया था। गाँधी जी ने इस आन्दोलन का समर्थन किया। इस आन्दोलन का समर्थन करने का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता आन्दोलन में मुसलिमों का सहयोग प्राप्त करना था।

असहयोग आन्दोलन (1919-1920)

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान प्रेस पर लगे प्रतिबंधों और बिना जाँच के गिरफ्तारी वे आदेश को सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने इन कडे नियमों को जारी रखा। जिसे रोलेट एक्ट के नाम से जाना गया। जिसका पूरे भारत में व्यापक स्तर पर विरोध हुआ। उस विरोधी आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन का नाम दिया गया। असहयोग आन्दोलन के जन्म का मुख्य कारण रोलट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (1919) था।

गाँघी जी अध्यक्षता में 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 को देश व्यापी हङताल का आयोजन किया गया। चारों तरफ देखते ही देखते सभी सरकारी कार्य ठप्प हो गये। अंग्रेज अधिकारी इस असहयोग के हथियार के आगे बेवस हो गये। 1920 में गाँधी जी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और इस आन्दोलन में भाग लेने के लिये भारतीय जनमानस को प्रेरित किया। गाँधी जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रत्येक भारतीय ने इसमें बढ-चढ कर भाग लिया।

इस आन्दोलन को और अधिक प्रभावी करने के लिये और हिन्दू- मुसलिम एकता को मजबूती देने के उद्देश्य से गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन से जोङ दिया।

सरकारी आकडों के अनुसार साल 1921 में 396 हडतालें आयोजित की गयी जिसमें 6 लाख श्रमिकों ने भाग लिया था और इस दौरान लगभग 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कालेजों में जाना बन्द कर दिया, वकीलों ने वकालात करने से मना कर दिया और श्रमिक वर्ग हङताल पर चला गया। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय नागरिक ने अपने अपने ढंग से गाँधी जी के इस आन्दोलन को सफल बनाने में सहयोग किया। 1857 की क्रान्ति के बाद यह सबसे बङा आन्दोलन था जिसने भारत में ब्रिटिश शासन के अस्तित्व को खतरें में डाल दिया था।

चौरी-चौरा काण्ड (1922)

1922 तक आते आते यह देश का सबसे बङा आन्दोलन बन गया था। एक हङताल की शान्तिपूर्ण विरोध रैली के दौरान यह अचानक हिंसात्मक रुप में परिणित हो गया। विरोध रैली के दौरान पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करके जेल में डालने से भीङ आक्रोशित हो गयी। और किसानों के एक समूह ने फरवरी 1922 में चौरी-चौरा नामक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। इस घटना में कई निहत्थे पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी।

इस घटना से गाँधी जी बहुत आहत हुये और उन्होंने इस आन्दोलन को वापस ले लिया। गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, “आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”

सविनय अवज्ञा आन्दोलन (12 मार्च 1930)

इस आनदोलन का उद्देश्य पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना था। गाँधी जी और अन्य अग्रणी नेताओं को अंग्रेजों के इरादों पर शक होने लगा था कि वे अपनी औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की घोषणा को पूरी करेगें भी या नहीं। गाँधी जी ने अपनी इसी माँग का दबाव अंग्रेजी सरकार पर डालने के लिये 6 अप्रैल 1930 को एक और आन्दोलन का नेतृत्व किया जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

इसे दांङी मार्च या नमक कानून भी कहा जाता है। यह दांङी मार्च गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से निकाली। इस आन्दोलन का उद्देश्य सामूहिक रुप से कुछ विशिष्ट गैर-कानूनी कार्यों को करके सरकार को झुकाना था। इस आन्दोलन की प्रबलता को देखते हुये सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिये भेजा। गाँधी जी ने यह समझौता स्वीकार कर लिया और आन्दोलन वापस ले लिया।

भारत छोडो आन्दोलन (अगस्त 1942)

क्रिप्श मिशन की विफलता के बाद गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना तीसरा बङा आन्दोलन छेङने का निर्णय लिया। इस आन्दोलन का उद्देश्य तुरन्त स्वतंत्रता प्राप्त करना था। 8 अगस्त 1942 काग्रेंस के बम्बई अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोङों का नारा दिया गया और 9 अगस्त 1942 को गाँधी जी के कहने पर पूरा देश आन्दोलन में शामिल हो गया। ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन के खिलाफ काफी सख्त रवैया अपनाया। इस आन्दोलन को दबाने में सरकार को एक वर्ष से अधिक समय लगा।

भारत का विभाजन और आजादी

अंग्रेजों ने जाते जाते भी भारत को दो टुकङों में बाँट दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की स्थिति बहुत कमजोर हो गयी थी। उन्होंने भारत को आजाद करने के संकेत दे दिये थे। भारत की आजादी के साथ ही जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग राज्य पाकिस्तान की भी माँग होने लगी। गाँधी जी देश का बँटवारा नहीं होने देना चाहते थे। किन्तु उस समय परिस्थितियों के प्रतिकूल होने के कारण देश दो भागों में बँट गया।

महात्मा गाँधी की मृत्यु (30 जनवरी 1948)

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर बिरला हाउस में गाँधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। जवाहर लाल नेहरु ने गाँधी जी की हत्या की सूचना इन शब्दों में दी, ‘हमारे जीवन से प्रकाश चला गया और आज चारों तरफ़ अंधकार छा गया है। मैं नहीं जानता कि मैं आपको क्या बताऊँ और कैसे बताऊँ। हमारे प्यारे नेता, राष्ट्रपिता बापू अब नहीं रहे।’

गाँधी जी का जीवन-चक्र (टाईम-लाइन) एक नजर मेः-

1879 – जन्म – 2 अक्टूबर, पोरबंदर (गुजरात)।

1876 – गाँधी जी के पिता करमचंद गाँधी की राजकोट में बदली, परिवार सहित राजकोट आना और कस्तूरबा माखन जी से सगाई।

1879 – 21 जनवरी 1879 को राजकोट के स्थानीय स्कूल में दाखिला।

1881 – राजकोट हाई स्कूल में पढाई।

1883 – कस्तूरबा माखन जी से विवाह।

1885 – गाँधी जी के पिता की मृत्यु, इसी वर्ष इनके पहले पुत्र का जन्म और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु।

1887 – राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की, सामलदास कॉलेज (भावनगर) में प्रवेश।

1888 – पहले पुत्र हरीलाल का जन्म, बैरिस्टर की पढाई के लिये इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान।

1891 – बैरिस्टर की पढाई करके भारत लौटे, अपनी अनुपस्थिति में माता पुतलीबाई के निधन का समाचार, पहले बम्बई बाद में राजकोट में वकालात की असफल शुरुआत।

1892 – दूसरे पुत्र मणिलाल गाँधी का जन्म।

1893 – अफ्रीकी व्यापारी दादा अब्दुला के कानूनी सलाहकार का प्रस्ताव को स्वीकार कर अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान, 31 मई 1893 को प्रिटोरिया रेल हादसा, रंग-भेद का सामना।

1894 – दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष के प्रथम चरण का प्रारम्भ, नेटाल इण्डियन कांग्रेस की स्थापना।

1896 – भारत आगमन (6 महीने के लिये) और पत्नी और एक पुत्र को लेकर अफ्रीका वापस गये।

1897 – तीसरे पुत्र रामदास का जन्म।

1899 – बोअर युद्ध में ब्रिटिश की मदद के लिये भारतीय एम्बुलेंस सेवा प्रदान की।

1900 – चौथे और अन्तिम पुत्र देवदास का जन्म।

1901 – अफ्रीकी भारतियों को आवश्यकता के समय मदद करने के लिये वापस आने का आश्वासन देकर परिवार सहित स्वदेश आगमन, भारत का दौरा, कांग्रेस अधिवेशन में भाग और बबंई में वकालात का दफ्तर खोला।

1902 – अफ्रीका में भारतियों द्वारा बुलाये जाने पर अफ्रीका के लिये प्रस्थान।

1903 – जोहान्सवर्ग में वकालात दफ्तर खोला।

1904 – इण्डियन ओपिनियन सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1906 – जुल्लु युद्ध के दौरान भारतियों को मदद के लिये प्रोत्साहन, आजीवन ब्रह्मचर्य का संकल्प, एशियाटिक ऑर्डिनेन्स के विरोध में प्रथम सत्याग्रह।

1907 – ब्लैक एक्ट (भारतियों और अन्य एशियाई लोगों का जबरदस्ती पंजीयन) के विरोध में सत्याग्रह।

1908 – दक्षिण अफ्रीका (जोहान्सवर्ग) में पहली जेल यात्रा, दूसरा सत्याग्रह (पुनः जेल यात्रा)।

1909 – दक्षिण अफ्रीकी भारतियों की ओर से पक्ष रखने के इंग्लैण्ड यात्रा, नवम्बर (13-22 तारीख के बीच) में वापसी के दौरान हिन्द स्वराज पुस्तक की रचना।

1910 – 30 मई को जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।

1913 – द ग्रेट मार्च का नेतृत्व, 2000 भारतीय खदान कर्मियों की न्युकासल से नेटाल तक की पदयात्रा।

1915 – 21 वर्ष बाद भारत वापसी।

1916 – साबरमती नदी के किनारे (अहमदाबाद में) आश्रम की स्थापना, बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय की स्थापना पर प्रथम बार गाँधी जी का मंच से भाषण।

1917 – बिहार के चम्पारन जिले में नील किसानों के हक के लिये सत्याग्रह आन्दोलन।

1918 – अहमदाबाद में मिल मजदूरों की हक की लङाई में मध्यस्था

1919 – रोलेट एक्ट और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में सत्याग्रह छेङा, जो आगे चलकर असहयोग आन्दोलन (1920) के नाम से प्रसिद्ध हुआ, यंग इण्डिया (अंग्रेजी) और नवजीवन (गुजराती) सप्ताहिक पत्रिका का संपादन।

1920 – जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में केसर-ए-हिन्द की उपाधि वापस की, होमरुल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित हुये।

1921 – असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत बंबई में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में 5 दिन का उपवास।

1922 – चौरी-चौरा कांड के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस लिया, राजद्रोह का मुकदमा और 6 वर्ष का कारावास।

1924 – बेलगाम कांग्रेस अधिवेसन में अध्यक्ष चुने गये, साम्प्रदायिक एकता के लिये 21 दिन का उपवास।

1928 – कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में भाग, पूर्ण स्वराज का आह्वान।

1929 – कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस घोषित करके राष्ट्रव्यापी आन्दोलन आरम्भ।

1930 – नमक कानून तोङने के लिये साबरमती आश्रम से दांङी यात्रा जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन का नाम दिया।

1931 – गाँधी इरविन समझौता, गाँधी जी ने दूसरे गोलमाज सम्मेलन में भाग लेने को तैयार।

1932 – यरवदा पैक्ट को ब्रिटिश स्वीकृति।

1933 – साबरमती तट पर बने आश्रम का नाम हरिजन आश्रम रखकर देश में अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन छेङा, हरिजन नामक सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1934 – अखिल भारतीय ग्रामोद्योग की स्थापना।

1936 – वर्धा में सेवाश्रम की स्थापना।

1937 – दक्षिण भारत की यात्रा।

1940 – विनोबा भावे को पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही के रुप में चुना गया।

1942 – क्रिप्स मिशन की असफलता, भारत छोङो अभियान की शुरुआत, सचिव मित्र महादेव देसाई का निधन।

1944 – 22 फरवरी को गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी जी की मृत्यु।

1946 – बंगाल के साम्प्रदायिक दंगो के संबंध में कैबिनेट मिशन से भेंट।

1947 – साम्प्रदायिक शान्ति के लिये बिहार यात्रा, जिन्ना और गवर्नल जनरल माउन्टबैटेन से भेंट, देश विभाजन का विरोध।

1948 – बिङला हाउस में जीवन का अन्तिम 5 दिन का उपवास, 20 जनवरी को प्रार्थना सभा में विस्फोट, 30 जनवरी को प्रार्थना के लिये जाते समय नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या।

गाँधी जी के अनमोल वचन

  • “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं”।
  • “जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते है, वह पहले स्वंय में लाये।”
  • “वास्तविक सौन्दर्य ह्रदय की पवित्रता में है|”
  • “अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है|”
  • “गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है।”
  • “चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए|”
  • “जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है|”
  • “जब भी आप एक प्रतिद्वंद्वी के साथ सामना कर रहे हैं। प्यार के साथ उसे जीतना।”
  • “अहिंसा, किसी भी प्राणी को विचार, शब्द या कर्म से चोट नहीं पहुंचाना है, यहाँ तक कि किसी प्राणी के लाभ के लिए भी नहीं।”
  • “जहाँ प्यार है, वहाँ जीवन है।”
  • “मैं आपके मसीहा (ईशा) को पसन्द करता हूँ, मैं आपके ईसाइयों को पसंद नहीं करता। आपके ईसाई आपके मसीहा (ईशा) के बहुत विपरीत हैं।”
  • “सबसे पहले आपकी उपेक्षा करते है, तब वे आप पर हंसते हैं, तब वे आप से लड़ते हैं, तब आप जीतते है।”
  • “मैं खुद के लिए कोई पूर्णता का दावा नहीं करता। लेकिन मैं सच्चाई के पीछे एक भावुक साधक का दावा करता हूँ, जो भगवान का दूसरा नाम हैं।”
  • “मेरे पास दुनिया को पढ़ाने के लिए कोई नई बात नहीं है। सत्य और अहिंसा पहाड़ियों के जैसे पुराने हैं। मैंनें पूर्ण प्रयास के साथ विशाल पैमाने पर दोनों में प्रयोगों की कोशिश है, जितना मैं कर सकता था।”
  • “कमज़ोर कभी माफ नहीं कर सकते। क्षमा ताकतवर की विशेषता है।”
  • “आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।”
  • “खुशी जब मिलेगी जब जो आप सोचते है, कहते है, और जो करते है, सामंजस्य में हों।”
  • “ऐसे जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो। ऐसे सीखो की तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो।”
  • “किसी राष्ट्र की संस्कृति उसके लोगों के दिलों और आत्माओं में बसती है|”
  • “कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं|”
  • “जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता|”
  • “विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है|”
  • “यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।”
  • “राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है|”
  • “चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए।”
  • “हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है|”
  • “काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है|”
  • “लम्बे-लम्बे भाषणों से कहीं अधिक मूल्यवान इंच भर कदम उठाना है।”
  • “आपका कोई काम महत्वहीन हो सकता है, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।”
  • “मेरी आज्ञा के बिना मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचा करता।”
  • “क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है।”
  • “क्षणभर भी बिना काम के रहना ईश्वर से चोरी समझो। मैं आन्तरिक और बाहरी सुख का दूसरा कोई भी रास्ता नहीं जानता।”
  • “अहिंसा में इतनी ताकत है कि वह विरोधियों को भी अपना मित्र बना लेती है और उनका प्रेम प्राप्त कर लेती है।”
  • “मैं हिन्दी के जरिये प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता बल्कि उनके साथ हिन्दी को भी मिला देना चाहता हूँ।”
  • “एक धर्म सभी भाषणों से परे है।”
  • “किसी में विश्वास करना और उसे ना जीना बेईमानी है।”
  • “बिना उपवास के कोई प्रार्थना नहीं और बिना प्रार्थना के कोई उपवास नहीं।”
  • “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।”
  • “मानवता का सबसे बङा हथियार शान्ति है।”

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आज हमने इस आर्टिकल में हमने महात्मा गांधी पर भाषण (Speech on Mahatma Gandhi in Hindi) लिखा है। इस भाषण से स्कूल और कॉलेज के छात्र अपने कार्यक्रम और परीक्षा के लिए मदद ले सकते हैं।

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आदरणीय प्रधानाचार्य जी, शिक्षक गण एवं मेरे प्यारे सहपाठियों एवं भाई हम बहनों आज मैं आप लोगों के समक्ष इन महान पुरुष महात्मा गांधी जी के बारे में कुछ शब्द बोलने के लिए उपस्थित हुए हुं।

उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है। उनके मानवता के प्रति और भारत के आजादी के प्रति किए गए प्रयास का उल्लेख शब्दों में नहीं किया जा सकता।

भारत एक महान देश है जिसका एक समृद्ध इतिहास है। यहां महान और शक्तिशाली नेताओं ने जन्म लिया है। उनमें से एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे हमारे, आदरणीय बापू महात्मा गांधी जी। वे ना केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में सम्मानित थे।

महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनकी माता का नाम श्रीमती पुतलीबाई तथा उनके पिता का नाम श्री करमचंद गांधी था। गांधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर नामक एक छोटे से शहर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। 

अपने जीवन में उन्होंने कई महान कार्य किए जो आज भी हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। इन महान आत्मा में  जगत में  छुआछूत, गरीबी, बाल विवाह, जातिवाद, भेदभाव आदि बुराइयों और अंग्रेजी सरकार के नीतियों के खिलाफ अहिंसात्मक तरीके से जन आंदोलन किया।

जिन्होंने नील की खेती को बंद करने के लिए चंपारण सत्याग्रह बिहार में किया। लगान वृद्धि की समाप्ति के लिए गुजरात में खेड़ा सत्याग्रह और खलीफा की सत्ता की स्थापना के लिए खिलाफत आंदोलन किया। स्वराज की स्थापना के लिए असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, व नमक कानून तोड़ने के लिए दांडी मार्च तथा अंग्रेजों को भगाने के लिए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन किया।

गांधी जी ने करो या मरो का नारा दिया। साथियों गांधीजी के शिक्षा की बात की जाए तो उन्होंने लंदन से वकालत की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में 21 साल बिताए, जहां उनके राजनीतिक विचार और नैतिकता का विकास हुआ। यहीं से गांधी जी ने एक महान नेता के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी। यहां उन्हें अपने रंग और जाति के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा।

एक श्वेत ट्रेन अधिकारी द्वारा रंग और जाति के कारण ट्रेन कोच से बाहर फेंके जाने के बाद, उन्होंने महसूस किया कि, उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए।

इस अनुभवों ने मन में गहरा असर डाला और उसके बाद से उन्होंने मानवता की उत्थान की दिशा में कार्य करना शुरू किया। यहीं से उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह की शुरुआत की। उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई और 1914 में गांधीजी और दक्षिण अफ्रीकी सरकार एक समझौते किया जहां भारतीय मांगों को स्वीकार किया गया।

1915 में वे भारत वापस आए और बाद में वे साबरमती के किनारे बस गए जहां उन्होंने सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। यहां उन्होंने समाज की बुरी प्रणालियों जैसे जातिवाद, के खिलाफ लड़ाई जारी रखी और उन्होंने राजस्व की ओर काम करना भी शुरू कर दिया। उन्होंने महिलाओं को सशक्तिकरण और किसान को अधिकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

साथियों उनके कुछ महान आंदोलन हैं जैसे – असहयोग आंदोलन 1920, दांडी मार्च 1930 (नमक सत्याग्रह), और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन।

अपने पूरे जीवन में उन्होंने अहिंसा का पालन किया। उनके प्रयासों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आखिरकार 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली। गांधीजी कुछ नया सीखने के पक्षधर थे। उनका कहना था कि ऐसे जियो जैसे आपको कल मरना है और सीखो ऐसे जैसे आपको सदैव जिंदा रहना है। साथियों गांधी जी का कहना था कि यदि आप रामायण का पाठ करते हो तो वह व्यर्थ है यदि आप राम जैसे नहीं बनते।

अपने पूरे जीवन में सभी जाति और पंच लोगों के बीच एकता लाने के लिए काम किया। स्वतंत्रता और भारत के विभाजन के बाद, उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के साथ लाने के लिए कड़ी मेहनत की। इससे कुछ लोग नाराज हो गए और 30 जनवरी 1948 को गांधी जी को नाथूराम गोडसे में गोली मार दी।

उन्हें सभी योग दानों के लिए राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया जाता है।

प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर को उनका जन्मदिन भारत में गांधी जयंती के रूप में तथा पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

क्या आप जानते हैं महात्मा गांधी जी ने 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभाली। देश में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण एवं आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने प्रमुख योगदान दिया।

उनकी मृत्यु के उपरांत भी उनकी विचार उनकी आत्मकथा “My Experiments With Truth” के माध्यम से हमें प्रभावित करते हैं। गांधीजी के बारे में इतनी सारी बातें हैं कि उन्हें शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। आज भी पूरा भारत देश आपको पूरे दिल से सम्मान और आपके योगदान के लिए शत-शत नमन करता है।

अंत में मैं इस खूबसूरत भक्ति गीत के साथ अपना भाषण समाप्त करती हूं।

        रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम।

  धन्यवाद।

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गांधी जयंती 2020: गांधी दर्शन से संबंधित 10 मुख्य बातें

विश्व भर में 02 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है. यह दिवस महात्मा गांधी के जन्मदिवस के अवसर पर मनाया जाता है. महात्मा गांधी का शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है..

Vikash Tiwari

पूरा देश 02 अक्टूबर 2020 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151वीं जयंती का जश्न मना रहा है. उन्होंने देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ऐसे में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनके जन्मदिवस पर उन्हें नमन किया है और देशवासियं को उनके सत्य और अहिंसा के पग पर चलने का दोबारा संकल्प लेने को कहा है.

वहीं प्रधानमंत्री ने राजघाट जाकर बापू को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस दौरान यहां पर जयंती के अवसर पर भजन का भी आयोजन किया गया. महात्मा गांधी की 151वीं जन्म शताब्दी पर देश और दुनिया भर में कई तरह के कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे है. इस दौरान महात्मा गांधी के जीवन से लेकर उनके सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन के प्रत्येक छोटे-बड़े किस्से को याद किया जा रहा है.

महात्मा गांधी के भारत की आजादी में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. महात्मा गांधी अपने सादा-जीवन तथा उच्च विचारों के चलते प्यार से भारतीयों के बापू बन गये थे. विश्व को महात्मा गांधी ने ही सत्य की शक्ति से परिचय करवाया था. महात्मा गांधी के सत्याग्रह के कारण से ही अंग्रेज भारत छोड़ने पर मजबूर हो गये थे.

गांधी दर्शन से संबंधित 10 मुख्य बातें

• महात्मा गांधी का जन्म 02 अक्टूबर 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है.

• महात्मा गांधी का व्यक्तित्व तथा कृतित्व आदर्शवादी रहा है. उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से मिलता-जुलता था.

• उन्हें संसार के अधिकांश लोग महान राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के रूप में जानते हैं. पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति के लिए शिक्षा का एक अहम योगदान होता है.

• राजवैद्य जीवराम कालिदास ने गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले साल 1915 में संबोधित किया था.

• महात्मा गांधी ने आजादी के लिए संघर्ष के दौरान करीब 17 बार उपवास रखा और उनका सबसे लंबा उपवास 21 दिन का था.

• सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को 06 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया था.

• महात्मा गांधी कहते थे की अहिंसा मानवता के लिए सबसे बड़ी ताकत हैं. यह आदमी द्वारा तैयार विनाश के ताकतवर हथियार से भी बहुत अधिक शक्तिशाली हैं.

• महात्मा गांधी ने सबसे पहले प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों हेतु संघर्ष के लिए सत्याग्रह करना शुरू किया था.

• उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में साल 1930 में नमक सत्याग्रह तथा इसके बाद साल 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की थी.

• उन्होंने सभी परिस्थितियों में अहिंसा तथा सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी करते थे. उन्होंने परम्परागत भारतीय पोशाक धोती और सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे.

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Gandhi Jayanti Speech in English & Hindi 2024 – 10 Lines of Gandhi Jayanti

Published by team sy on august 18, 2024 august 18, 2024.

Gandhi Jayanti Speech 2024: The birthday of Mohandas Karamchand Gandhi, the epitome of non-violence, is celebrated as Gandhi Jayanti in India. On this day, in schools and colleges events are organized to promote the Gandhian principles. Here, we have provided Speech on Gandhi Jayanti in English and Hindi languages. Check out the speech below, at the end of the post, we have provided Gandhi Jayanti Speech PDF Download links.

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Table of Contents

Gandhi Jayanti Speech in English for Students & Teachers

The Gandhi Jayanti speech in English for teachers and students is provided below.

Good morning, everyone! 

My name is XYZ and I am from class XY, we all have gathered here to celebrate the birthday of Father of our Nation, Mahatma Gandhi.

In India, Gandhi Jayanti has its own importance, it is celebrated each year to commemorate the birth anniversary of the man who led the fight for freedom with ‘Non-Violence’. It is the day when all the countrymen come together and pay tribute to this great man who helped the country get free from British colonial rule. The man who guided people to fight for their rights following the non-violent approach. Because he struggled for India’s Independence, one of the famous Indian Nationalists, Netaji Subhash Chandra Bose gave him the name “Father of the Nation”.

Mahatma Gandhi was born on October 2nd, 1869 in a small town named Porbandar which is in Gujarat. Mahatma Gandhi’s 153th Birth Anniversary will celebrate not only in India but also celebrated and organized with different programs around the world. He firmly believed in the purity of religion and the forerunner of truth and non-violence. His Ideologies of Non-Violence, Truth, Sarvodaya and Satyagraha, and Ahimsa impacted the lives of many Great individuals like Martin Luther King Jr. It is like a double-edged weapon. The legacy Gandhiji has left behind still does not fail to impact the lives of people living in modern times. Gandhi Jayanti holds immense importance in the life of the people of India. Moreover, it is not just a celebration, it is a day to remember and follow the beliefs, ideology, and teachings of Mahatma Gandhi. He also raised his voice against the untouchability and the caste system in the country. Based on his ideologies and teachings, India launched the ‘Swachh Bharat Abhiyan,’ which means Clean India Mission, on October 2, 2014. The main motto behind this mission is to improve solid waste management in rural and urban areas and get rid of open defecation in India.

The education of Mahatma Gandhi was done in London and he is a Lawyer by profession. At the age of 19, he went to London for his higher studies. After completing his law in London, he shifted to South Africa with his wife Kasturba Gandhi, and resided there for many years. In South Africa also, he remained active in the movements which led to fighting injustice against the Indians living there. He struggled against injustice and unlawful acts such as Civil Disobedience Movement in Africa, which started in the year 1906. Gandhiji fought for approx. eight years in South Africa against the government, during the Movement, many Indians who were residing in South Africa were shot dead and many were left jailed in severe atrocities.

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Not even this, during his practice days in the courtroom, Gandhiji was asked to put off his turban, which made him helpless to act and he leaves the courtroom immediately. Several incidences happened to him, where Gandhiji faced crucial discrimination by the white people just because of being an Indian in a white country. At several points in his life, Gandhiji was incarcerated and tortured by the British government, but this great man never chooses the path of violence. Instead of violence, he gave his voice more power by doing strikes for days, without food. A speech is not enough to know the personality, values, and deeds of Mahatma Gandhi. But we can honour him by living our life with his principles of truth, peace, and non-violence and lead our country to an incredible nation.

Gandhi Jayanti Speech in Hindi for Students & Teachers

The Gandhi Jayanti speech in Hindi for teachers and students is provided below.

सबको सुप्रभात!

मेरा नाम XYZ है और मैं XY कक्षा से हूँ, हम सब यहाँ हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं।

भारत में, गांधी जयंती का अपना महत्व है, यह हर साल उस व्यक्ति की जयंती मनाने के लिए मनाया जाता है जिसने ‘अहिंसा’ के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई का नेतृत्व किया। यह वह दिन है जब सभी देशवासी एक साथ आते हैं और इस महान व्यक्ति को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने देश को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने में मदद की। वह व्यक्ति जिसने अहिंसक दृष्टिकोण का पालन करते हुए लोगों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने के लिए निर्देशित किया। क्योंकि उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, प्रसिद्ध भारतीय राष्ट्रवादियों में से एक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें “राष्ट्रपिता” नाम दिया।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर नामक एक छोटे से शहर में हुआ था जो गुजरात में है। महात्मा गांधी की 153वीं जयंती न केवल भारत में मनाई जाएगी बल्कि दुनिया भर में विभिन्न कार्यक्रमों के साथ मनाई और आयोजित की जाएगी। वे धर्म की पवित्रता और सत्य और अहिंसा के अग्रदूत में दृढ़ विश्वास रखते थे। उनकी अहिंसा, सत्य, सर्वोदय और सत्याग्रह और अहिंसा की विचारधाराओं ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे कई महान व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित किया। यह एक दोधारी हथियार की तरह है। गांधी जी ने जो विरासत छोड़ी है वह आज भी आधुनिक समय में रहने वाले लोगों के जीवन को प्रभावित करने में विफल नहीं हुई है। गांधी जयंती का भारत के लोगों के जीवन में अत्यधिक महत्व है। इसके अलावा, यह सिर्फ एक उत्सव नहीं है, यह महात्मा गांधी की मान्यताओं, विचारधारा और शिक्षाओं को याद करने और उनका पालन करने का दिन है। उन्होंने देश में अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था के खिलाफ भी आवाज उठाई। उनकी विचारधाराओं और शिक्षाओं के आधार पर, भारत ने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरू किया, जिसका अर्थ है स्वच्छ भारत मिशन, 2 अक्टूबर 2014 को। इस मिशन के पीछे मुख्य उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना और भारत में खुले में शौच से छुटकारा पाना है। 

महात्मा गांधी की शिक्षा लंदन में हुई थी और वे पेशे से वकील हैं। 19 साल की उम्र में वे उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए। लंदन में अपना कानून पूरा करने के बाद, वह अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ दक्षिण अफ्रीका चले गए, और वहां कई वर्षों तक रहे। दक्षिण अफ्रीका में भी, वह उन आंदोलनों में सक्रिय रहे, जिनके कारण वहां रहने वाले भारतीयों के खिलाफ अन्याय हुआ। उन्होंने अफ्रीका में सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे अन्याय और गैरकानूनी कृत्यों के खिलाफ संघर्ष किया, जो वर्ष 1906 में शुरू हुआ। गांधीजी ने लगभग लड़ाई लड़ी। आठ साल दक्षिण अफ्रीका में सरकार के खिलाफ, आंदोलन के दौरान, दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले कई भारतीयों की गोली मारकर हत्या कर दी गई और कई को गंभीर अत्याचारों में जेल में डाल दिया गया।

इतना ही नहीं, कोर्ट रूम में प्रैक्टिस के दिनों में गांधीजी को पगड़ी उतारने को कहा गया, जिससे वे हरकत में लाचार हो गए और वे तुरंत कोर्ट रूम से निकल गए। उनके साथ कई घटनाएं हुईं, जहां गांधीजी को गोरे लोगों द्वारा सिर्फ एक गोरे देश में भारतीय होने के कारण महत्वपूर्ण भेदभाव का सामना करना पड़ा। गांधी जी को अपने जीवन के कई पड़ावों पर ब्रिटिश सरकार द्वारा कैद और प्रताड़ित किया गया था, लेकिन यह महापुरुष कभी भी हिंसा का रास्ता नहीं चुनते। उन्होंने हिंसा के बजाय कई दिनों तक बिना भोजन किए हड़ताल कर अपनी आवाज को और ताकत दी। महात्मा गांधी के व्यक्तित्व, मूल्यों और कार्यों को जानने के लिए एक भाषण पर्याप्त नहीं है। लेकिन हम उनके सत्य, शांति और अहिंसा के सिद्धांतों के साथ अपना जीवन जीकर उनका सम्मान कर सकते हैं और अपने देश को एक अविश्वसनीय राष्ट्र की ओर ले जा सकते हैं।

Download Gandhi Jayanti Speech in English PDF Now!

10 lines on Gandhi Jayanti in English

Check out 10 lines about Gandhi Jayanti below.

1) Every year, the birthday of Mahatma Gandhi is celebrated as a national festival on the 2nd of October.

2) A resolution was adopted by the UN to celebrate the International Day of Non-Violence on 2nd October.

3) Our country has officially declared it one of its three holidays.

4) On this day, millions of people across the globe pay tribute to Mahatma Gandhi and pledge to follow his teachings.

5) Flowers and garlands are placed around Mahatma Gandhi’s statues and portraits throughout India.

6) People pay their respects to the nation’s father near Raj Ghat Memorial.

7) Speaking contests, dramas, and skits are common activities at schools and colleges to commemorate Mahatma Gandhi and share his teachings.

8) Mahatma Gandhi paved the way for peace and non-violence.

9) Mahatma Gandhi opposed any form of bad habit, including alcoholism.

10) Mahatma Gandhi’s teachings and ideology are best learned on this day.

10 lines on Gandhi Jayanti in Hindi

Check 10 lines on Gandhi Jayanti in Hindi below.

1) प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है।

2) 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक प्रस्ताव अपनाया गया था।

3) हमारे देश ने आधिकारिक तौर पर इसे अपनी तीन छुट्टियों में से एक घोषित किया है।

4) इस दिन, दुनिया भर में लाखों लोग महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते हैं और उनकी शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लेते हैं।

5) पूरे भारत में महात्मा गांधी की प्रतिमाओं और चित्रों के चारों ओर फूल और मालाएँ रखी जाती हैं।

6) राज घाट मेमोरियल के पास लोग राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देते हैं।

7) महात्मा गांधी को मनाने और उनकी शिक्षाओं को साझा करने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में भाषण प्रतियोगिता, नाटक और स्किट आम ​​गतिविधियां हैं।

8) महात्मा गांधी ने शांति और अहिंसा का मार्ग प्रशस्त किया।

9) महात्मा गांधी ने शराब सहित किसी भी प्रकार की बुरी आदत का विरोध किया।

10) इस दिन महात्मा गांधी की शिक्षाओं और विचारधाराओं को सबसे अच्छी तरह सीखा जाता है।

We hope you must have found this Gandhi Jayanti Speech helpful and informative. Check out other important speeches now.

Gandhi Jayanti Speech 2024 FAQs

In this article, we have provided a sample speech on Gandhi Jayanti in both English and Hindi.

The birth anniversary of Mahatma Gandhi falls every year on 2nd October.

Mahatma Gandhi Ji is known for his principles of non-violence.

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Gandhi Jayanti 2020 Speech: महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर इस तरह से करें प्रभावशाली भाषण तैयार

नई दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को हम प्यार से बापू कहते हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख चेहरा बने महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए देश को स्वतंत्रता दिलाई थी। ये गांधी की तपस्या ही थी जिसके कारण 200 सालों बाद देश ने स्वतंत्र हवा को महसूस किया। गांधी केवल एक नेता ही नहीं बल्कि एक निष्काम कर्मयोगी और सच्चे अर्थों में युग पुरुष थे। बापू के जन्मदिन पर वैसे तो देश में छुट्टी होती है लेकिन फिर भी कई जगह बापू के सम्मान में कार्यक्रम आयोजन किए जाते हैं, जिसमें भाषण देना होता है, जिसमें लोगों को काफी समस्या होती है।

इस तरह से करें प्रभावशाली भाषण तैयार

इस तरह से करें प्रभावशाली भाषण तैयार

ऐसे में लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है, यहां हम आपको कुछ आसान से टिप्स बता रहे हैं, जिसके जरिए आप बहुत आसानी से अपना प्रभावशाली भाषण तैयार कर सकते हैं।

पहले चुने भाषण का शीर्षक, जो निम्निलिखित हो सकते हैं

  • भारत की स्वतंत्रता में अंहिसा आंदोलन का महत्व
  • महात्मा गांधी के प्रमुख आंदोलन
  • महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाएं
  • अस्पृश्यता के खिलाफ गांधी जी की मुहिम
  • गांधी जी के विचार

यह पढ़ें: Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी को भारत का पहला न्यूट्रीशनिस्ट और डाइट गुरु कहना गलत नहीं होगा

सबसे पहले अभिवादन करें

परम आदरणीय देवियों और सज्जनों एवं मेरे प्यारे भाई-बहनों

  • भाषण के शुरू में अपने मित्रों और सभा में बैठे लोगों का अभिवादन करें। अभिवादन के बाद बता सकते हैं कि आज गांधी जी की जयंती है और उसके बाद आप अपने भाषण में चुने हुए शीर्षक के आधार पर बातें करनी शुरू करें।
  • आप अपनी स्पीच को एक बार लिख लें और बोल कर देखें।

'आप मुहावरों का जिक्र करें'

'आप मुहावरों का जिक्र करें'

  • आप फेमस लोगों की बातों को भी कोड कर सकते हैं अपने स्पीच में।
  • आप अपने भाषण को लोगों से आंख से आंख मिलाकर कहे, जिससे ऐसा ना लगे की आप रटकर बोल रहे हैं।
  • प्रभावशाली भाषण के लिए आप मुहावरों और छोटे-छोटे किस्सों का जिक्र करें।
  • अच्छी शायरियां या कविताएं भी शामिल करें।
  • अंत में सभी का धन्यवाद देते हुए जयहिंद-जय भारत कहें।

कुछ अनकही बातें

कुछ अनकही बातें

  • महात्मा गांधी 13 बार गिरफ्तार हुए।
  • उन्होंने 17 बड़े अनशन किए थे।
  • बापू लगातार 114 दिन भूखे रहे थे।
  • गांधी जी के नाम से भारत में 53 मुख्य मार्ग हैं जबकि विदेशों में 48 सड़के हैं।
  • 1921 में उन्होंने प्रण लिया आजादी तक हर सोमवार उपवास रखूंगा।
  • उन्होंने कुल एक हज़ार इकतालीस दिन उपवास किया। जीवन में 35, 000 पत्र लिखे थे

यह पढ़ें: Gandhi Jayanti: मोहनदास करमचंद गांधी को 'महात्मा' की उपाधि किसने दी, कोर्ट भी सुना चुका है अपना फैसला

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महात्मा गांधी पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में | Mahatma Gandhi Essay in Hindi

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए महात्मा गांधी पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में। महात्मा गांधी भारत का बच्चा-बच्चा जानता है क्योंकि वह हमारे राष्ट्रपिता है। बच्चों को विद्यालय में महात्मा गांधी के बारे में बताया जाता है, ताकि विद्यार्थी भी उनके मार्गदर्शन पर चलकर एक आदर्श व्यक्ति बन सकें। इसीलिए अकसर विद्यार्थियों को परीक्षा में या फिर किसी डिबेट में महात्मा गांधी के ऊपर निबंध (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) आता है। कई बार निबंध कम शब्दों का होता है तो कई बार ज्यादा शब्दों का। इसीलिए आज के इस लेख में हम आपको महात्मा गांधी का निबंध अलग-अलग शब्दों में बताएंगे। 

महात्मा गांधी पर निबंध 100 शब्दों में

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1879 को भारत के गुजरात राज्य में पोरबंदर गांव में हुआ था। इनके पिताजी का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गांधी ना केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि वह एक बहुत ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व के मालिक थे। आज भारत में और दुनिया भर में लोग इन्हें उनकी महानता, सच्चाई, आदर्शवाद जैसी खूबियों की वजह से जानते हैं। इन्होंने भारत को आजाद कराने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पर अफसोस की बात है कि 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। 

महात्मा गांधी पर निबंध 150 शब्दों में

भारत के गुजरात में जन्में महात्मा गांधी एक बहुत ही सच्चे और देशभक्त भारतीय थे। इसीलिए पूरे भारत के लिए 2 अक्टूबर 1869 का दिन बहुत ही यादगार है क्योंकि इस दिन मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म हुआ था। महात्मा गांधी ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए ब्रिटिश शासन में एक बहुत ही ना भूलने वाली भूमिका निभाई थी। इनकी शिक्षा की बात की जाए तो इन्होंने पहले पोरबंदर से ही शिक्षा हासिल की थी। फिर बाद में गांधीजी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए थे। 

इस तरह से इंग्लैंड में उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और उसके बाद जब यह भारत लौटे तो उन्होंने भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए सत्याग्रह आंदोलन चलाया। इसके अलावा भी गांधी जी ने और भी बहुत से आंदोलन चलाए थे। इसके चलते फिर 15 अगस्त 1947 को हमारे देश भारत को आजादी मिल गई थी। लेकिन बहुत अफसोस की बात है कि 30 अक्टूबर 1948 को गांधीजी की गोली लगने से मृत्यु हो गई थी। 

महात्मा गांधी पर निबंध 250 शब्दों में

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है और इन्हें बापू के नाम से भी पुकारा जाता है। गांधी जी ने भारत को आजाद कराने के लिए बहुत से आंदोलन चलाए थे जिनके परिणामस्वरूप भारत को आजादी मिल सकी। बापू ने भारत में मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी और उसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए थे। इंग्लैंड से महात्मा गांधी जब वकील बन कर वापस भारत आए तो उन्होंने भारत की स्थिति को देखा। उन्होंने यह फैसला कर लिया कि वह अपने देश को अंग्रेजो की गुलामी से आजाद करवा कर रहेंगे। 

महात्मा गांधी बहुत ही बेहतरीन राष्ट्रवाद नेता थे जिन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बापू जी के इतने बड़े योगदान की वजह से ही उन्हें भारत के इतिहास में इतना ज्यादा महत्व दिया गया है। हर साल 2 अक्टूबर के दिन पूरे भारत में महात्मा गांधी का जन्मदिन बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। यह दिन गांधी जयंती के नाम से प्रसिद्ध है।

सभी स्कूलों में और शिक्षा संस्थानों में बच्चों को विशेषतौर से महात्मा गांधी के जीवन से प्रेरित किया जाता है, ताकि वे भी उनके जैसे योग्य इंसान बन सकें। भारत देश को आजाद कराने वाले महान गांधी जी को नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गोली मार दी थी जिसकी वजह से बापू जी की मृत्यु हो गई थी। ऐसे महान व्यक्ति की मृत्यु होने पर पूरा देश बहुत ही ज्यादा सदमे में चला गया था। 

महात्मा गांधी पर निबंध 500 शब्दों में

मोहनदास करमचंद गांधी एक बहुत ही महान व्यक्ति थे जिनकी महानता से भारत के ही नहीं बल्कि विदेशों के लोग भी बहुत ज्यादा प्रेरित रहते थे। अगर इनके जन्म की बात की जाए तो देश के राष्ट्रपिता का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात में स्थित पोरबंदर में हुआ था। यह अपने पिता करमचंद गांधी और माता पुतलीबाई गांधी की चौथी और सबसे आखिरी संतान थे। 

गांधीजी की शुरुआती शिक्षा 

गांधीजी की शुरुआती शिक्षा उनके जन्म स्थान पोरबंदर में ही हुई थी। जानकारी के लिए बता दें कि महात्मा गांधी एक बहुत ही साधारण से विद्यार्थी थे और यह बहुत ही कम बोला करते थे। इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा मुंबई यूनिवर्सिटी से की थी फिर बाद में यह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश चले गए थे। वैसे तो गांधीजी का सपना डॉक्टर बनने का था लेकिन क्योंकि वो एक वैष्णव परिवार से संबंध रखते थे इसलिए उन्हें चीर-फाड़ करने की आज्ञा नहीं थी। इसलिए इन्होंने वकालत में अपनी शिक्षा पूरी की। 

गांधी जी का विवाह 

जिस समय गांधी जी की उम्र सिर्फ 13 साल की थी उस समय इनका विवाह कस्तूरबा देवी से कर दिया गया था जोकि पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री थी। गांधीजी विवाह के समय स्कूल में पढ़ा करते थे। 

गांधीजी का राजनीति में प्रवेश 

जिस समय गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे उस समय भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की लहर चल रही थी। सन् 1915 की बात है जब गांधी जी भारत लौटे थे तो उस वक्त कांग्रेस पार्टी के सदस्य श्री गोपाल कृष्ण गोखले ने बापू से कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के लिए कहा था। उसके बाद फिर गांधी जी ने कांग्रेस में अध्यक्षता प्राप्त करने के बाद पूरे भारत की भ्रमण यात्रा की। उसके बाद फिर गांधी जी ने पूरे देश की बागडोर को अपने हाथों में लेकर संपूर्ण देश में एक नए इतिहास की शुरुआत की। इसी दौरान जब 1928 में साइमन कमीशन भारत आया तो ऐसे में गांधी ने उसका खूब डटकर सामना किया। तरह से लोगों को बहुत ज्यादा प्रोत्साहन मिला और जब गांधी जी ने नमक आंदोलन और दांडी यात्रा निकाली तो उसकी वजह से अंग्रेज बुरी तरह से घबरा गए। 

महात्मा गांधी ने देश भर के लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे अपने स्वदेशी सामान को इस्तेमाल करें। बता दें कि गांधीजी ने जितने भी आंदोलन किए वे सभी आंदोलन अहिंसा से दूर थे। परंतु फिर भी उन्हें नमक आंदोलन की वजह से जेल तक भी जाना पड़ गया था। लेकिन गांधीजी ने अपना संघर्ष जारी रखा और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए उन्होंने आखिरकार 15 अगस्त 1947 को भारत को आजाद करवा लिया। 

गांधी जी की मृत्यु 

देश के बापू महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को बिरला भवन के बगीचे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बापू के सीने में नाथूराम विनायक गोडसे ने तीन गोलियां चलाई थी‌। मरते समय उनके मुंह से हे राम निकला था। इस तरह से 78 साल में देश के राष्ट्रपिता इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। लेकिन उनके आदर्शों और उनकी बातों का आज भी लोग बहुत ज्यादा सम्मान करते हैं। 

  • 10 Lines About Mahatma Gandhi in Hindi
  • क्रांतिकारी महिलाओं के नाम
  • 10 Lines on A.P.J. Abdul Kalam in Hindi

दोस्तों यह थी हमारी आज की पोस्ट जिसमें हमने आपको महात्मा गांधी पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) बताया। हमने महात्मा गांधी पर निबंध कम शब्दों में और अधिक शब्दों में बताया है जिससे कि आप अपनी जरूरत के अनुसार निबंध लिख सकें। हमें पूरी आशा है कि महात्मा गांधी पर निबंध आपके लिए अवश्य उपयोगी रहा होगा। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो हमारे इस लेख को उन लोगों के साथ भी शेयर करें जो महात्मा गांधी पर निबंध ढूंढ रहे हैं। 

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mahatma gandhi birthday speech in hindi

महात्मा गांधी का भारत छोडो भाषण | Mahatma Gandhi speech in Hindi

भारत छोडो आन्दोलन – Quit India Movement पर महात्मा गांधी भाषण – Mahatma Gandhi Speech – 8 अगस्त 1942 को A.I.C.C. मुंबई में दिया गया महात्मा गांधी का भाषण सबसे बेहतरीन भाषणों में से एक है। आइये उनके उस भाषण को जानते है – और उससे क्या सिख मिलती है ये देखते हैं।

भारत छोडो अभियान गोवलिया टैंक, मुंबई – 8 अगस्त 1942

भारत छोडो आन्दोलन की शाम महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवलिया टैंक में एक प्रेरणादायी भाषण दिया।

Mahatma Gandhi Speech Quit India Movement

महात्मा गांधी का भारत छोडो भाषण – Mahatma Gandhi speech in Hindi

प्रस्ताव पर चर्चा शुरू करने से पहले मै आप सभी के सामने एक या दो बात रखना चाहूँगा, मै दो बातो को साफ़-साफ़ समझना चाहता हूँ और उन दो बातो को मै हम सभी के लिये महत्वपूर्ण भी मानता हूँ। मै चाहता हूँ की आप सब भी उन दो बातो को मेरे नजरिये से ही देखे, क्योकि यदि आपने उन दो बातो को अपना लिया तो आप हमेशा आनंदित रहोंगे।

यह एक महान जवाबदारी है। कयी लोग मुझसे यह पूछते है की क्या मै वही इंसान हूँ जो मै 1920 में हुआ करता था, और क्या मुझमे कोई बदलाव आया है। ऐसा प्रश्न पूछने के लिये आप बिल्कुल सही हो।

मै जल्द ही आपको इस बात का आश्वासन दिलाऊंगा की मै वही मोहनदास गांधी हूँ जैसा मै 1920 में था। मैंने अपने आत्मसम्मान को नही बदला है।

आज भी मै अहिंसा से उतनी ही नफरत करता हूँ जितनी उस समय करता था। बल्कि मेरा बल तेज़ी से विकसित भी हो रहा है। मेरे वर्तमान प्रस्ताव और पहले के लेख और स्वभाव में कोई विरोधाभास नही है।

वर्तमान जैसे मौके हर किसी की जिंदगी में नही आते लेकिन कभी-कभी एखाद की जिंदगी में जरुर आते है। मै चाहता की आप सभी इस बात को जानो की अहिंसा से ज्यादा शुद्ध और कुछ नही है, इस बात को मै आज कह भी रहा हूँ और अहिंसा के मार्ग पर चल भी रहा हूँ।

हमारी कार्यकारी समिति का बनाया हुआ प्रस्ताव भी अहिंसा पर ही आधारित है, और हमारे आन्दोलन के सभी तत्व भी अहिंसा पर ही आधारित होंगे। यदि आपमें से किसी को भी अहिंसा पर भरोसा नही है तो कृपया करके वो इस प्रस्ताव के लिये वोट ना करे।

मै आज आपको अपना बात साफ़-साफ़ बताना चाहता हूँ। भगवान ने मुझे अहिंसा के रूप में एक मूल्यवान हथियार दिया है। मै और मेरी अहिंसा ही आज हमारा रास्ता है।

वर्तमान समय में जहाँ धरती हिंसा की आग में झुलस चुकी है और वही लोग मुक्ति के लिये रो रहे है, मै भी भगवान द्वारा दिये गए ज्ञान का उपयोग करने में असफल रहा हूँ, भगवान मुझे कभी माफ़ नही करेगा और मै उनके द्वारा दिये गए इस उपहार को जल्दी समझ नही पाया। लेकिन अब मुझे अहिंसा के मार्ग पर चलना ही होंगा। अब मुझे डरने की बजाये आगे देखकर बढ़ना होंगा।

हमारी यात्रा ताकत पाने के लिये नहीं बल्कि भारत की आज़ादी के लिये अहिंसात्मक लढाई के लिये है। हिंसात्मक यात्रा में तानाशाही की संभावनाये ज्यादा होती है जबकि अहिंसा में तानाशाही के लिये कोई जगह ही नही है। एक अहिंसात्मक सैनिक खुद के लिये कोई लोभ नही करता, वह केवल देश की आज़ादी के लिये ही लढता है। कांग्रेस इस बात को लेकर बेफिक्र है की आज़ादी के बाद कौन शासन करेंगा।

आज़ादी के बाद जो भी ताकत आएँगी उसका संबंध भारत की जनता से होंगा और भारत की जनता ही ये निश्चित करेंगी की उन्ही ये देश किसे सौपना है। हो सकता है की भारत की जनता अपने देश को पेरिस के हाथो सौपे। कांग्रेस सभी समुदायों को एक करना चाहता है नाकि उनमे फुट डालकर विभाजन करना चाहता है।

आज़ादी के बाद भारत की जनता अपनी इच्छानुसार किसे भी अपने देश की कमान सँभालने के लिये चुन सकती है। और चुनने के बाद भारत की जनता को भी उसके अनुरूप ही चलना होंगा।

मै जानता हु की अहिंसा परिपूर्ण नही है और ये भी जानता हूँ की हम अपने अहिंसा के विचारो से फ़िलहाल कोसो दूर है लेकिन अहिंसा में ही अंतिम असफलता नही है। मुझे पूरा विश्वास है, छोटे-छोटे काम करने से ही बड़े-बड़े कामो को अंजाम दिया जा सकता है। ये सब इसलिए होता है क्योकि हमारे संघर्षो को दखकर अंततः भगवान भी हमारी सहायता करने को तैयार हो जाते है।

मेरा इस बात पर भरोसा है की दुनिया के इतिहास में हमसे बढ़कर और किसी देश ने लोकतांत्रिक आज़ादी पाने के लिये संघर्ष किया होंगा। जब मै पेरिस में था तब मैंने कार्लाइल फ्रेंच प्रस्ताव पढ़ा था और पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी मुझे रशियन प्रस्ताव के बारे में थोडा बहुत बताया था। लेकिन मेरा इस बात पर पूरा विश्वास है की जब हिंसा का उपयोग कर आज़ादी के लिये संघर्ष किया जायेंगा तब लोग लोकतंत्र के महत्त्व को समझने में असफल होंगे।

जिस लोकतंत्र का मैंने विचार कर रखा है उस लोकतंत्र का निर्माण अहिंसा से होंगा, जहाँ हर किसी के पास समान आज़ादी और अधिकार होंगे। जहाँ हर कोई खुद का शिक्षक होंगा। और इसी लोकतंत्र के निर्माण के लिये आज मै आपको आमंत्रित करने आया हूँ। एक बार यदि आपने इस बात को समझ लिया तब आप हिन्दू और मुस्लिम के भेदभाव को भूल जाओंगे। तब आप एक भारतीय बनकर खुद का विचार करोंगे और आज़ादी के संघर्ष में साथ दोंगे।

अब प्रश्न ब्रिटिशो के प्रति आपके रवैये का है। मैंने देखा है की कुछ लोगो में ब्रिटिशो के प्रति नफरत का रवैया है। कुछ लोगो का कहना है की वे ब्रिटिशो के व्यवहार से चिढ चुके है। कुछ लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद और ब्रिटिश लोगो के बिच के अंतर को भूल चुके है। उन लोगो के लिये दोनों ही एक समान है।

उनकी यह घृणा जापानियों की आमंत्रित कर रही है। यह काफी खतरनाक होंगा। इसका मतलब वे एक गुलामी की दूसरी गुलामी से अदला बदली करेंगे। हमें इस भावना को अपने दिलोदिमाग से निकाल देना चाहिये। हमारा झगडा ब्रिटिश लोगो के साथ नही हैं बल्कि हमें उनके साम्राज्यवाद से लढना है। ब्रिटिश शासन को खत्म करने का मेरा प्रस्ताव गुस्से से पूरा नही होने वाला। यह किसी बड़े देश जैसे भारत के लिये कोई ख़ुशी वाली बात नही है की ब्रिटिश लोग जबरदस्ती हमसे धन वसूल रहे है।

हम हमारे महापुरुषों के बलिदानों को नही भूल सकते। मै जानता हूँ की ब्रिटिश सरकार हमसे हमारी आज़ादी नही छीन सकती, लेकिन इसके लिये हमें एकजुट होना होंगा। इसके लिये हमें खुदको घृणा से दूर रखना चाहिये। खुद के लिये बोलते हुए, मै कहना चाहूँगा की मैंने कभी घृणा का अनुभव नही किया। बल्कि मै समझता हूँ की मै ब्रिटिशो के सबसे गहरे मित्रो में से एक हु।

आज उनके अविचलित होने का एक ही कारण है, मेरी गहरी दोस्ती। मेरे दृष्टिकोण से वे फ़िलहाल नरक की कगार पर बैठे हुए है। और यह मेरा कर्तव्य होंगा की मै उन्हें आने वाले खतरे की चुनौती दूँ। इस समय जहाँ मै अपने जीवन के सबसे बड़े संघर्ष की शुरुवात कर रहा हूँ, मै नही चाहता की किसी के भी मनमे किसी के प्रति घृणा का निर्माण हो।

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3 thoughts on “महात्मा गांधी का भारत छोडो भाषण | Mahatma Gandhi speech in Hindi”

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काफी अच्छी जानकारी है,

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kashish mehra ji,

Thanks for comment, aapke sujhav ko dhyan main rakhakar jald se jald gandhi ke likhe hue letters ko publish karane ki koshish karenge. Aap hamase jude rahe.

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Acchi janakari hai aapki Site par bhiAachi janakari hai ! blog temmplet 1 number 🙂

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10 lines on Mahatma Gandhi in Hindi Language | महात्मा गाँधी पर 10 लाइन

In this article, we are providing 10 Lines on Mahatma Gandhi in Hindi & English for classes 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11,12. In this few / some lines on Mahatma Gandhi Ji, you will get information about Mahatma Gandhi in Hindi. हिंदी में महात्मा गाँधी जी पर 10 लाइन निबंध

10 lines on Mahatma Gandhi in Hindi Language

10 lines on Mahatma Gandhi in Hindi

( Set-1 ) 10 lines on Mahatma Gandhi in Hindi for class 1,2,3

1. महात्मा गॉंधी भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे।

2. उनका जन्म 2 अक्तूबर 1869 मे हुआ था।

3. उनका पुरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था।

4. उन्हे बापू और राष्ट्रपिता के नाम से भी जाना जाता है।

5. गाँधी जी अहिंसा के पुजारी थे।

6. गाँधी जी भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के सदस्य थे।

7. इनके पिता जी का नाम करमचंद गाँधी और माता जी का नाम पुतलीबाई था।

8. इनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा गाँधी था।

9. इनके चार पुत्र थे।

10. गाँधी जी की मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई।

जरूर पढ़े-

Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

Sanskrit Mahatma Gandhi Nibandh

Mahatma Gandhi Essay in Punjabi

( Set-2 ) Mahatma Gandhi ke Bare Mein 10 line | महात्मा गाँधी पर 10 लाइन निबंध

1.महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ।

2. महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनके पिताजी का नाम करमचंद गांधी था और माता जी का नाम पुतलीबाई था।

3. महात्मा गांधी का विवाह कस्तूरबा गांधी से 15 वर्ष की आयु में कर दिया गया था। और उनके चार बेटे थे ।

4. महात्मा गांधी ने यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से वकालत की पढ़ाई की थी।

5. महात्मा गांधी द्वारा दिए गए नारे अंग्रेजों भारत छोड़ो और करो या मरो ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी।

6. गांधीजी ने कई अभियान चलाए थे जैसे कि चंपारण सत्याग्रह, दांडी मार्च, असयोग आंदोलन।

7. महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई जिसके कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।

8. वह सत्य और अहिंसा के पुजारी थे और साथ ही उन्होंने अहिंसा परमो धर्म का भी नारा दिया था।

9. महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर कर दी गई।

10. वह भारत के सच्चे स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी समाधि दिल्ली के राजघाट में स्थित है।

( Set-3 ) 15 Lines about Mahatma Gandhi in Hindi | गाँधी जी पर 10 लाइन निबंध

1. महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।

2. उनका पूरा नाम मोहनदास कर्मचंद गाँधी था।

3. वह बापू और राष्ट्रपिता के नाम से भी जाने जाते थे।

4. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे।

5. वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जो अहिंसा में विश्वास रखते थे और उसी के बल पर उन्होंने हमें आजादी दिलाई।

6. गाँधी जी ने लोगों को ब्रिटिश के खिलाफ कार्य करने के लिए प्रेरित किया।

7. उन्होंने असहयोग आंदोलन और दांडी मार्च जैसे कई कार्य किए जिससे कि देश को आजाद किया जा सके।

8. महात्मा गाँधी सादगी भरा जीवन व्यतीत करते थे और सभी धर्मों की एकता में विश्वास रखते थे।

9. उन्होंने भारतीय लोगों को स्वदेशी चीजें अपनाने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने विदेशी कपड़ो की होली भी जलाई थी।

10. महात्मा गाँधी जी की हत्या 30 जनवरी, 1948 में नाथुराम गोडसे ने गोली मारकर की थी।

Speech on Mahatma Gandhi in Hindi

Few lines about Mahatma Gandhi Ji in English

1. Mahatma Gandhi was born on October 2, 1869, in Porbandar of Gujarat.

2. His full name was Mohandas Karamchand Gandhi.

3. He was also known as Bapu and the Father of the Nation.

4. He was a member of the Indian National Congress.

5. He was a great freedom fighter who believed in non-violence and at the same time, he gave us freedom.

6. Gandhiji inspired people to act against the British.

7. He did many acts like the non-cooperation movement and Dandi March so that the country could be liberated.

8. Mahatma Gandhi used to live a simple life and believed in the unity of all religions.

9. They inspired Indian people to adopt indigenous things and they also burnt Holi of foreign clothes.

10. The assassination of Mahatma Gandhi was shot by Nathuram Godse on January 30, 1948.

10 lines on Independence Day in Hindi

10 lines on Republic Day in Hindi

इस article के माध्यम से हमने Ten lines on Mahatma Gandhi in Hindi Essay का वर्णन किया है और आप यह article को नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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5 thoughts on “10 lines on Mahatma Gandhi in Hindi Language | महात्मा गाँधी पर 10 लाइन”

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very nice things you wrote about Gandhi ji.i appreciate you for your nice work

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It was very helpful. Thanks!?

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thanku very much it has awesome points thanku again??

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it was very very helpful for my school project on mahatma gandhi ji

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  • Famous Speeches
  • Benaras Hindu University Speech

[Pandit Malaviya had invited Gandhiji to speak on the occasion of the opening of the Banaras Hindu University. Lord Hardinge, the Viceroy, had come specially to lay the foundation-stone of the University. To protect his life extra precautions were taken by the police. They were omnipresent and all houses along the route were guarded. Banaras was, so to say, in a state of siege].

Eminent persons from all over India had come. Many of them delivered addresses. On February 4, 1916 it was Gandhiji's turn to address the audience, mostly consisting of impressionable youths. A galaxy of princes, bedecked and bejeweled, had occupied the dias. The Maharaja of Darbhanga was in the chair.

Gandhiji who was clad in a short, coarse dhoti, Kathiawadi cloak and turban rose to speak. The police precautions and the luxury around him hurt him deeply. Turning to the audience, Gandhiji said that he wanted to think audibly-speak without reserve:

I wish to tender my humble apology for the long delay that took place before I was able to reach this place. And you will readily accept the apology when I tell you that I am not responsible for the delay nor is any human agency responsible for it. The fact is that I am like an animal on show, and my keepers in their over kindness always manage to neglect a necessary chapter in this life, and, that is, pure accident. In this case, they did not provide for the series of accidents that happened to us-to me, keepers, and my carriers. Hence this delay.

Friends, under the influence of the matchless eloquence of Mrs. Besant who has just sat down, pray, do not believe that our University has become a finished product, and that all the young men who are to come to the University, that has yet to rise and come into existence, have also come and returned from it finished citizens of a great empire. Do not go away with any such impression, and if you, the student world to which my remarks are supposed to be addressed this evening, consider for one moment that the spiritual life, for which this country is noted and for which this country has no rival, can be transmitted through the lip, pray, believe me, you are wrong. You will never be able merely through the lip, to give the message that India, I hope, will one day deliver to the world. I myself have been fed up with speeches and lectures. I except the lectures that have been delivered here during the last two days from this category, because they are necessary. But I do venture to suggest to you that we have now reached almost the end of our resources in speech-making; it is not enough that our ears are feasted, that our eyes are feasted, but it is necessary that our hearts have got to be touched and that out hands and feet have got to be moved.

We have been told during the last two days how necessary it is, if we are to retain our hold upon the simplicity of Indian character, that our hands and feet should move in unison with our hearts. But this is only by way of preface. I wanted to say it is a matter of deep humiliation and shame for us that I am compelled this evening under the shadow of this great college, in this sacred city, to address my countrymen in a language that is foreign to me. I know that if I was appointed an examiner, to examine all those who have been attending during these two days this series of lectures, most of those who might be examined upon these lectures would fail. And why? Because they have not been touched.

I was present at the sessions of the great Congress in the month of December. There was a much vaster audience, and will you believe me when I tell you that the only speeches that touched the huge audience in Bombay were the speeches that were delivered in Hindustani? In Bombay, mind you, not in Benaras where everybody speaks Hindi. But between the vernaculars of the Bombay Presidency on the one hand and Hindi on the other, no such great dividing line exists as there does between English and the sister language of India; and the Congress audience was better able to follow the speakers in Hindi. I am hoping that this University will see to it that the youths who come to it will receive their instruction through the medium of their vernaculars. Our languages the reflection of ourselves, and if you tell me that our languages are too poor to express the best thought, then say that the sooner we are wiped out of existence the better for us. Is there a man who dreams that English can ever become the national language of India? Why this handicap on the nation? Just consider for one moment what an equal race our lads have to run with every English lad.

I had the privilege of a close conversation with some Poona professors. They assured me that every Indian youth, because he reached his knowledge through the English language, lost at least six precious years of life. Multiply that by the numbers of students turned out by our schools and colleges, and find out for yourselves how many thousand years have been lost to the nation. The charge against us is that we have no initiative. How can we have any, if we are to devote the precious years of our life to the mastery of a foreign tongue? We fail in this attempt also. Was it possible for any speaker yesterday and today to impress his audience as was possible for Mr. Higginbotham? It was not the fault of the previous speakers that they could not engage the audience. They had more than substance enough for us in their addresses. But their addresses could not go home to us. I have heard it said that after all it is English educated India which is leading and which is leading and which is doing all the things for the nation. It would be monstrous if it were otherwise. The only education we receive is English education. Surely we must show something for it. But suppose that we had been receiving during the past fifty years education through our vernaculars, what should we have today? We should have today a free India, we should have our educated men, not as if they were foreigners in their own land but speaking to the heart of the nation; they would be working amongst the poorest of the poor, and whatever they would have gained during these fifty years would be a heritage for the nation. Today even our wives are not the sharers in our best thought. Look at Professor Bose and Professor Ray and their brilliant researches. Is it not a shame that their researches are not the common property of the masses?
Let us now turn to another subject.

The Congress has passed a resolution about self-government, and I have no doubt that the All-India Congress Committee and the Muslim League will do their duty and come forward with some tangible suggestions. But I, for one, must frankly confess that I am not so much interested in what they will be able to produce as I am interested in anything that the student world is going to produce or the masses are going to produce. No paper contribution will ever give us self-government. No amount of speeches will ever make us fit for self-government. It is only our conduct that will fit for us it. And how are we trying to govern ourselves?

I want to think audibly this evening. I do not want to make a speech and if you find me this evening speaking without reserve, pray, consider that you are only sharing the thoughts of a man who allows himself to think audibly, and if you think that I seem to transgress the limits that courtesy imposes upon me, pardon me for the liberty I may be taking. I visited the Vishwanath temple last evening, and ad I was walking through those lanes, these were the thoughts that touched me. If a stranger dropped from above on to this great temple, and he had to consider what we as Hindus were, would he not be justified in condemning us? Is not this great temple a reflection of our own character? I speak feelingly, as a Hindu. Is it right that the lanes of our sacred temple should be as dirty as they are? The houses round about are built anyhow. The lanes are tortuous and narrow. If even our temples are not models of roominess and cleanliness, what can our self-government be? Shall our temples be abodes of holiness, cleanliness and peace as soon as the English have retired from India, either of their own pleasure or by compulsion, bag and baggage?

I entirely agree with the President of the Congress that before we think of self-government, we shall have to do the necessary plodding. In every city there are two divisions, the cantonment and the city proper. The city mostly is a stinking den. But we are a people unused to city life. But if we want city life, we cannot reproduce the easy-going hamlet life. It is not comforting to think that people walk about the streets of Indian Bombay under the perpetual fear of dwellers in the storeyed building spitting upon them. I do a great deal of railway traveling. I observe the difficulty of third-class passengers. But the railway administration is by no means to blame for all their hard lot. We do not know the elementary laws of cleanliness. We spit anywhere on the carriage floor, irrespective of the thoughts that it is often used as sleeping space. We do not trouble ourselves as to how we use it; the result is indescribable filth in the compartment. The so-called better class passengers overawe their less fortunate brethren. Among them I have seen the student world also; sometimes they behave no better. They can speak English and they have worn Norfolk jackets and, therefore, claim the right to force their way in and command seating accommodation.

I have turned the searchlight all over, and as you have given me the privilege of speaking to you, I am laying my heart bare. Surely we must set these things right in our progress towards self-government. I now introduce you to another scene. His Highness the Maharaja who presided yesterday over our deliberations spoke about the poverty of India. Other speakers laid great stress upon it. But what did we witness in the great pandal in which the foundation ceremony was performed by the Viceroy? Certainly a most gorgeous show, an exhibition of jewellery, which made a splendid feast for the eyes of the greatest jeweler who chose to come from Paris. I compare with the richly bedecked noble men the millions of the poor. And I feel like saying to these noble men, "There is no salvation for India unless you strip yourselves of this jewellery and hold it in trust for your countrymen in India." I am sure it is not the desire of the King-Emperor or Lord Hardinge that in order to show the truest loyalty to our King-Emperor, it is necessary for us to ransack our jewellery boxes and to appear bedecked from top to toe. I would undertake, at the peril of my life, to bring to you a message from King George himself that he excepts nothing of the kind.

Sir, whenever I hear of a great palace rising in any great city of India, be it in British India or be it in India which is ruled by our great chiefs, I become jealous at once, and say, "Oh, it is the money that has come from the agriculturists." Over seventy-five per cent of the population are agriculturists and Mr. Higginbotham told us last night in his own felicitous language, that they are the men who grow two blades of grass in the place of one. But there cannot be much spirit of self-government about us, if we take away or allow others to take away from them almost the whole of the results of their labour. Our salvation can only come through the farmer. Neither the lawyers, nor the doctors, nor the rich landlords are going to secure it.

Now, last but not the least, it is my bounden duty to refer to what agitated our minds during these two or three days. All of us have had many anxious moments while the Viceroy was going through the streets of Banaras. There were detectives stationed in many places. We were horrified. We asked ourselves, "Why this distrust?" Is it not better that even Lord Hardinge should die than live a living death? But a representative of a mighty sovereign may not. He might find it necessary to impose these detectives on us? We may foam, we may fret, we may resent, but let us not forget that India of today in her impatience has produced an army of anarchists. I myself am an anarchist, but of another type. But there is a class of anarchists amongst us, and if I was able to reach this class, I would say to them that their anarchism has no room in India, if India is to conqueror. It is a sign of fear. If we trust and fear God, we shall have to fear no one, not the Maharajas, not the Viceroys, not the detectives, not even King George.

I honour the anarchist for his love of the country. I honour him for his bravery in being willing to die for his country; but I ask him-is killing honourable? Is the dagger of an assassin a fit precursor of an honourable death? I deny it. There is no warrant for such methods in any scriptures. If I found it necessary for the salvation of India that the English should retire, that they should be driven out, I would not hesitate to declare that they would have to go, and I hope I would be prepared to die in defense of that belief. That would, in my opinion, be an honourable death. The bomb-thrower creates secret plots, is afraid to come out into the open, and when caught pays the penalty of misdirected zeal.

I have been told, "Had we not done this, had some people not thrown bombs, we should never have gained what we have got with reference to the partition movement." (Mrs. Besant : 'Please stop it.') This was what I said in Bengal when Mr. Lyon presided at the meeting. I think what I am saying is necessary. If I am told to stop I shall obey. (Turning to the Chairman) I await your orders. If you consider that by my speaking as I am, I am not serving the country and the empire I shall certainly stop. (Cries of 'Go on.') (The Chairman: 'Please, explain your object.') I am simply. . . (another interruption). My friends, please do not resent this interruption. If Mrs. Besant this evening suggests that I should stop, she does so because she loves India so well, and she considers that I am erring in thinking audibly before you young men. But even so, I simply say this, that I want to purge India of this atmosphere of suspicion on either side, if we are to reach our goal; we should have an empire which is to be based upon mutual love and mutual trust. Is it not better that we talk under the shadow of this college than that we should be talking irresponsibly in our homes? I consider that it is much better that we talk these things openly. I have done so with excellent results before now. I know that there is nothing that the students do not know. I am, therefore, turning the searchlight towards ourselves. I hold the name of my country so dear to me that I exchange these thoughts with you, and submit to you that there is no room for anarchism in India. Let us frankly and openly say whatever we want to say our rulers, and face the consequences if what we have to say does not please them. But let us not abuse.

I was talking the other day to a member of the much-abused Civil Service. I have not very much in common with the members of that Service, but I could not help admiring the manner in which he was speaking to mw. He said : "Mr. Gandhi, do you for one moment suppose that all we, Civil Servants, are a bad lot, that we want to oppress the people whom we have come to govern?" "No", I said. "Then if you get an opportunity put in a word for the much-abused Civil Service." And I am here to put in that word. Yes, many members of the Indian Civil Service are most decidedly overbearing; they are tyrannical, at times thoughtless. Many other adjectives may be used. I grant all these things and I grant also that after having lived in India for a certain number of years some of them become somewhat degraded. But what does that signify? They were gentlemen before they came here, and if they have lost some of the moral fiber, it is a reflection upon ourselves.

Just think out for yourselves, if a man who was good yesterday has become bad after having come in contact with me, is he responsible that he has deteriorated or am I? The atmosphere of sycophancy and falsity that surrounds them on their coming to India demoralizes them, as it would many of us. It is well to take the blame sometimes. If we are to receive self-government, we shall have to take it. We shall never be granted self-government. Look at the history of the British Empire and the British nation; freedom loving as it is, it will not be a party to give freedom to a people who will not take it themselves. Learn your lesson if you wish to from the Boer War. Those who were enemies of that empire only a few years ago have now become friends. . . .

(At this point there was an interruption and a movement on the platform to leave. The speech, therefore, ended here abruptly.)

Source: This speech is taken from The Selected Works of Mahatma Gandhi, Volume V, The Voice of Truth Part-I, Some Famous Speeches, p. 3 to 13

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mahatma gandhi and lal bahadur shastri jayanti : 2 अक्टूबर महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जयंती पर दें ये आसान भाषण

Mahatma gandhi and lal bahadur shastri jayanti : 2 अक्टूबर का दिन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती के अलावा लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी मनाई जाती है। लाल बहादुर..

mahatma gandhi and lal bahadur shastri jayanti : 2 अक्टूबर महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जयंती पर दें ये आसान भाषण

mahatma gandhi and lal bahadur shastri jayanti : भारत के लिए 2 अक्टूबर का दिन काफी महत्वपूर्ण है। 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती के अलावा लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी मनाई जाती है। लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे। शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। 2 अक्टूबर के दिन स्कूल, कॉलेजों में वाद-विवाद और भाषण प्रतियोगिता का भी आयोजन होता है। आज हम आपको 2 अक्टूबर पर आसान भाषण बता रहे हैं...

  • अभिभावन से करें भाषण की शुरुआत 

आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, सम्माननीय शिक्षक गण एवं मेरे प्यारे भाइयो और बहनों आज मुझे आपके समक्ष लाल बहादुर शास्त्री जैसे महापुरुष के बारे मे बताते हुए बेहद खुशी हो रही है। लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माता का रामदुलारी था। इनके पिता एक शिक्षक थे। शास्त्री जी अपने परिवार में सबसे छोटे थे, इसलिए सब प्यार से उन्हे नन्हे बुलाते थे। शास्त्री जी एक क्रांतिकारी व्यक्ति थे और इनके द्वारा गांधी जी के नारे को ‘मरो नहीं, मारो’ में चतुराई से बदलाव मात्र से देश में क्रांति की भावना जाग उठी और उसने प्रचंड रूप ले लिया और इसके लिए शास्त्री जी को जेल भी जाना पड़ा। आजादी के बाद शास्त्री जी की साफ-सुथरी छवि ने उन्हे नेहरू जी के मृत्यु के बाद देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया और उनके सफल मार्गदर्शन में देश काफी आगे बढ़ा। अनाजों की कीमतों में कटौती, भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में सेना को खुली छूट देना, ताशकंद समझौता जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाते में उनकी मृत्यु ताशकंद में रहस्यमयी तरीके से हो गई।लाल बहादुर शास्त्री अपने देश के लिए बलिदान और सच्ची देश भक्ती के लिए सदैव जाने जाएंगे। मरणोपरांत इन्हे भारत रत्न से सम्मानित किया गया। ‘

आज़ादी की रक्षा केवल सैनिकों का काम नही है, पूरे देश को मजबूत होना होगा।‘ 

  • आदरणीय अध्यापकगण और मेरे साथियों... 

आज 2 अक्टूबर है और न सिर्फ पूरा हिन्दुस्तान, बल्कि दुनिया के कई देश 152वीं गांधी जयंती मना रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। आगे चलकर लोगों के बीच वह बापू के नाम से पुकारे जाने लगे। बापू ने देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने में सबसे अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत के दम पर अंग्रेजों को कई बार घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। उनके अहिंसा के सिद्धांत को पूरी दुनिया ने सलाम किया, यही वजह है कि पूरा विश्व आज का दिन अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर भी मनाता है। महात्मा गांधी के विचार हमेशा से न सिर्फ भारत, बल्कि पूरे विश्व का मार्गदर्शन करते आए हैं और आगे भी करते रहेंगे।

महात्मा गांधी की महानता, उनके कार्यों व विचारों के कारण ही 2 अक्टूबर को स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की तरह राष्ट्रीय पर्व का दर्जा दिया गया है। 

गांधी जी इस बात में विश्वास रखते थे कि हिंसा के रास्ते पर चलकर आप कभी भी अपने अधिकार नहीं पा सकते। उन्होंने विरोध करने के लिए सत्याग्रह का रास्ता अपनाया। 

महात्मा गांधी ने लंदन में कानून की पढ़ाई की थी। लंदन से बैरिस्टर की डिग्री हासिल कर उन्होंने बड़ा अफसर या वकील बनना उचित नहीं समझा, बल्कि अपना पूरा जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया। अपने जीवन में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलन किए। वह हमेशा लोगों को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ते रहे।  चंपारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडी सत्याग्रह, दलित आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन उनके कुछ प्रमुख आंदोलन ने जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव कमजोर करने में बड़ा रोल अदा किया।  गांधीजी ने भारतीय समाज में व्याप्त छुआछूत जैसी बुराइयों के प्रति लगातार आवाज उठाई। वो चाहते थे कि ऐसा समाज बने जिसमें सभी लोगों को बराबरी का दर्जा हासिल हो क्योंकि सभी को एक ही ईश्वर ने बनाया है। उनमें भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। नारी सशक्तीकरण के लिए भी वह हमेशा प्रयासरत रहे। 

साथियों! यह बात सही है कि हम सभी गांधीजी का काफी सम्मान करते हैं। लेकिन उनके सपने तो सभी पूरे होंगे जब हम उनके बताए शांति, अहिंसा, सत्य, समानता, महिलाओं के प्रति सम्मान जैसे आदर्शों पर चलेंगे।  तो आज के दिन हमें उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए।   धन्यवाद।  जय हिन्द!

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