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युद्ध के प्रभाव | Effects of War in Hindi

युद्ध के प्रभाव | Effects of War in Hindi

युद्ध के प्रभाव

युद्ध के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

1. राजनयिक सम्बन्धों पर प्रभाव- युद्ध आरम्भ होने का सबसे पहला प्रभाव राजनयिक सम्बन्धों पर पड़ता है। जिन देशों के बीच युद्ध छिड़ता है उनके राजदूतों को स्वदेश लौट जाने के लिये कहा जाता है। यह व्यवस्था की जाती है कि राजदूतों को स्वदेश पहुँचने में किसी प्रकार का खतरा न हो। जब तक वे स्वदेश नहीं पहुँच जाते तब तक उनको राजनयिक विशेषाधिकारों का उपयोग करने का भी अधिकार रहता है। राजदूतों के चले जाने पर उनके दूतावास किसी तटस्थ देश को सौंप दिये जाते हैं और उनके कागज पत्रों को मुहरबन्द कर दिया जाता है, ताकि उनका रहस्योद्घाटन न हो। राजनयिक दूतों के अतिरिक्त वाणिज्य दूतों से भी सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया जाता है।

2. व्यापारिक सम्बन्धों पर प्रभाव – युद्ध छिड़ने पर युद्धरत राष्ट्रों के व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं। यदि पूरी तरह से समाप्त नहीं होते तो कम से कम युद्ध काल तक के लिये स्थगित तो अवश्य हो जाते हैं। यदि युद्ध के दौरान में योद्धा राष्ट्रों के बीच व्यापार की आवश्यकता पड़ती है तो उसके लिये विशेष व्यवस्था की जाती है और इस प्रकार की गई व्यवस्था के अतिरिक्त अन्य प्रकार के व्यापार को निषिद्ध कर दिया जाता है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान में इंग्लैण्ड की सरकार ने पास करके शत्रु देशों के साथ व्यापार करने की विशेष अनुमति प्रदान की थी। इस अधिनियम में की गई व्यवस्थाओं के अतिरिक्त और सभी प्रकार के हर को निषिद्ध कर दिया गया था। इस प्रकार का कानून यू.एस. भी बनाया था। वहाँ भी शत्रु देशों के साथ सम्पूर्ण व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त कर दिये गये थे। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि युद्ध के दौरान में प्रायः सभी युद्धरत देश आपसी व्यापार को निषिद्ध कर देते हैं।

3. ॠण पर प्रभाव – युद्ध का ऋणों पर भी प्रभाव पड़ता है। युद्ध छिड़ने पर ऋणदाता राज्य का अधिकार सदा के लिये समाप्त नहीं हो जाता। युद्ध के बाद शान्ति स्थापित हो जाने के पश्चात् ऋणदाता राज्य ऋणी राज्य से भुगतान लेने का हकदार हो जाता है। युद्ध के दौरान में किये गये ऋण भुगतान के लिये ऋणी राज्य को बाध्य नहीं किया जाता।

4. समझौते पर प्रभाव – योद्धा राष्ट्रों के बाध्य राजनयिक और व्यापारिक सम्बन्धों के समाप्त हो जाने का परिणाम यह होता है कि इन राज्यों के नागरिकों, कम्पनियों, निगमों आदि द्वारा किये गये आपसी समझौते भी भंग हो जाते हैं। योद्धा राष्ट्रों के व्यक्तियों अथवा कम्पनियों के बीच साझेदारी के समझौते भी टूट जाते हैं। इस संदर्भ में हॉल का कहना है, “युद्ध का प्रभाव केवल युद्धग्रस्त देशा के लोगों के अनुबन्धों पर ही नहीं पड़ता वरन तटस्थ दो के नागरकि तथा युद्धग्रस्त देश के पक्ष में नागरिकों के बीच होने वाले अनुबन्धों पर भी युद्ध का प्रभाव पड़ता है।” फेनविक के अनुसार, ” युद्ध से पूर्व हुए अनुबन्ध या तो समाप्त हो जाते हैं या युद्धकाल तक के लिये स्थगित हो जाते हैं।” युद्ध से कुछ समय पहले किये गये समझौते को यदि तोड़ दिया जाये तो उनके विषय में कोई न्यायिक कार्यवाही युद्ध के दौरान में नहीं की जाती। लेकिन युद्ध के पश्चात् इस प्रकार की कार्यवाही की जा सकती है। युद्ध के छिड़ने का फर्मों आदि पर भी प्रभाव पड़ता है। परस्पर विरोधी राज्यों में यदि एक दूसरे की फर्म हों तो उन पर दूसरे राज्य का अधिकार हो जाता है।

5. शत्रु राज्य के व्यक्तियों पर प्रभाव – युद्ध छिड़ने पर अपने देश में शत्रु देश के व्यक्तियों के साथ शान्तिकाल का-सा व्यवहार नहीं किया जाता। शत्रु देश के जिन व्यक्तियों से यह सम्भावना हो जाती है कि वे उस देश से सम्बन्धित सूचना शत्रु देश को दे रहे हैं, तो उनको बन्दी बना लिया जाता है। इसके अतिरिक्त शत्रु देश के जिन व्यक्तियों पर इस प्रकार का कोई संदेह नहीं होता उनको एक निश्चित समय के अन्दर देश छोड़ देने का आदेश दिया जाता है। प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान शत्रु देश के निवासियों को नजरबन्द किया गया था। सन् 1949 के जेनेवा सम्मेलन में यह निश्चय किया गया कि युद्ध आरम्भ होन पर अथवा युद्ध काल में शत्रु में देश में नागरिकों को अपनी इच्छानुसार अपने देश वापस जाने का इस शर्त पर अधिकार होना चाहिये कि उनका जाना राज्य के हितों के प्रतिकूल न हों।

6. शत्रु देश में योद्धा सम्पत्ति पर प्रभाव – कुछ समय पहले यह प्रथा प्रचलित थी. कि युद्ध छिड़ने पर अपने-अपने देश में शत्रु की सभी प्रकार की सम्पत्ति को जब्त कर लिया जाये लेकिन धीरे-धीरे इस प्रथा का अन्त हो गया। अब अपने देश में शत्रु की वैयक्तिक सम्पत्ति को जब्त नहीं किया जाता और न ही उसके ऋणों को समाप्त किया जाता है। युद्ध के दौरान में अचल सम्पत्ति को युद्ध के कार्यों के लिये जब्त किया जाता है लेकिन किसी भी राज्य को इस बात का अधिकार नहीं है कि वह शत्रु की वैयक्तिक सम्पत्ति पर अपना अधिकार स्थापित कर ले। शत्रु राज्यों के जहाजों के विषय में अन्तर्राष्ट्रीय कानून में विशेष व्यवस्था की गयी है। यह कहा गया है कि शत्रु राज्य के व्यापारिक जहाजों को युद्ध के हितों में कोई योद्धा राज्य, यदि वे खुले समुद्र में हों, अधिकृत कर सकता है।

7. सन्धियों पर प्रभाव – युद्ध का सन्धियों पर क्या प्रभाव पड़ता है यह अत्यन्त विवादास्पद विषय है। कुछ विद्वानों का यह मत हे कि युद्ध छिड़ने पर योद्धा राष्ट्रों के मध्य सभी प्रकार की सन्धियाँ समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत कुछ विद्वानों का कहना है कि युद्धारम्भ से सभी सन्धियाँ समाप्त नहीं होती।

वस्तु स्थिति यह है कि युद्ध का सब प्रकार की सन्धियों पर एक-सा प्रभाव नहीं पड़ता है। कुछ सन्वियाँ तो युद्ध के दौरान में समाप्त हो जाती है, लेकिन कुछ सन्धियाँ ऐसी भी होती हैं जो युद्ध के दौरान में केवल स्थगित होती है। युद्ध काल में जो सन्धियाँ स्थगित हो जाती हैं, वे शान्ति की स्थापना के पश्चात् पुनः अवतरित हो जाती है।

प्रो. स्टार्क के मतानुसार इस बात का निश्चय करने के लिये कि युद्ध छिड़ जाने पर कोई सन्धि चलती रहेगी या रद्द हो जायेगी, सन्धि के उद्देश्यों को देखना आवश्यक होता है। यदि सन्धि करते समय सन्धि कर्ता राष्ट्रों में यह समझौता हो जाता है कि युद्ध छिड़ने पर भी सन्धि मान्य रहेगी, तो वह युद्धारम्भ के पश्चात् भी चलती रहती है। यदि इस प्रकार का कोई समझौता पहले नहीं हो जाता, तो सन्धि रद्द हो जाती है।

दूसरे यदि कोई सन्धि युद्ध चलते हुए भी बनी रह सकती है, अर्थात् उसका बना रहना युद्ध के साथ संगत होता है, तो उस पर युद्धारम्भ का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और वह पहले की भाँति ही विद्यमान रहती है।

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War and peace essay in hindi युद्ध और शांति पर निबंध.

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War and Peace Essay in Hindi

War and Peace Essay in Hindi 800 Words

मनुष्य को गुण, कर्म और स्वभाव से शान्त प्रकृति वाला प्राणी माना जाता है; यद्यपि हर आदमी के भीतरी कोने में अज्ञान रूप से एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहा करता है। प्रायः मनुष्य भरसक चेष्टा कर के भी उसे जागने नहीं देता। जब किसी कारणवश वह जाग ही पड़ता है, तभी तरह-तरह की संघर्षात्मक क्रिया-प्रक्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का भी जन्म हुआ करता है। उन्हीं के घर्षण-प्रत्याघर्षण से उत्पन्न हुआ करती है युद्धों की ज्वाला। यह घर्षण-प्रयाघर्षण जब व्यक्ति या व्यक्तियों के बीच हुआ करता है, तब तो इस सामान्य लड़ाई, गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े जैसे नाम दे दिये जाते हैं। लेकिन जब इस प्रकार की बातें दो देशों के बीच हो जाया करती हैं, तब उसे नाम दिया जाता है-युद्ध! इस प्रकार युद्ध और शान्ति आपस में विलोम कहे और माने जाते हैं। एक के रहते दूसरे का रह पाना कतई संभव नहीं हुआ करता।

सामान्य जीवन जीने के लिए, जीवन में स्वाभाविक गति से प्रगति एवं विकास करने के लिए शान्ति का बना रहना बहुत आवश्यक हुआ करता है। संस्कृति, साहित्य तथा अन्य सभी तरह की ललित एवं उपयोगी कलाएँ भी तभी विकास पा सकती हैं, जब चारों ओर का वातावरण शान्त एवं सामान्य रूप से सुखद हो। हर प्रकार के व्यापार की उन्नति भी शान्त वातावरण में ही संभव हुआ करती है। इन सभी की उन्नति और विकास कोई एक-दो दिन में ही नहीं हो जाया करता। हजारों वर्षों की निरन्तर साधना और प्रयत्न के बाद ही ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला और संस्कृति आदि का कोई स्वरूप बन पाया करता है। लेकिन युद्ध का एक ही झटका युग-युगों की इस साधना को देखते-ही-देखते मटिया-मेट कर दिया करता है। कला-संस्कृति के सभी रूप खण्डहर बन कर रह जाया करते हैं। युद्ध के समय तो विनाश हुआ ही करता है, उसके समाप्त हो जाने के बाद भी वर्षों तक उसका प्रभाव बना रहता है। इसी कारण युद्ध का मनुष्य हमेशा विरोध करता रहता है। शान्ति हमेशा मानव-जाति का इच्छित विषय रहा और आज भी है।

आरम्भ से मनुष्य युद्धों का विरोध करता आ रहा है। युद्ध न होने देने की मानव-जाति ने सदा भरसक चेष्टाएँ भी की हैं, फिर भी तो युद्धों को सदा के लिए समाप्त कर शान्ति बनाए रख पाने में मानव कभी पूर्ण काम नहीं हुआ। महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पहले श्रीकृष्ण भगवान् स्वयं शान्ति-दूत बनकर कौरव-सभा में गए थे। उन्होंने पाँच पाण्डव भाइयों के लिए मात्र पाँच गाँव की मांग रखकर महायुद्ध को टालने का प्रयास किया था; लेकिन दुर्योधन जैसे दुवृत्तों ने उन का प्रयास सफल नहीं होने दिया। खैर, वह तो बीते युगों की बात है। आधुनिक काल में भी प्रथम विश्व युद्ध के बाद ‘लीग आफ नेशन्स’ जैसी संस्था का गठन युद्धों की विभीषिका हमेशा के लिए समाप्त कर शान्ति बनाए रखने और उसके क्षेत्र का अनवरत विकास करते रहने के लिए किया गया था। पर कहाँ रहने दी शान्ति युद्ध-पिपासुओं ने! दूसरा विश्व युद्ध हुआ और पहले से कहीं बढ़ कर विनाशकारी प्रमाणित हुआ। उसके बाद फिर ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (United Nations Organisation) जैसी, संस्था का गठन युद्ध से छुटकारा पाकर शान्ति-कामना से ही किया गया; पर क्या युद्धों का अन्त और शान्ति की स्थापना संभव हो पाई है? वह तो क्या होती थी, आज उसी की आड में छोटे राष्ट्रों पर युद्ध तो थोपे ही जा रहे हैं, दादा-राष्ट्रों द्वारा तरह-तरह की धमकियाँ भी दी जा रही हैं। छोटे-छोटे तो कई युद्ध हो भी चुके हैं। तीन-चार बार तो भारत जैसे स्वभाव से शान्ति प्रेमी देश को युद्ध के लिए बाध्य होना पड़ चुका है। अभी भी सीमाओं पर हमेशा भयावह युद्ध के बादल मण्डराते रहते हैं।

एक सत्य यह भी है कि कई बार शान्ति बनाए रखने के लाख प्रयत्न करते रहने पर भी राष्ट्रों को अपनी अस्मिता, सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़ते हैं। जैसे द्वापर युग में पाण्डवों को, त्रेता युग में श्रीराम को और आज के युग में कई बार भारत को लड़ने पड़े हैं। इस प्रकार शान्ति यदि मान का स्वभाव एवं काम्य विषय है, तो युद्ध परीस्थितिजन्य अनिवार्यता बन जाया करती है। यानि न चाहते हुए भी व्यक्तियों-राष्ट्रों को युद्ध करना ही पड़ता है। फिर भी इतना तो निश्चत है कि किसी भी हाल में युद्ध अच्छी बात नहीं। पराजित और विजेता दोनों को इसके दुष्परिणामों से अनिवार्यतः दो-चार होना पड़ता है। फिर भी मानव का प्रयत्न इसी दिशा में रहना चाहिए कि युद्ध न हों, शान्ति बनी रह सके।

यह एक तथ्य है कि सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, मानवता, विश्व बन्धुत्व जैसे शब्दों का आविष्कार भावना के स्तर पर शान्ति-प्रेमियों द्वारा शान्ति बनाए रखने के लिए ही किया गया है। असत्य, हिंसा, घृणा आदि का विरोध वास्तव में सभी तरह के लड़ाई-झगड़े और युद्ध भी समाप्त करने के लिए किया गया है। धर्म, उदारता, मानवीयता जैसी कल्पनाएँ भी शान्ति की स्थापना और विस्तार के लिए ही की गई हैं। फिर भी युद्ध समाप्त नहीं, किए जा सके। शान्ति स्थापित नहीं हो सकी। दो विलोम परस्पर नीचा दिखाने को कार्यरत हैं और सदा रहेगे – यह एक चरम सत्य हैं।

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युद्ध और शांति पर निबंध

War and Peace Essay in Hindi

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युद्ध और शांति पर निबंध | War and Peace Essay in Hindi

वर्तमान में मनुष्य पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली प्राणी है जिसने पृथ्वी के समस्त प्राणियों पर अपना दबदबा कायम किया है। मनुष्य आज इतना शक्तिशाली हो चुका है कि वह पृथ्वी के बाहर अन्य ग्रहों में भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में लगा हुआ है। लेकिन इतनी शक्ति अर्जित कर लेने के बाद मनुष्य में एक तरह का अहंकार पनप चुका है। अपने अहंकार में वह इतना अंधा हो चुका है कि वह खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने के लिए कई जिंदगियां तबाह करने से पीछे नहीं हटता। मनुष्य के मन में आज अधिक से अधिक शक्तियां हासिल कर खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की होड़ लगी हुई है। वह चाहता है कि वह पूरे विश्व में शासन कर सके। उसकी इसी लालसा ने युद्ध को जन्म दिया।

युद्ध तबाही का दूसरा नाम है आज तक कोई भी युद्ध ऐसा नहीं हुआ है जिसने रक्त की बलि न ली हो। युद्ध से कभी किसी का फायदा नहीं हुआ। इसने हारने वाले पक्ष के साथ-साथ जीतने वाले पक्ष को भी बराबर प्रभावित किया है। युद्ध की वजह से देश में एक अशांत वातावरण का जन्म होता है जिससे देश का विकास संभव नहीं हो पाता। ऐसे में शांति की स्थापना जरूरी है।

युद्ध का अर्थ क्या है?

युद्ध मुख्यतः घर के सदस्यों के बीच होने वाले आपसी लड़ाई झगड़ों से अलग होता है क्योंकि घर में होने वाले झगड़े अल्पकालिक होते हैं तथा इससे ज्यादा हानि नहीं होती। इसमें जल्द ही स्थिति काबू में आ जाती है और शांति की स्थापना होती है। वहीं दूसरी ओर युद्ध इसी लड़ाई झगड़े की चरम स्थिति है। एक तरफ घरेलू लड़ाई झगड़े जहां अल्पकालिक होते हैं वही युद्ध दीर्घकालिक होता है। इसमें विभिन्न देशों के बीच हथियारों समेत एक आक्रामक लड़ाई होती है और यही लड़ाई आगे जाकर महायुद्ध में तब्दील हो जाती है।

युद्ध के पीछे क्या कारण होते हैं?

कोई भी युद्ध बिना किसी कारण के नहीं होता युद्ध में दो पक्षों के बीच में कोई न कोई ऐसा कारण जरूर होता है जो उन्हें युद्ध के लिए तैयार करता है। नीचे कुछ ऐसे ही कारणों का जिक्र किया जा रहा है जो कि निम्नलिखित है:-

  • साम्राज्यवाद

साम्राज्यवाद युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। मनुष्य ज्यादा से ज्यादा शक्तियां हासिल करने के लिए ज्यादा क्षेत्र में अपना अधिकार करना चाहता है। उसकी विस्तारवादी नीतियों के परिणामस्वरूप साम्राज्यवाद का जन्म होता है। अपनी शक्ति के विस्तार के लिए मनुष्य सत्ता और साम्राज्य हासिल करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाता है जिनमें से युद्ध एक है। साम्राज्यवाद की वजह से कई देशों को गुलामी की दास्तां से गुजरना पड़ा है।

यह युद्ध होने के सबसे बड़े कारणों से एक है। कई देशों के आर्थिक हित एक ही जगह से संबंधित होते हैं। इन आर्थिक हितों में टकराव के चलते दो देशों के बीच में तनाव की स्थिति बनती है।

  • धार्मिक, सांस्कृतिक कारण

युद्ध होने के पीछे कई धार्मिक व सांस्कृतिक कारण होते हैं। यदि इतिहास पर गौर फरमाएं तो तब भी कई धर्म युद्ध हो चुके हैं। कई देश यह चाहते है कि उसकी संस्कृति को अन्य देश जाने और पहचाने। कभी-कभी वह अपनी संस्कृतियों को दूसरे देशों पर थोपने का भी प्रयास करता है। जो युद्ध का कारण बनता है।

युद्ध का परिणाम

हमेशा देखा गया है युद्ध का परिणाम कभी सकारात्मक नहीं हुआ है। युद्ध हमेशा ही तबाही लेकर आया है जिससे देश में हाहाकार मच जाता है। युद्ध की वजह से हजारों वर्षों से संचित साहित्य, संस्कृति, ज्ञान विज्ञान पर बुरा असर पड़ता है। युद्ध का परिणाम देश के विकास में भी बाधा डालता है। यह कभी भी लोगों के लिए भलाई नहीं लेकर आया है क्योंकि इससे न जाने कितने बसे-बसाए घर उजड़ जाते हैं। कितनी महिलाएं अपना सुहाग खो देती हैं तो कितनी माताएं अपने बेटों को खो देती हैं।

युद्ध की आवश्यकता

यदि प्राचीन भारत पर गौर फरमाएं तो आप जान सकेंगे कि हमारे देश के कई महापुरुषों ने युद्ध को रोकने की भरसक कोशिशें की हैं। महाभारत में ही भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर आए। उन्होंने कौरवों की सभा में जाकर युद्ध रोकने के प्रयास किए।

यह था युद्ध का पहला पक्ष अब हम युद्ध के दूसरे पहलू को उठा कर देखेंगे। कई बार युद्ध किसी देश के लिए वरदान भी साबित होता है तथा यह शांति स्थापित करने के लिए भी मार्ग प्रशस्त करता है। जहां युद्ध किसी देश में अशांति का कारण बनता है वही यह कई बार किसी देश में शांति स्थापित भी करता है क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि ना चाहते हुए भी मजबूरी में किसी देश को युद्ध में कूदना पड़ता है, जिससे वे अपने देश के स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा कर सकें। इसका ताजा उदाहरण है चीन का भारत पर आक्रमण जिसके जवाब में भारत को चीन के सामने सीना चौड़ा कर खड़ा होना पड़ा जिससे वह अपने देश की रक्षा कर सकें।

युद्ध से किसी देश में विद्यमान पापी, अधर्मी और भ्रष्टाचारी लोगों की समाप्ति की जा सकती है इसीलिए ऐसे लोगों के विनाश में युद्ध एक वरदान साबित होता है।

शांति की स्थापना है जरूरी

कहा जाता है कि एक अशांत मन से किया गया कोई भी कार्य सफल नहीं होता। उसी तरह से एक अशांत देश कभी भी विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता। ऐसा कौन सा शख्स है जो अपने जीवन में शांतिपूर्ण तरीके से रहना नहीं चाहता। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह शांति से अपना जीवन काटे। यही वजह है कि युद्ध की स्थिति से बचने और देश में शांति की स्थापना के लिए समझौते किए जाते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में म्यूनिख समझौता किया गया था। यह समझौता ब्रिटेन के द्वारा किया गया था इसका कारण था कि ब्रिटेन हिटलर से लड़ने में सक्षम नहीं था। इसीलिए यह समझौता किया गया था। अतः कहा जा सकता है कि विनाशकारी स्थितियों से बचने के लिए शांति की स्थापना एकमात्र उपाय है।

स्थाई शांति

जिस तरह युद्ध के दो पक्ष होते हैं उसी तरह शांति के भी दो पक्ष होते हैं। स्थाई शांति, शांति के उस प्रकार को कहते हैं जो युद्ध में अर्जित की गई शांति के बराबर होती है। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। भारत और पाकिस्तान के बीच कभी भी संबंध अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि रोजाना दोनों के मध्य युद्ध होते रहते हैं। इसका कारण है कि भारत ने पाकिस्तान में डर पैदा किया है कि वह उसके प्रत्येक आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब देगा। इसलिए पाकिस्तान ने अपने कदम खींच रखे हैं और आज देश में शांतिपूर्ण माहौल बना हुआ है तथा हम युद्ध की विभीषिका से बचे हुए हैं।

विश्व शांति की जरूरत

समस्त मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए विश्व के कई कोनों से विश्व शांति की मांग उठाई जा रही है। हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं अहिंसा का सिद्धांत दिया उनका कहना था शांति स्थापित करने के लिए कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया जा सकता। महात्मा गांधी ही नहीं बल्कि हमारे देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी पंचशील को जन्म दिया था। विश्व भर में युद्ध की स्थिति से बचने के लिए कई संगठन बनाए गए हैं जो इस पर अपनी आवाज उठाते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि युद्ध विनाश का दूसरा नाम है। युद्ध मनुष्य की तबाही का कारण बनता है इसीलिए हमेशा युद्ध को रोकने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए। लेकिन कई बार देखा गया है कि युद्ध शांति की राह भी अख्तियार करता है। भारत जैसा देश अपने दुश्मन पड़ोसी देशों से घिरा हुआ है। भविष्य को लेकर वह निश्चित नहीं है कि कब कौन सा देश भारत में आक्रमण कर दे। इसीलिए भारत में शांति की स्थापना करने के लिए जरूरी है कि भारत को शक्ति संतुलन में भागीदारी लेना चाहिए। उसके पास कम से कम इतनी शक्ति तो होनी चाहिए कि यदि उस पर कोई आक्रमण कर देता है तो वह उसका मुंह तोड़ जवाब दे सके।

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भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।

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युद्ध और शांति पर निबंध War and Peace OR Yudh Aur Shanti Essay in Hindi

हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Yudh Aur Shanti Essay in Hindi पर पुरा आर्टिकल। युद्ध केवल नाश तथा नष्ट कर सकता है, किसी की भलाई कभी भी नहीं कर सकता।इसलिए हम आपके लिए लाये है आइये पढ़ते है युद्ध और शांति पर निबंध

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  • युद्ध और शांति पर निबंध

प्रस्तावना :

प्रत्येक मनुष्य स्वभाव, कर्म एवं गुणों से शान्त प्रकृति वाला  होता है, परन्तु उसके शान्त हृदय के भीतर कहीं न कहीं एक अशान्त प्राणी भी छिपा रहता है, जो थोड़ा सा भी भड़काने पर हिंसक रूप धारण कर लेता है। वैसे तो हर मनुष्य हृदय से यही चाहता है कि वह हमेशा शान्त व्यवहार  करे लेकिन परिस्थितियां उसे हिंसक बना देती है। मनुष्य की यह प्रवृत्ति ही अनेक युद्धों को जन्म देती है।

युद्ध का अभिप्राय :

जब लड़ाई-झगड़े घर के सदस्यों के बीच होते हैं तो वे घरेलू झगड़े कहलाते हैं तथा अधिक हानिकारक नहीं होते क्योंकि घर का ही कोई समझदार व्यक्ति दोनों पक्षों में सुलह करवा देता है और मामला वही शान्त हो जाता है। जब युद्ध कुछ व्यक्तियों के मध्य होते हैं | तो वे जातीय या साम्प्रदायिक झगड़े कहलाते हैं, जो कभी-कभी तो आसानी से काबू में आ जाते हैं, लेकिन कभी-कभी विकराल रूप धारण कर लेते हैं। लेकिन जब यही युद्ध दो देशों अथवा अनेक देशों के बीच हो जाते हैं, तो वे ‘युद्ध’ अथवा ‘महायुद्ध’ कहलाते हैं।

युद्ध के परिणाम :

युद्ध के परिणाम निःसन्देह बहुत जानलेवा होते हैं, जिनसे हर तरफ हाहाकार मच जाता है। हजारों वर्षों के अथक प्रयासों व साधनों से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला आदि का किया गया विकास कार्य युद्ध के एक झटके से ही तहस-नहस हो जाता है। बसे-बसाए घर तो क्या, गाँव के गाँव नष्ट हो जाते हैं, उनका नामोनिशान भी नहीं दिखता। युद्ध के इन्हीं विकराल कारणों एवं दुष्परिणामों के कारण ही एक सभ्य मनुष्य युद्ध से दूर ही रहना चाहता है, लेकिन कुछ पशु-प्रवृत्ति के लोग युद्ध की आग को भड़काकर ही शान्त होते हैं।

प्राचीन काल से ही युद्ध अपना भयंकर रूप दिखाते आए हैं तथा महापुरुषों ने इन युद्धों को रोकने की भरसक कोशिश की है। तभी तो महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण स्वयं शान्तिदूत बनकर कौरवों की सभा में गए थे। लेकिन कभी कभी शान्ति चाहते हुए भी राष्ट्रों को अपनी स्वतन्त्रता तथा स्वाभिमान की रक्षा हेतु मजबूरीवश युद्ध लड़ने पड़ते हैं। इसका एक उदाहरण द्वापर युग में पाण्डवों द्वारा, त्रेता युग में श्रीराम द्वारा तथा आज के आधुनिक भारतवर्ष में अंग्रेजों तथा आतंकवादियों के खिलाफ लड़े गए युद्ध हैं।

शान्ति की स्थापना :

खुशहाल तथा शान्त जीवन जीने के लिए प्रगति तथा विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए तथा देश की उन्नति के लिए शान्त वातावरण अति आवश्यक है। देश की संस्कृति, कला, विज्ञान, साहित्य तभी विकसित हो पाते है, जब चहुमुंखी शान्ति का वातावरण है। अशान्त मन से तो कोई भी कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न होना असम्भव ही है।

खेल, मनोरंजन, मस्ती, हंगामा भी तो सुखी तथा शान्तचित्त में ही पसन्द आते हैं। इसके अतिरिक्त देश में व्यापार की उन्नति व आर्थिक विकास भी शान्त वातावरण में ही सम्भव है अर्थात् सर्वांगीण विकास के लिए शान्ति एवं सौहार्द ही आवश्यक है।

शान्ति स्थापना :

इस बात से तो कोई भी इंकान नहीं कर सकता कि युद्ध किसी के भी हित में नहीं होता। युद्ध केवल नाश तथा नष्ट कर सकता है, किसी की भलाई कभी भी नहीं कर सकता। इसीलिए शान्ति स्थापना के लिए अनेक प्रयास किए गए। सर्वप्रथम, प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर लीग नेशन्स’ नामक संस्था गठित की गई। लेकिन कुछ समय की शान्ति के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ। इसकी समाप्ति पर संयुक्त राष्ट्र संघ’ नामक संस्था गठित की गई।

मनुष्य की प्रवृत्ति ही ऐसी है वह बहुत जल्दी भूल जाता है तभी तो आज संसार तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में है। आजकल तो खुले आम मानव दूसरों के लिए टाइमबमों का निर्माण कर रहा है। आज अनेक देश जैसे पाकिस्तान अमेरिका, ईरान इत्यादि लड़ने के लिए तैयार है और अपने आतंकवादी भेज रहे हैं। परन्तु यह बात सदा स्मरण रहनी चाहिए कि युद्ध में हानि तो विजेता तथा पराजित पक्ष दोनों की ही होती है।

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मनुष्य को स्वभाव, कर्म व गुणों के आधार पर शान्त प्रकृति वाला प्राणी माना जाता है। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य के हृदय के भीतरी भाग में कहीं-न-कहीं एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहता है। परन्तु मनुष्य का भरसक प्रयत्न रहता है कि वह भीतर का हिंसक प्राणी किसी प्रकार भी जागे नहीं। यदि किसी कारणवश वह जाग पड़ता है तो तरह-तरह की संघर्षात्मक क्रिया-प्रक्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं का जन्म होने  लगता है, तब उनके घर्षण तथा प्रत्याघर्षण से युद्धों की ज्वाला धधक उठती है।

इस प्रकार के युद्ध यदि व्यक्ति या व्यक्तियों के मध्य होते हैं तो वे गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े कहलाते हैं। परन्तु जब इस प्रकार के युद्ध दो देशों के मध्य हो जाते हैं तो वे कहलाते हैं – युद्ध।

सामान्य जीवन जीने के लिए तथा जीवन में स्वाभाविक गति से प्रगति एवं विकास करने के लिए शान्ति का बना रहना अत्यन्त आवश्यक होता है। देश में संस्कृति, साहित्य तथा अन्य उपयोगी कलाएँ तभी विकास पा सकती हैं जब चारों ओर शान्त वातावरण हो। देश में व्यापार की उन्नति व आर्थिक विकास भी शान्त वातावरण में ही संभव हो पाता है। सहस्त्र वर्षों के अथक प्रयत्न व साधन से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला आदि का किया गया विकास युद्ध के एक ही झटके से मटिया-मेट हो जाता है।

युद्ध के इस विकराल रूप को देखकर तथा इसके परिणामों से परिचित होने के कारण मनुष्य सदैव से इसका विरोध करता रहा है। युद्ध न होने देने के लिए मानव ने सदैव से प्रयत्न किए हैं। महाभारत का युद्ध होने से पहले श्रीकृष्ण भगवान् स्वयं शान्ति दूत बनकर कौरव सभा में गए थे।

आधुनिक युग में भी प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद लीग आफ नेशन्स’ जैसी संस्था का गठन किया गया। परन्तु मानव की युद्ध-पिपासा भला शान्त हुई क्या? अर्थात् फिर दूसरा विश्व युद्ध हुआ। इसके बाद शान्ति की स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (UN.O.) जैसी संस्था का गठन हुआ। परन्तु फिर भी युद्ध कभी रोके नहीं जा सके।

एक सत्य यह भी है कि कई बार शान्ति चाहते हुए भी राष्ट्रों को अपनी सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़ते हैं। जैसे द्वापर युग में पाण्डवों को, त्रेता युग में श्रीराम को तथा आज के युग में भारत को लड़ने पड़े हैं। परन्तु यह तो निश्चित ही है कि किसी भी स्थिति में युद्ध अच्छी बात नहीं।

इसके दुष्परिणाम पराजित व विजेता दोनों को भुगतने पड़ते हैं। अतः मानव का प्रयत्न सदैव बना रहना चाहिए कि युद्ध न हों तथा शान्ति बनी रहे।

  • Essay on War and Peace in Hindi

मानव और शक्ति-संचय-वर्तमान में मनुष्य ने देवताओं के समान शक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न प्रारंभ किया है। उसने देवता कहलाने वाले चाँद पर भी विजय प्राप्त कर ली है, किंतु वह प्राप्त शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है। आज मनुष्य अधिक-से-अधिक शक्तिशाली एवं सुदृढ़ बनने के लिए प्रयत्नशील है, जिससे वह समस्त विश्व पर शासन कर सके। शक्ति एवं धन के लिए मानव आज इतना अधिक व्याकुल है कि वह अपने कर्तव्यों तक को भूल गया है। सर्वत्र भय और घृणा का वातावरण व्याप्त है, जिससे युद्ध को बल मिलता है।

मानव और स्वार्थ-मानव स्वार्थ-प्रवृत्ति से युक्त है। वह कब चाहता है कि उसका पड़ोसी देश फूले-फले? यही ईर्ष्या की आग एक-दूसरे को नष्ट करने के लिए अपनी जीभ लपलपाती रहती है। एक राष्ट्र अपने सिद्धांत और विचारधारा को दूसरे राष्ट्र पर थोपना चाहता है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से अपने सभी उचित-अनुचित कार्यों में समर्थन चाहता है। आज संसार में अस्त्र-शस्त्र के निर्माण तथा उन्हें एकत्रित करने की होड़ लगी हुई है, आखिर क्यों? केवल अपनी दानवी आसुरी पिपासा को युद्ध के रक्त से शांत करने के लिए। धन की प्राप्ति तथा क्षेत्र विस्तार की कामना भी युद्ध के मूल में है।

अनेक धनलिप्सुओं ने इस पावन धरती को पदाक्रांत कर रक्तरंजित किया है। आरंभ में अनेक मुस्लिम आक्रांता भारत के धन की लूटमार के लिए ही यहाँ आए। सिकंदर के हृदय में विश्व-विजय की लालसा अत्यंत बलवती थी। इससे प्रेरित होकर अनेक देशों को युद्धों की लपटों से झुलसाता हुआ वह भारत तक आ पहुँचा था।

प्राचीन और आधुनिक युद्ध में अंतर- प्राचीनकाल में भी शक्तिशाली व्यक्तियों ने अशक्तों पर आक्रमण एवं अत्याचार किए हैं। परंतु उन युद्धों एवं आधुनिक युद्धों में आकाश-पाताल का अंतर है। आज युद्ध-साधनों की व्यापकता इतनी अधिक बढ़ गई कि कब क्या हो जाए, इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। आज युद्ध केवल पृथ्वी तक ही सीमित नहीं, अपितु आकाश भी रणक्षेत्र बना हुआ है। जल, थल और नभ तीनों प्रकार के युद्धकला के नवीन आविष्कारों ने युद्ध के प्रकार में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है।

युद्ध मानव-जाति के मस्तक पर कलंक है, ईश्वरीय सृष्टि के प्रति पाप है। प्राचीनकाल में मुख्यतः युद्ध अपनी क्षमता, साहस तथा चरित्र के उत्थान के लिए किए जाते थे। आदर एवं यश का एकमात्र साधन युद्ध ही था। महान् ‘शूरवीर ईश्वर की तरह पूजे जाते थे। भारतवर्ष में यह विश्वास किया जाता था कि युद्ध-क्षेत्र में जो वीरगति को प्राप्त करते हैं, वे सीधे स्वर्ग को जाते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को उपदेश दिया है-

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: 2/371

युद्ध की विनाश-लीला-लेकिन युद्ध का कल्पनातीत नरसंहार कितनी माताओं की गोद के इकलौते लाड़लों को, कितनी प्रेयसियों के जीवनाधार अमर स्वरों को, कितनी सधवाओं के सौभाग्य-बिंदुओं को, कितनी बहिनों की राखियां को अपने क्रूर हाथों से क्षणभर में ही छीन लेता है। चारों ओर करुण-क्रंदन और चीत्कार सुनाई पड़ता है। कितने बच्चे अनाथ होकर दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं, कितनी विधवाएँ अपने जीवन को सारहीन समझकर आत्महत्या कर लेती हैं, कितने परिवारों का दीपक हमेशा के लिए बुझ जाता है। युवकों के अभाव में देश का उत्पादन बंद हो जाता है।

बचे हुए वृद्ध न खेती कर सकते हैं और न कल-कारखानों में काम। परिणाम यह होता है कि युद्ध के बाद न कोई किसी कला का दक्ष बच पाता है और न वीर। देश में सर्वत्र गरीबी अपना विकराल मुँह फाडकर उसे डसने को तैयार रहती है। विस्फोटों के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है, उत्पादन कम होता है,

कल-कारखाने बंद हो जाते हैं। बम-विस्फोट से भव्य भवन धराशायी हो जाते हैं। सर्वत्र अशांति का राज्य छा जाता है। उत्पादन के अभाव में मूल्य इतने बढ़ जाते हैं कि किसी भी वस्तु को खरीदना संभव नहीं रहता। देश में अकाल की स्थिति आ जाती है। देश की जनता का नैतिक चरित्र गिर जाता है- ‘वुभुक्षितः किं न करोति पापम्।’ अतः युद्ध तथा युद्धोत्तर दोनों ही परिस्थितियाँ जनता के लिए अभिशाप बनकर सामने आती हैं।

युद्ध की आवश्यकता- यह युद्ध का एक पहलू है। यदि हम युद्ध के। | दूसरे पक्ष की ओर दृष्टिपात करें तो हम देखते हैं कि युद्ध हमारे लिए वरदान भी सिद्ध हो सकता है। इसका प्रमाण हमें उस समय मिला, जब पड़ोसी देश चीन ने भारत पर आक्रमण किया। पं. नेहरू की एक पुकार पर ही सारा देश सोना लिए खड़ा था। इसी प्रकार पाकिस्तान के आक्रमण के समय समस्त देश अपने सुख-वैभव को छोड़कर देश की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो गया। यहाँ तक कि बंगला देश की लड़ाई में कितनी माताओं ने अपने वात्सल्य की परवाह न करके अपने गोद को सूना कर लिया।

कितनी बहिनों ने अपने स्नेह की परवाह न करके अपने भाइयों को देश की रक्षा के लिए प्रेषित किया एवं कितनी ही महिलाओं ने अपने सिंदूर की परवाह न करके अपने सुहाग को देश की रक्षा के लिए स्वेच्छा से अर्पित कर दिया। तात्पर्य यह है कि युद्ध से जन-जागरण एवं भावात्मक एकता की स्थापना में सहयोग मिलता है। युद्ध से देश की जनसंख्या कम होती है, युद्ध के समय बेकारी दूर हो जाती है, मनुष्यों

में आत्मबल का उदय होता है। यदि धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो पापियों, अधर्मियों एवं भ्रष्टाचारियों के विनाश के लिए युद्ध एक वरदान बन जाता है। निःशस्त्रीकरण अनिवार्य-जो भी हो, युद्ध मानव-कल्याण के लिए नहीं वरन् विनाश के लिए है। यदि विश्व में मानवता की रक्षा करनी है तो इसके लिए अनिवार्य है- शांति। नि:शस्त्रीकरण आज के युग में विश्व-शांति के लिए अनिवार्य है। वस्तुत: मानव का जीवन शांति से प्रारंभ होता है। देश में शांति की स्थापना दार्शनिकों का स्वप्न है। विश्व-प्रगति शांति पर ही निर्भर है।

इतिहास में स्वर्ण-युग की कल्पना शांति, प्रगति एवं समृद्धि के युग की ही कल्पना है। विज्ञान एवं कलाओं की उन्नति तभी संभव है, जब मानव मस्तक शांत हो। अतः देश के चतुर्मुख विकास के लिए शांति आवश्यक है।

विश्वशांति की माँग-आज का युद्ध संपूर्ण मानव-सभ्यता और समाज का विनाश कर देगा। इसीलिए विश्व के समस्त राष्ट्र एक स्वर से विश्व-शांति की माँग कर रहे हैं। महात्मा गांधी ने भारत में अहिंसा का प्रयोग किया। वे अहिंसा के सच्चे पुजारी थे। देश में शांति स्थापित करने के लिए हमारे प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने पंचशील को जन्म दिया। अहिंसा एवं शांति के अभाव में युद्ध आज विश्व का वरण करने के लिए तैयार है। घर में, पुर में, प्रदेश में ।

सर्वत्र शांति की आवश्यकता है। यदि कलह का बीज पनप गया, द्वेष की अग्नि भड़क उठी तो सभ्यता का गगनचुंबी प्रासाद क्षण-भर में धराशायी हो जाएगा। इस विनाशकारी परिस्थिति से विश्व की रक्षा का एकमात्र उपाय है- शांति।

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विकास का पहिया

प्राचीन काल में बर्बर जनजातियों के लोग जिन गाँवों से होकर गुजरते थे वहाँ खूब लूटपाट और बर्बादी मचाते थे। किन्तु वे सभ्य नहीं होते थे। किन्तु आज हम शिक्षित हैं ,लेखकों और चिंतकों ने हमें जीने का सही मार्ग दिखाया है। यदि दुनिया के देश शान्ति और सौहार्द्र के साथ नहीं रह सकते हैं तो हम हिंसक जानवरों के समान माने जायेंगे और हमें सभ्य नहीं कहा जा सकता है। 

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1 Essay on War International Problem | युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय समस्या पर निबंध

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Essay on War International Problem in Hindi पर 2 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं ।

क्या आप खुद से अच्छा निबंध लिखना चाहते है – Essay Writing in Hindi

युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय समस्या पर निबंध – Essay on War International Problem (850 Words)

यद्यपि विचारको ने मानव-जीवन को युद्ध का मैदान कहा है। डॉ. चन्द्रशेखर भटट ने कहा कि जिसमें वे ही जीवित रहने के अधिकारी हैं जो इस संघर्ष में पार उतरते हैं। फिर युद्ध की पुरातन समस्या है। जहाँ यह कहने वाले लोग होते हैं कि ‘मेरा पक्ष सत्य है’ वहाँ युद्ध सम्भावी हो जाता है। ऐसी प्रवत्ति वाले लोग कर और रहेंगे भी।

ऐसी स्थिति में युद्ध की सम्भावना सदैव रही है और रहेगी। महाभारत के यद्ध में यद से मिलाकर श्री कृष्ण ने यही समझाया कि अपने धर्म को देखते हुए तुझे युद्ध-रूप कर्म से विचलित नहीं होना चाशित युद्ध पुरातन है, इसका पूर्णतः समाधान नहीं है। यह मनीषियों की चिन्ता का विषय रहा है।

युद्धों में जन और धनहानि

कोई भी देश निरन्तर युद्ध में संलग्न रहता है तो दुर्बल हो जाता है। युद्ध में महापुरुषों के स्वाहा हो जाने पर उनका अभाव तब जब खटकता है जब गौरवमयी परम्परा पर प्रश्न-चिह्न लग जाता है। जो देश निरन्तर युद्ध में लगे रहे वे प्रगति के पथ से हटकर प्रतिस्पर्दा की दौड मै वर्षों पीछे रहकर हीन और ग्लानि के बोझ से दबते चले गए। ऐसे बहुत से देश ऐश्वर्य के चरम शिखर पर थे वे युद्ध के बाद पतन के गर्त में जा गिरे।

द्वितीय-विश्वयुद्ध के समय अमेरिका द्वारा गिराए जापान में अणुबम जन-और धन हानि की कहानी कहता है जिसमें नागासाकी और हिरोशिमा सर्वथा धूल में मिल गए। भारत और पाकिस्तान के युद्धों के बाद यही पता चलता है कि चाहे कोई हारे, कोई जीते, हानि दोनों की होती है। अपार जन और धन हानि देशों की अनिवार्य नियति होती है। कितनी ही माताओं की गोद सूनी हो जाती है, कितनी ही स्त्रियों के सिन्दूर पुछ जाते हैं, कितने ही बहनों के भाई स्वाहा हो जाते हैं। देश का आर्थिक ढाँचा पंगु हो जाता है।

मानव-सभ्यता का विनाश

युद्ध विशारद मनीषी ने कहा है कि युद्ध की भयानकता को जिन व्यक्तियों ने देखा है, भुगता है वे कभी नहीं चाहते हैं कि युद्ध हो। फिर भी युद्ध में संलग्न होना पड़ता है। युद्ध की भयनकता का अनुमान केवल कल्पनाओं से नहीं किया जा सकता है। युद्ध की पैशाचिक प्रवृत्ति, सभ्यता को युद्ध के क्रूर चक्र में समेट लेती है। प्रत्येक युद्ध मानवीय सभ्यता और संस्कृति के प्राचीन स्थलों को अपनी आग में भस्म कर देता है।

पुरानी और प्राचीन सभ्यता, संस्कृति में परिवर्तन आने लगता है। युद्धों की सम्भावना के कारण जो आण्विक शस्त्र इकट्ठे किए जा रहे हैं उसे देखकर ऐसा लगता है कि एक दिन अवश्य ही समूची मानवता युद्ध की चिनगारी में झुलस कर रह जाएगी। ऐसा लगता है सम्पूर्ण मानवता उधार की जिन्दगी जी रही है। अतः यह यथार्थ है कि युद्धों की कल्पना मात्र ही अति भय उत्पादक होती है। युद्धों में सदियों से निर्मित सभ्यताओं और संस्कृतियाँ का विनाश होता रहा है।

मानवीय मूल्यों का ह्रास

यह सत्य है कि परिवर्तन एक अविराम प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में युद्धों से तीव्रता आ जाती है। इस तरह युद्ध मनुष्य के स्वभाव और विचारों को प्रभावित करते हैं। हम अपने देश की बात करते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि स्वतन्त्र भारतवर्ष के रूप में हमें जो मिला वह अतीत के गौरव का कंकाल मात्र था। नयी पीढ़ी के नवयुवकों को पुराना सब कुछ हास्यास्पद लगने लगा। अपनी सम्पूर्ण परम्पराओं को छोडकर नई संस्कृति के निर्माण में लग गया।

इस प्रकार युद्ध की विभीषिका सहन कर दशा में नवीन जीवन-दर्शन का विकास होता है। नवीन धारणाओं और मान्यताओं का जन्म होता है। प्रेम करुणा दया, सेवा आदि के स्थान पर घणा, द्वेष पनपते हैं। आदिम प्रवृत्ति पनपने लगती है। परस्पर विश्वास की भावना नष्ट होने लगती है। नैतिकता के सारे मापदण्ड धराशायी हो जाते हैं।

विश्व-शान्ति में रुकावट

जब दो देशों में युद्ध होता है तो यही आशंका बनी रहती है कि कहीं बड़े युद्ध में न बदल जाए। ऐसे समय में परस्पर विद्वेष की भावना लिए बाहरी रूप से मित्रता का नाटक करते हैं और आन्तरिक रूप से तनाव की ओर बढ़ते जाते हैं। वर्तमान में शस्त्रों का ढेर देशों के पास इतना पर्याप्त है कि उसका कुछ अंश ही सम्पूर्ण मानवता को राख में बदलने में समर्थ है। इनके रहते विश्व शान्ति की बातें करना हास्पास्पद ही लगती हैं।

सामरिक शक्ति के रहते शान्ति जैसी कल्पनाका अन्त हो गया है। इसके विपरीत देशों में पारस्परिक विश्वास जैसा कोई विचार नहीं रह गया है। यह बहुत दूर तक भावष्य में सम्भव भी नहीं दिखाई देता है। छोटे देशो को बड़े देश अपने मातहत रखना चाहते हैं। इस कारण छोटे देशों की विचार धारा में विश्वास रहा ही नहीं है।

निष्कर्ष में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि एक ओर देशों की बढ़ती हुई सामरिक शक्ति से सत्ताधीश सम्पूर्ण मानवता के भविष्य के प्रतिचिन्तित है तो वही देश दूसरी ओर निरन्तर सामरिक शक्ति और बढ़ा रहे हैं।

अतः दो देशों के बीच सामान्य सी युद्ध की चिनगारी भय उत्पन्न करती है। सभी जानते हैं कि युद्ध विनाशकारी होता है फिर भी आदिम प्रवत्ति मनुष्य से अलग नहीं होती है और देश युद्ध की ओर चल पड़ते है। इस तरह बढ़ते हुए शस्त्रो और देशोंकी महत्त्वांकाक्षा से युद्ध अन्तर राष्ट्रीय समस्या है जिसका अन्त नहीं दिखाई देता है।

तो दोस्तों आपको यह Essay on War International Problem in Hindi पर यह निबंध कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आपको इस निबंध में कोई गलती नजर आये या आप कुछ सलाह देना चाहे तो कमेंट करके बता सकते है।

जीवनी पढ़ें अंग्रेजी भाषा में – Bollywoodbiofacts

2 thoughts on “1 Essay on War International Problem | युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय समस्या पर निबंध”

I don’t think the title of your article matches the content lol. Just kidding, mainly because I had some doubts after reading the article.

Your point of view caught my eye and was very interesting. Thanks. I have a question for you.

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Cold War: Stages and Influence | Hindi | Political Science

essay on war and its effects in hindi

Read this article in Hindi to learn about:- 1. विश्व राजनीति में शीत युद्ध काल (Cold War Period in World Politics) 2. शीत युद्ध के मुख्य सीमा चिह्न (Main Landmarks of the Cold War) 3. मंच (Stages) 4.तनाव शैथिल्य (Stress Staggering) 5. प्रभाव (Influence).

  • शीत युद्ध का प्रभाव (Influence of the Cold War)

1. विश्व राजनीति में शीत युद्ध काल ( Cold War Period in World Politics):

ADVERTISEMENTS:

शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त विश्व राजनीति की महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति है । शीत युद्ध का तात्पर्य राष्ट्रों व उनके गुटों के मध्य घृणा व अविश्वास का वातावरण होता है तथा वे एक-दूसरे को प्रचार तथा अन्य माध्यमों से नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं । यह शस्त्रों से लड़ा जाने वाला युद्ध नहीं है ।

इसमें राष्ट्र एक-दूसरे के विरुद्ध दुष्प्रचार को मुख्य साधन के रूप में अपनाते हैं । शीत युद्ध से राष्ट्रों के मध्य तनाव बढ़ता है तथा यदि तनाव एक सीमा से आगे बढ़ जाता है तो वह वास्तविक युद्ध को जन्म दे सकता है ।

संक्षेप में शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दो गुटों अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी पूँजीवादी गुट तथा भूतपूर्व सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट के मध्य तनाव की ऐसी स्थिति थी जिसने दोनों गुटों के बीच ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में घृणा व अविश्वास का वातावरण उत्पन्न किया तथा वैश्विक समस्याओं के समाधान को जटिल बना दिया ।

‘शीत युद्ध’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले अमेरिका के विद्वान बर्नाड एम बरूच ने 1947 में किया था । मोहन सुन्दर राजन ने शीत युद्ध की व्याख्या करते हुये लिखा है कि यह दो गुटों के मध्य शक्ति-संघर्ष विचारधाराओं के संघर्ष जीवन-शैली तथा राष्ट्रीय हितों के संघर्ष की राजनीति का मिला-जुला परिणाम है । इन तत्वों का अनुपात समय-समय पर बदलता रहा है, लेकिन वे एक-दूसरे को मजबूती प्रदान करते रहे हैं ।

लुई हाल के अनुसार शीत युद्ध परमाणु युग में शस्त्र युद्ध से भी भयानक स्थिति है । उनके अनुसार शीत युद्ध ने अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के स्थान पर उन्हें अधिक उलझा दिया है ।

शीत युद्ध-उद्‌भव तथा कारण (दो महाशक्तियों का उदय):

शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व राजनीति की महत्त्वपूर्ण घटना है । 1991 में सोवियत रूस के विघटन के उपरान्त ही साम्यवादी गुट का अन्त हो गया तथा इसे ही शीत युद्ध के अन्त के रूप में जाना जाता है । द्वितीय विश्व युद्ध से 1991 तक शीत युद्ध की तीव्रता में कई उतार चढ़ाव देखे गये हैं । शीत युद्ध की राजनीति ने इस काल में विश्व की सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को प्रभावित किया है ।

विद्वानों ने शीत युद्ध के विकास हेतु निम्नलिखित कारकों को उत्तरदायी माना है :

1. 1917 में रूस में साम्यवादी क्रान्ति का सूत्रपात हुआ । सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा अमेरिका व पश्चिमी देशों की पूँजीवादी विचारधारा की विरोधी है । अंत: दोनों गुटों के मध्य वैचारिक संघर्ष का आरम्भ यहीं से होता है । शीत युद्ध काल में दोनों गुटों ने एक-दूसरे के वैचारिक प्रभाव को सीमित करने का भरसक प्रयास किया है ।

2. द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब हिटलर ने सोवियत संघ के विरुद्ध आक्रमण किया तो सोवियत संघ ने अमेरिका व पश्चिमी देशों से हिटलर के विरुद्ध दूसरा मोर्चा खोलने का अनुरोध किया था लेकिन अमेरिका ने दूसरा मोर्चा खोलने में देरी की जिससे सोवियत संघ को अकेले ही जर्मन आक्रमण का सामना करना पड़ा । इस घटना से अमेरिका व सोवियत संघ के बीच मनमुटाव बढ़ गया ।

3. युद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के देशों हंगरी, यूगोस्लाविया, रूमानिया, बुल्गारिया आदि में अपने साम्यवादी प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया जिसका अमेरिका व पश्चिमी गुट द्वारा तीव्र विरोध किया गया । इसी तरह ईरान से सोवियत संघ ने अपनी सेनाएँ हटाने में आनाकानी की । यूनान में भी सोवियत संघ के साम्यवादी हस्तक्षेप से पश्चिमी देश नाराज हो गये ।

4. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही अमेरिका द्वारा परमाणु बम का आविष्कार किया गया जिसकी जानकारी उसने अपने पश्चिमी मित्रों को दे दी, लेकिन सोवियत संघ को इसकी जानकारी नहीं दी गयी । सोवियत रूस ने इसे विश्वासघात माना क्योंकि अमेरिका व सोवियत संघ युद्ध में एक साथ थे ।

5. द्वितीय विश्व युद्ध के अन्तिम चरण में एक तरफ अमेरिका व पश्चिमी देशों तथा दूसरी तरफ सोवियत संघ दोनों ने एक-दूसरे की नीतियों की आलोचना आरम्भ कर दी । सोवियत समाचार पत्रों में जहाँ अमेरिका विरोधी लेख प्रकाशित हुये वहीं अमेरिका व ब्रिटेन के विदेश सचिवों ने अपने एक संयुक्त बयान में 18 अगस्त 1945 को कहा कि हमें तानाशाही के एक रूप के स्थान पर दूसरे रूप की स्थापना को रोकना चाहिये ।

इस कड़ी में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने 5 मार्च, 1946 को फुल्टन नामक स्थान पर दिये गये अपने प्रसिद्ध भाषण में सोवियत संघ के शासन को लौह आवरण बताते हुये स्वतंत्रता की रक्षा के लिये सोवियत संघ के विरुद्ध एक रेल-अमेरिकी गठबन्धन की आवश्यकता पर बल दिया ।

चर्चिल के इसी भाषण को शीत युद्ध की औपचारिक शुरुआत के रूप में जाना जाता है । शीत युद्ध के परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर दोनों गुटों के सैनिक गठबन्धनों का विकास हुआ वहीं दूसरी ओर दोनों महाशक्तियों के मध्य शस्त्रों की दौड़ को भी बढ़ावा मिला । यद्यपि दोनों महाशक्तियों के मध्य तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ लेकिन शीत युद्ध से विश्व में तनाव व अविश्वास को बढ़ावा मिला तथा कई वैश्विक समस्याओं का समाधान जटिल हो गया ।

सैनिक गठबन्धनों की स्थापना ( Establishment of Military Alliances ):

यद्यपि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में सामूहिक सुरक्षा के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी थी, लेकिन दोनों गुटों ने अपने प्रभाव में वृद्धि करने तथा अपने सहयोगियों की सुरक्षा बढ़ाने के लिये सैनिक गठबन्धनों की स्थापना की नीति अपनायी ।

अमेरिका तथा उसके पश्चिमी सहयोगी देशों ने जहाँ 1949 में ‘नाटो’-नार्थ अटलांटिक संधि संगठन’ की स्थापना की वहीं सोवियत संघ तथा उसके साम्यवादी सहयोगियों ने 1955 में ‘वारसा’ सन्धि की स्थापना की । इन सैन्य गठबन्धनों की सन्धि में इस बात का प्रावधान किया गया था कि यदि किसी एक सदस्य देश पर बाह्य आक्रमण होता है तो वह सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जायेगा ।

अत: इन सैनिक गठबन्धनों से वैश्विक सुरक्षा के स्थान पर असुरक्षा व तनाव को बढ़ावा मिला । 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद 1992 में वारसा सन्धि संगठन को भंग कर दिया गया था लेकिन नाटो का अस्तित्व अब भी बना हुआ है ।

बल्कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद नाटो का विस्तार पूर्वी यूरोप के देशों में किया गया है । सैनिक गठबन्धनों की राजनीति केवल यूरोप तक ही सीमित नहीं थी । पश्चिमी गुट द्वारा इनका विस्तार पश्चिम एशिया दक्षिण-पूर्वी एशिया तथा अन्य क्षेत्रों में भी किया ।

दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों जैसे कम्बोडिया, लाओस, वियतनाम आदि को साम्यवादी प्रभाव में जाने से रोकने के लिये 8 सितम्बर, 1954 को ‘सीटो’ -साउथ-ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन-सैनिक सन्धि पर हस्ताक्षर किये गये ।

1955 में मध्य एशिया में पश्चिमी प्रभाव को मजबूत करने के लिये ‘सेण्टो’ -सेण्ट्रल ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन- नामक सैनिक सन्धि संगठन की स्थापना की गयी । पाकिस्तान भी सेण्टो तथा SEATO का सदस्य था तथा इसे बगदाद पैक्ट के नाम से भी जाना जाता है ।

शस्त्रों की दौड़ को बढ़ावा:

शीत युद्ध के समय दोनों गुटों के मध्य केवल परम्परागत शस्त्रों को ही नहीं वरन् आणविक शस्त्रों की दौड़ को बढ़ावा मिला । द्वितीय विश्व युद्ध के समय केवल अमेरिका ही परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र था, लेकिन 15 वर्षों के अन्दर अन्य चार देश- सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस, व चीन भी घोषित परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन गये । सोवियत संघ ने अगस्त 1953 में ही परमाणु परीक्षण कर लिया था ।

यद्यपि तनाव शैथिल्य के चरण में 1970 में महाशक्तियों ने परमाणु हथियारों के विस्तार पर रोक लगाने के लिये परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किये लेकिन परमाणु हथियारों के विस्तार को नहीं रोका जा सका । धीरे-धीरे भारत, पाकिस्तान, इजराइल व उत्तरी कोरिया ने भी परमाणु हथियारों की क्षमता अर्जित कर ली । अत: शस्त्रों की दौड़ शीत युद्ध का आवश्यक अंग था ।

2. शीत युद्ध के मुख्य सीमा चिह्न ( Main Landmarks of the Cold War):

शीतयुद्ध का काल 1945 से 1991 तक माना जाता है । इस कालखण्ड की महत्वपूर्ण घटनाएँ निम्नलिखित हैं:

अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एसट्रूमैन द्वारा ट्रूमैन सिद्धान्त की 12 मार्च को घोषणा, जिसके अन्तर्गत अमेरिका विश्व के विभिन्न देशों में साम्यवाद के प्रसार को रोकने की नीति अपनायेगा ।

23 अप्रैल को अमेरिका के विदेश सचिव जान मार्शल ने ‘मार्शल योजना’ की घोषणा की, जिसके अन्तर्गत यूरोप को साम्यवादी प्रभाव से बचाने के लिये पुनर्निर्माण हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की जायेगी । यह योजना 1952 तक चली ।

3. 1948-49:

सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की घेराबन्दी, जिसके कारण अमेरिका तथा उसके सहयोगियों को पश्चिम बर्लिन के लिये आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति वायु मार्ग से करनी पड़ी ।

4. कोरिया युद्ध (1950-53):

युद्ध के परिणामस्वरूप 38वीं अक्षांश रेखा के आधार पर कोरिया का विभाजन उत्तरी कोरिया साम्यवादी प्रभाव में तथा दक्षिण कोरिया पश्चिमी देशों के प्रभाव में आया ।

अगस्त में सोवियत संघ द्वारा पहला परमाणु परीक्षण ।

वियतनाम द्वारा फ्रांस की पराजय, वियतनाम समस्या पर जेनेवा समझौता, 17वीं अक्षांश के आधार पर वियतनाम का उत्तरी व दक्षिणी वियतनाम में विभाजन, तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये सीटो सन्धि संगठन की स्थापना ।

7. 1954-1975:

वियतनाम में अमेरिकी सैनिक हस्तक्षेप अमेरिका को सैनिक असफलता ।

मध्य एशिया के लिये अमेरिका द्वारा बगदाद पैक्ट अथवा सेण्टो सन्धि संगठन की स्थापना ।

सोवियत सेनाओं द्वारा हंगरी में सैनिक हस्तक्षेप तथा वहाँ साम्यवादी शासन की स्थापना ।

अमेरिका द्वारा क्यूबा के पास पिगस की खाड़ी में सैनिक हस्तक्षेप, बर्लिन की दीवार का निर्माण ।

क्यूबा, मिसाइल संकट, जिसे शीत युद्ध के चरमोत्कर्ष के रूप में जाना जाता है ।

डोमिनिकन गणराज्य में अमेरिकी सैनिक हस्तक्षेप ।

चेकास्लोवाकिया में सोवियत सैनिक हस्तक्षेप तथा साम्यवादी शासन की स्थापना ।

अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन द्वारा चीन की ऐतिहासिक यात्रा । भारत व चीन के सम्बन्ध अभी तक अच्छे नहीं थे, क्योंकि चीन एक साम्यवादी देश है तथा अमेरिका सुरक्षा परिषद् में चीन की सदस्यता का विरोध कर रहा था । इस परिवर्तन को ‘पिंग पोंग’ कूटनीति का परिणाम माना जाता है, जिसके अन्तर्गत अमेरिका ने चीन से सम्बन्ध सुधारने के लिये 1970 में अपनी टेबल-टेनिस टीम को चीन भेजा था ।

15. 1978-89:

वियतनाम द्वारा कम्बोडिया में सैनिक हस्तक्षेप व वियतनाम युद्ध ।

16. 1979-89:

अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं की तैनाती ।

मिखाइल गार्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने तथा आन्तरिक सुधारों हेतु पेरेस्ट्राइका तथा गलैसनास्ट नीतियाँ लागू की ।

नवम्बर में बर्लिन की दीवार टूटी तथा पूर्वी जर्मनी में सरकार के विरुद्ध व्यापक जन आन्दोलन ।

3 अक्टूबर को पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण ।

अगस्त में सोवियत संघ का विघटन तथा शीत युद्ध युग का अन्त ।

3. शीत युद्ध के मंच ( Stages of Cold War):

शीत युद्ध में दोनों महाशक्तियों व उनके गुटों का मुख्य उद्देश्य अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर दूसरे को कमजोर करना था । अत: तीसरी दुनिया के देशों से जुड़े मुद्‌दों, विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय मैचों, विश्व के अन्य क्षेत्रों को शीत युद्ध के मैचों के रूप में प्रयोग किया गया ।

शीत युद्ध के मंचों से तात्पर्य उन मुद्‌दों व क्षेत्रों से है जहाँ दोनों महाशक्तियाँ तथा उनके गुट अपने वर्चस्व की लड़ाई में संलग्न थे, जिससे उनके मध्य तनाव तथा युद्ध की आशंका का वातावरण तैयार हुआ । शीत युद्ध के इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं तथा कई ऐसे तत्वों का विकास हुआ है, जिन्होंने शीतयुद्ध के भयावह परिणामों को रेखांकित किया है । कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, जिससे तीसरे विश्व युद्ध की आशंका बढ़ गयी ।

इनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है:

1. जर्मनी का विभाजन ( Germany’s Partition) :

जर्मनी का विभाजन शीत युद्ध की एक महत्वपूर्ण घटना है । द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी पराजित हुआ था । जर्मनी के पश्चिमी क्षेत्रों पर पश्चिमी देशों-अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस का कब्जा था, जबकि इसके पूर्वी भाग पर सोवियत संघ का कब्जा था । पश्चिमी देशों तथा सोवियत संघ के बीच जर्मनी के एकीकरण के बारे में कोई सहमति नहीं बन पाई ।

परिणामत: 21 सितम्बर, 1949 को पश्चिमी देशों ने अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों को मिलाकर पश्चिमी जर्मनी अथवा फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी की स्थापना कर दी । इसके उत्तर में सोवियत रूस ने अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र में पूर्वी जर्मनी अथवा जर्मन प्रजातांत्रिक गणराज्य की स्थापना कर दी । अंतत: शीत युद्ध की समाप्ति के समय 1990 में ही जर्मनी का एकीकरण हो सका ।

2. कोरिया युद्ध (Korea War (1950-53)):

द्वितीय विश्व युद्ध के समय कोरिया पर जापान का नियंत्रण था लेकिन जापान की पराजय के बाद इसके उत्तरी हिस्सों पर साम्यवादी गुटों का नियंत्रण हो गया जबकि इसके दक्षिणी हिस्सों पर गैर-साम्यवादी गुटों का नियंत्रण था । दोनों भागों में युद्ध हुआ जिसमें उत्तरी कोरिया को चीन तथा सोवियत संघ का समर्थन प्राप्त था जबकि दक्षिण कोरिया को पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त था ।

संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् ने सोवियत संघ की अनुपस्थिति में उत्तरी कोरिया को आक्रमणकारी घोषित कर दिया । परिणामस्वरूप अमेरिका के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र की सेनाओं ने उत्तरी कोरिया के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही की । 1950-53 के मध्य चले इस युद्ध में जब युद्ध विराम समझौता हुआ तो कोरिया का विभाजन कर दिया गया । आज भी दोनों कोरिया अलग-अलग देश हैं ।

3. क्यूबा मिसाइल संकट, 1962 ( Cuban Missile Crisis) :

क्यूबा मिसाइल संकट शीत युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण घटना है । यह शीत युद्ध के चरमोत्कर्ष का प्रतीक है । इसने तीसरे विश्व युद्ध का खतरा उत्पन्न कर दिया था । लेकिन इसके बाद तनाव शैथिल्य के लक्षण दिखाई दिये । क्यूबा अमेरिका के निकट एक छोटा द्वीप है, जहाँ 1959 में फिडेल कास्त्रो के नेतृत्व में क्रान्ति के उपरान्त साम्यवादी शासन की स्थापना हुई थी ।

अमेरिका ने अपने पड़ोस में साम्यवादी शासन को पसन्द नहीं किया । सोवियत संघ ने क्यूबा की सैनिक व आर्थिक मदद की तथा वहाँ सैनिक अड्‌डे स्थापित किये जिससे अमेरिका की सुरक्षा चिन्तायें बढ़ गई । अन्तत: 22 अक्टूबर, 1962 को अमेरिका ने क्यूबा की नाकेबन्दी की घोषणा कर दी जिससे अब क्यूबा में सोवियत सैन्य सामग्री व आणविक मिसाइल नहीं पहुंच सकती थी ।

इससे दोनों महाशक्तियों के मध्य युद्ध की आशंका बढ़ गयी । अन्तत: सोवियत राष्ट्रपति ख्रुश्चेव ने क्यूबा में आणविक मिसाइलें न भेजने का निर्णय लिया जिससे यह संकट समाप्त हुआ । अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी ने ख्रुश्चेव के निर्णय को ‘एक महान राजनेता का निर्णय’ कहकर उसकी सराहना की । इससे तीसरे विश्व युद्ध का खतरा टल सका ।

4. कांगो संकट व तीसरी दुनिया के अन्य क्षेत्र ( Congo Crisis and Other Areas of the Third World):

तीसरी दुनिया के देशों पर प्रभुत्व को लेकर दोनों महाशक्तियों में तनाव की कई घटनाएँ सामने आयी हैं । इनमें कांगो का संकट एक प्रमुख उदाहरण है । कांगो अफ्रीका महाद्वीप स्थित एक छोटा देश है जो 1960 में बेल्जियम के शासन से मुक्त हुआ था । स्वतंत्रता के समय कांगों में विभिन्न जातियों के मध्य गृह युद्ध आरम्भ हो गया ।

बेल्जियम ने कांगो में अपने नागरिकों की रक्षा का तर्क देकर जुलाई 1960 को कांगो में सैनिक हस्तक्षेप कर दिया । कांगो की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ से बेल्जियम की सेनाएँ वापिस करने की माँग की । संयुक्त राष्ट्र की सेना करूंगा प्रान्त को छोड़कर कांगो के सभी प्रान्तों में पहुँच गयी ।

इस सम्बन्ध में प्रत्यक्ष बातचीत के लिये जब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कांगो जा रहे थे तो मार्ग में वायु दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी । इस घटना के बाद कांगो में शान्ति स्थापना हो गयी तथा वहाँ महाशक्तियों के बीच संघर्ष को टाला जा सका ।

इसके अतिरिक्त वियतनाम युद्ध 1973, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति का विरोध विभिन्न देशों में स्वतंत्रता आन्दोलनों को समर्थन देने आदि मुद्‌दों पर दोनों देशों द्वारा विरोधी नीतियों को अपनाया गया । प्रत्येक महाशक्ति ने अपने हितों को ध्यान में रखकर इन मुद्‌दों पर समर्थन अथवा विरोध की नीति अपनायी ।

जहाँ सोवियत संघ ने तीसरी दुनिया के देशों में साम्यवादी गुटों को सैनिक व आर्थिक समर्थन दिया वहीं अमेरिका ने गैर-साम्यवादी समूहों को बढ़ावा दिया । दोनों महाशक्तियों का मुख्य उद्देश्य तीसरी दुनिया के देशों में अपने प्रभाव का विस्तार करने के साथ-साथ वहाँ आर्थिक व सैनिक उद्देश्यों की पूर्ति करना था । संक्षेप में तीसरी दुनिया के देशों में महाशक्तियों के अग्रलिखित हित संलग्न थे ।

(i) तीसरी दुनिया के देशों में महत्वपूर्ण संसाधनों जैसे तेल व खनिज पदार्थों को प्राप्त करना ।

(ii) तीसरी दुनिया के देशों में सैनिक सुविधाएं प्राप्त करना तथा सैनिक अड्‌डे स्थापित करना ।

(iii) तीसरी दुनिया के देशों को महाशक्तियों द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध गुप्तचर सूचनाएं प्राप्त करने के लिये प्रयोग करना ।

(iv) एक सुरक्षा सहयोगी के रूप में तीसरी दुनिया के देशों से आर्थिक सहायता प्राप्त करना ।

(v) महाशक्तियों द्वारा तीसरी दुनिया के देशों को अपने वैचारिक समर्थकों के रूप में प्रयोग करना ।

5. संयुक्त राष्ट्र संघ व उसके अभिकरण ( United Nations and its Agency):

संयुक्त राष्ट्र संघ व उसके विभिन्न अंग विशेषकर महासभा व सुरक्षा परिषद् शीत युद्ध के प्रमुख मंच थे । महासभा की बैठकों में दोनों ही महाशक्तियों ने एक-दूसरे के विरुद्ध आरोपों का आदान-प्रदान किया तथा सुरक्षा परिषद् की बैठकों में वीटो शक्ति का अपने हितों में प्रयोग किया जिससे संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व शान्ति की अपनी भूमिका में प्रभावी नहीं हो पाया ।

शीत युद्ध काल में वीटो शक्ति का सबसे अधिक प्रयोग सोवियत संघ द्वारा किया गया । सोवियत संघ ने विश्व बैंक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा गैट जैसी संस्थाओं की सदस्यता ग्रहण नहीं की जिससे इन संस्थाओं पर पश्चिमी देशों का प्रभाव बढ़ गया । शीत युद्ध काल में संयुक्त राष्ट्र संघ अधिक प्रभावी नहीं हो सका तथा शीत युद्ध की राजनीति का शिकार हो गया ।

4. शीत युद्ध में तनाव शैथिल्य ( Stress Staggering during Cold War):

शीत युद्ध काल में महाशक्तियों के मध्य तनाव की तीव्रता में आयी कमी को तनाव शैथिल्य कहते हैं । यह शीत युद्ध समाप्ति न होकर उसके तनाव में आयी कमी का संकेत है । इसे अंग्रेजी में ‘दितान्त’- (Détente) कहते हैं । तनाव शैथिल्य दोनों महाशक्तियों की इस समझ का परिणाम है कि आणविक युग में किसी भी गुट द्वारा युद्ध निर्णायक रूप में नहीं जीता जा सकता ।

शीत युद्ध काल में तनाव शैथिल्य के तीन चरण स्पष्ट होते हैं- प्रथम 1962 से 1969 तक का निष्क्रिय काल, दूसरा 1970 से 1979 तक का सक्रिय काल तथा पुन: 1985 से 1991 तक का सक्रिय काल जिसमें सोवियत संघ में आये आन्तरिक परिवर्तनों के कारण तनाव में कमी ही नहीं आयी वरन् सोवियत रूस का विघटन व शीत युद्ध का अन्त हुआ ।

पहले चरण में दोनों महाशक्तियों के सहयोग से नि:शस्त्रीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा मिला तथा दोनों के सहयोग से 1963 में सीमित परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि तथा 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि जैसे महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हो सके ।

दूसरे चरण में भी महाशक्तियों के सहयोग से जहाँ 1972 में उत्तरी कोरिया व दक्षिण कोरिया के मध्य तथा पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी के बीच समझौते हुये वहीं इसी वर्ष दोनों महाशक्तियों के मध्य सामरिक हथियारों को सीमित करने के लिये साल प्रथम समझौते पर हस्ताक्षर किये गये ।

1973, 1975 व 1977 में क्रमश: तीन यूरोपीय सुरक्षा सम्मेलन आयोजित किये गये तथा दोनों महाशक्तियों में आर्थिक व अन्य मामलों में सहयोग की प्रक्रिया आगे बढ़ी । इसी बीच 1979 में अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं की तैनाती के बाद दोनों महाशक्तियों में पुन: तनाव देखा गया जिसे द्वितीय शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है ।

तीसरे चरण में सोवियत संघ में आन्तरिक लोकतांत्रिक बदलाव हुये जो अमेरिका के सामरिक हितों के अनुकूल थे । दोनों के मध्य उच्च स्तरीय शिखर वार्ताओं का सिलसिला आरभ हुआ तथा 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद 1991 में शीत युद्ध के एक गुट का अवसान हो गया एवं शीत युद्ध का अन्त हो गया ।

5. शीत युद्ध का प्रभाव ( Influence of the Cold War):

1. विश्व का दो ध्रुवों अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी गुट तथा सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट में विभाजन ।

2. विश्व में तनाव, असुरक्षा, शस्त्रों की दौड़ व सैनिक गुटबन्दी को बढ़ावा ।

3. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का उदय ।

4. संयुक्त राष्ट्रसंघ की प्रभावशीलता में कमी तथा शीत युद्ध के कारण वैश्विक समस्याओं का समाधान जटिल ।

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तृतीय विश्व युद्ध की संभावना पर निबंध | Essay on The Possibility of World War III in Hindi

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तृतीय विश्व युद्ध की संभावना पर निबंध | Essay on The Possibility of World War III in Hindi!

” युद् ‌ ध का उम्माद संक्रमणशील है , एक चिनगारी कहीं जागी अगर , तुरतं बह उठते पवन उनचास हैं ,  दौड़ती , हँसती , उबलती आग चारों ओर से । ”

-रामधारी सिंह दिनकर

ADVERTISEMENTS:

‘कुरुक्षेत्र’ के द्‌वितीय सर्ग से उद्‌धत ये पंक्तियाँ प्रथम एवं द्‌वितीय विश्व युद्‌ध की परिस्थितियों का सटीक बयान करती हैं । युद्‌धोन्माद संक्रमणशील होता है, एक चिंगारी उठी नहीं कि उनचासों पवन उसे हवा देने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं । यहाँ तक कि जब केवल दो राष्ट्रों के बीच युद्‌ध होते हैं तब भी पूरी दुनिया दो गुटों में बँटकर किसी एक पक्ष का समर्थन करने लगती है ।

महाभारत का युद्‌ध तो कौरवों और पांडवों के मध्य हुआ था लेकिन अन्य राजे-महाराजे अपने-अपने सैनिकों के साथ किसी न किसी पक्ष के साथ युद्‌ध के मैदान में आ डटे थे । बस युद्‌ध का उन्माद चाहिए, एक पृष्ठभूमि, एक वातावरण चाहिए और युद्‌ध का बिगुल बज उठता है ।

दुनिया के लोग हर समय किसी न किसी युद्‌ध में उलझे रहते हैं । हालांकि युद्‌ध के कारण अलग-अलग होते हैं मगर इसका परिणाम एक-सा होता है । आबादी उजड़ती है, लोग गाजर-मूली की तरह काट डाले जाते हैं, सैनिकों के परिवार रोते-बिलखते हैं, विधवाएँ असहाय जीवन जीने को मजबूर हो जाती हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं, युद्‌ध भूमि श्मशान भूमि के रूप में तब्दील हो जाती है, आर्थिक क्षति की भरपाई होने में दशक लग जाते हैं ।

दुनिया अभी हिरोशिमा और नागासाकी पर हुई बमवर्षा भूली नहीं है । हाल ही में जिस तरह आतंकवादियों ने एक छद्‌म युद्‌ध के रूप में अमेरिका पर धावा बोल दिया, उनके गगनचुंबी इमारतों को जो कि आधुनिक युग के विकास के प्रतीक थे, देखते ही देखते नष्ट कर दिया, क्या दुनिया 11 सिंतबर सन् 2001 के इस वाकए को भूल पाएगी । प्रत्युत्तर में अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्‌ध एक विश्वव्यापी संघर्ष की घोषणा की तो ऐसा लगा कि तृतीय विश्व युद्‌ध की भूमिका बन रही है ।

लेकिन दुनिया ने समझदारी दिखाई और चाहे दिखावे के रूप में ही सही, आतंकवाद से लड़ने का संकल्प पूरी दुनिया में व्यक्त किया गया । आतंकवाद का मुख्य अड्‌डा बने राष्ट्र अफगानिस्तान पर अमरीकी हमले के सहायतार्थ दुनिया के अन्य राष्ट्र भी आगे आए ।

भारत, पाकिस्तान, फ्रांस, जर्मनी, रूस, ब्रिटेन, चीन सहित सभी प्रमुख राष्ट्रों का समर्थन अमेरिका को मिला हुआ था, अत: यह युद्‌ध एक तरह से धर्मयुद्‌ध बन गया । अन्याय और आतंक के प्रतीक बने तालिबान हारे और अफगानिस्तान में एक लोकप्रिय सरकार की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ ।

बाद में जब अमेरिका तथा उनके कुछ मित्र राष्ट्रों नें संयुक्त राष्ट्र संघ की पूरी तरह अवहेलना करते हुए इराक पर आक्रमण किया तो इसे अन्य राष्ट्रों ने युक्तिसंगत न माना । मुस्लिम राष्ट्रों ने भी इस हमले की आलोचना की । नतीजा अमेरिका के लिए भी सुखद न निकला क्योंकि आतंकवादियों को इस बहाने एकजुट होने का एक अवसर मिल गया । अफगानिस्तान और ईराक सहित दुनिया के विभिन्न मुल्कों में आतंकवाद फिर से सिर उठा रहा है ।

आतंकवादी इतने बलिष्ठ और साधन-संपन्न हैं कि किसी भी राष्ट्र का जीना हराम कर सकते हैं । अलकायदा जैसे आतंकी संगठन खतरनाक रासायनिक एवं जैविक हथियारों से लैस होने की पुरजोर चेष्टा में हैं ताकि ये अपने दम पर दुनिया में तबाही मचा सकें, खासकर विरोधी विचारधारा के राष्ट्रों को खुलेआम चुनौती दे सकें । संभव है तृतीय विश्व युद्‌ध आतंकवाद के विरुद्‌ध संघर्ष के रूप में सामने आए ।

शीत युद्‌ध के समय जबकि सोवियत संघ का बिखराव नहीं हुआ था विश्व पर तृतीय विश्व युद्‌ध का खतरा हर समय मँडराता रहता था । अमेरिका और सोवियत संघ के परमाणु हथियारों से लैस प्रक्षेपास्त्र एक दूसरे की ओर रुख किए तने रहते थे । थोड़ी सी गलतफहमी, एक गलत सूचना तीसरे विश्व का आरंभ करने के लिए पर्याप्त थी ।

मगर आंतरिक रूप से आर्थिक जर्जरता का शिकार सोवियत संघ बिखर गया और अमेरिका एकमात्र विश्व शक्ति के रूप में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल रहा । अमेरिका और रूस वर्तमान में आपसी मित्रतापूर्ण साझेदारी से कार्य कर रहे हैं अत: किसी बड़ी गुटबंदी का खतरा तत्काल दिखाई नहीं दे रहा है । लेकिन गुटबंदी में अधिक देर नहीं लगती, और कोई भी ऐसा गुट जो परमाणु हथियारों से लैस हो, विश्व के लिए हर समय एक खतरे की घंटी है ।

तृतीय विश्व युद्‌ध के बारे में प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टाइन से जब एक बार पूछा गया था तो उनका गंभीर उत्तर था, ”तृतीय विश्व युद्‌ध के बारे में मैं भविष्यवाणी नहीं कर सकता मगर चतुर्थ विश्व युद्‌ध के संबंध में मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि वह युद्‌ध पत्थर के औजारों से लड़ा जाएगा ।” इस कथन के निहितार्थ बड़े स्पष्ट और आज भी प्रासंगिक हैं ।

तीसरी विश्वव्यापी लड़ाई पृथ्वी को जनशून्य और निर्जन स्थान बना सकती है । आधुनिक सभ्यता एवं संस्कृति पूर्णरूपेण नष्ट हो सकती है, सभी जीव-जंतुओं एवं वनस्पति जगत् का नाश हो सकता है । अतिराष्ट्रीयता का आवेग, राष्ट्राध्यक्षों को जब किसी भी हद तक जाने के लिए विवश कर देगा, तब महाविनाश होते देर न लगेगी।

इतिहास साक्षी है कि तानाशाहों की जिद के कारण कई प्राचीन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुके हैं । हिटलर फिर से जन्म ले सकता है, किसी बिन लादेन के रूप में । एक रावण को मार देने से रावणत्व समाप्त नहीं हो सकता है, अत: सभ्य राष्ट्रों को अधिक एहजुटता दिखनी होगी ताकि विश्व के लोग भयमुक्त होकर जी सकें ।

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Essay on War and Its Effects

Students are often asked to write an essay on War and Its Effects in their schools and colleges. And if you’re also looking for the same, we have created 100-word, 250-word, and 500-word essays on the topic.

Let’s take a look…

100 Words Essay on War and Its Effects

Introduction.

War is a state of armed conflict between different countries or groups within a country. It’s a destructive event that causes loss of life and property.

The Devastation of War

Wars cause immense destruction. Buildings, homes, and infrastructure are often destroyed, leaving people homeless. The loss of resources makes it hard to rebuild.

The human cost of war is huge. Many people lose their lives or get injured. Families are torn apart, and children often lose their parents.

Psychological Impact

War can cause severe psychological trauma. Soldiers and civilians may suffer from post-traumatic stress disorder.

War has devastating effects on people and societies. It’s important to promote peace and understanding to prevent wars.

250 Words Essay on War and Its Effects

War, a term that evokes immediate images of destruction and death, has been a persistent feature of human history. The consequences are multifaceted, influencing not only the immediate physical realm but also the socio-economic and psychological aspects of society.

Physical Impact

The most direct and visible impact of war is the physical destruction. Infrastructure, homes, and natural resources are often destroyed, leading to a significant decline in the quality of life. Moreover, the loss of human lives is immeasurable, creating a vacuum in societies that is hard to fill.

Socio-Economic Consequences

War also has profound socio-economic effects. Economies are crippled as resources are diverted towards war efforts, leading to inflation, unemployment, and poverty. Social structures are disrupted, with families torn apart and communities displaced.

Psychological Effects

Perhaps the most enduring impact of war is psychological. The trauma of violence and loss can have long-term effects on mental health, leading to conditions like post-traumatic stress disorder. Society at large also suffers, with the collective psyche marked by fear and mistrust.

In conclusion, war leaves an indelible mark on individuals and societies. Its effects are far-reaching and long-lasting, extending beyond the immediate physical destruction to touch every aspect of life. As we continue to study and understand these impacts, it underscores the importance of pursuing peace and conflict resolution.

500 Words Essay on War and Its Effects

War, an organized conflict between two or more groups, has been a part of human history for millennia. Its effects are profound and far-reaching, influencing political, social, and economic aspects of societies. Understanding the impact of war is crucial to comprehend the intricacies of global politics and human behavior.

The Political Impact of War

War significantly alters the political landscape of nations. It often leads to changes in leadership, shifts in power dynamics, and amendments in legal systems. For instance, World War II resulted in the downfall of fascist regimes in Germany and Italy, giving rise to democratic governments. However, war can also destabilize nations, creating power vacuums that may lead to further conflicts, as seen in the aftermath of the Iraq War.

Social Consequences of War

Societies bear the brunt of war’s destructive nature. The loss of life, displacement of people, and the psychological trauma inflicted upon populations are some of the direct social effects. Indirectly, war also affects societal structures and relationships. It can lead to changes in gender roles, as seen during World War I and II where women took on roles traditionally held by men, leading to significant shifts in gender dynamics.

Economic Ramifications of War

Economically, war can have both destructive and stimulating effects. On one hand, it leads to the destruction of infrastructure, depletion of resources, and interruption of trade. On the other, it can stimulate economic growth through increased production and technological advancements. The economic boom in the United States during and after World War II is an example of war-induced economic stimulation.

The Psychological Impact of War

War leaves a deep psychological imprint on those directly and indirectly involved. Soldiers and civilians alike suffer from conditions like Post-Traumatic Stress Disorder (PTSD). Moreover, societies as a whole can experience collective trauma, impacting future generations. The psychological scars of the Hiroshima and Nagasaki bombings continue to affect Japanese society today.

In conclusion, war is a complex and multifaceted phenomenon with profound effects that can shape nations and societies in significant ways. Its impacts are not confined to the battlefield but reach deep into the political, social, economic, and psychological fabric of societies. Therefore, understanding its effects is not only essential for historians and political scientists but also for anyone interested in the complexities of human societies and their evolution.

That’s it! I hope the essay helped you.

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essay on war and its effects in hindi

The Destructive Impact of War: Causes and Consequences Essay

In what sense is war a drug and who are its peddlers.

The majority of people believe that war is a horrible thing. Wars bring millions of deaths and devastation of the land, they separate families and turn friends into enemies, and they change the course of life in the whole countries and continents. However, there have always been people who wanted to start wars and who wanted to win them. The motives of war may be slightly different in every particular situation, but the basic driving force has always been the desire of one side to take away something from the other. The second side’s purpose is, consequently, the wish to defend its property.

War is compared to a drug in the sense that it has the power to engage even those who at first consider it wrong and unacceptable. Gradually, under the influence of propaganda and close people’s opinions, a man can change from a pacifist into a soldier who is ready to deprive others of their lives. In the story “Editha” by William Dean Howells, we can see how the main character, George, “seemed to despise it [war] even more than he abhorred it” (Howells 1). However, under the impact of his fiancée Editha, he decides to enlist. When he tells his girlfriend about his decision, he remarks, “It’s astonishing how well the worse reason looks when you try to make it appear the better” (Howells 4). Just like drug addicts justify their behavior, this character is trying to persuade himself that he has made the right choice.

If we consider war a drug, there is a need to identify its peddlers. Generally, they are some ideas or ideals which people rush to defend when governed by their own principles or by propaganda methods. While approved by some people, the drug of war is strongly opposed by others. The movie Paths of Glory (1957) is one of the best examples of the absurdity of war. Another film, MASH (1970), ridicules the very essence of war although it has a sad context at its core. These two powerful pieces of cinematography are just a drop in the ocean of great examples of the idiocy of war. Unfortunately, not everyone understands that war is not noble but catastrophic. Too many people are still under the influence of the war “drug.”

The Positions and Actions of the Weather Underground

“The Company You Keep” by Neil Gordon describes the activity of an organization called The Weather Underground which aimed at overthrowing the US government as it considered the government’s actions wrong. While there is something noble in their purpose (for instance, they emphasized that they wanted to make the people’s life in the US better), I cannot agree with their methods.

The main character says that “every single day” the situation “has gotten worse” (Gordon n. p.), and the nation needed a change. However, I do not think that radical actions threatening the lives of people can be considered positive. The Weather Underground employed some terroristic approaches, which contradicts my pacifistic views. It is indeed good to fight for equality and life improvement. Still, I prefer more peaceful methods.

When James expresses his position that “all Weather was saying was that this government should follow what the Constitution says” (Gordon n. p.), Rebecca contradicts him. She says that the Weather is morally responsible “for encouraging the lefties that did kill” (Gordon n. p.). I support her opinion as I am convinced that promoting others to kill is not less a crime than killing. Throughout the book, some characters are trying to convince us that the activity of the Weather Underground was beneficial and would lead to positive changes in the country. However, I think that nothing positive can arise from the deaths of innocent people who just happen to be in the wrong place at the wrong time.

Defending his organization, James says that the Weather was not just “a bunch of spoiled brats who survived only by the grace of the FBI’s incompetence” (Gordon n. p.). He emphasizes the wisdom of the members and their outstanding loyalty to each other even after many years. He says that even though not all of them liked him, they never justified against him. James tells his daughter, “find me another group of former friends, anywhere, who has never betrayed each other” (Gordon n. p.). While I like this particular feature about the Weathermen, I am opposed to the organization’s activity in general. They did have a noble aim, but they failed to reach it with peaceful methods.

The Sense of Self-Identification in Slavenka Drakulić’s “S. A Novel about the Balkans”

When depicting the tortures which the women had to undergo during the Bosnian war, the author states that “each of them had ceased to be a person” when the soldiers came, and that they have been diminished “to a collection of similar beings of a female gender, of the same blood” (Drakulić n. p.). The author then remarks that “blood alone” bears significance: the soldiers’ “right” blood against the women’s “wrong” blood (Drakulić n. p.).

However, Drakulić notices that not only the women have undergone a significant change with the arrival of the war. She says that the soldiers “are no longer people either,” only they have not realized it yet (Drakulić n. p.). By this statement, the author means that there is no personal identification for those who have become the raping and killing machines, without any feelings, or at least display of feelings. The women see the soldiers as “dangerous envoys of a suprapersonal power which is forcing them to do what they are doing” (Drakulić n. p.). The main character of the book, S., understands that the soldiers are also captives, and they have no face or individuality. They do not own themselves – their willpower and their bodies are governed not by them but by “somebody else – the army, the leader, the nation” (Drakulić n. p.).

The author’s opinion is that the soldiers are not entirely aware of their position. She states that they merely do what they are told, “obey and execute the orders” of those who they are scared of or “in whom they believe” (Drakulić n. p.). Those who do not have their own will and the right to make decisions by themselves are not free to be called people. The soldiers do not realize it; they think they have power and they “are something else” (Drakulić n. p.). When they are standing in front of the “women’s room,” just before entering it, they think for a second that they are the “masters” of the situation (Drakulić n. p.).

The main character is wondering whether the soldiers realize that they are also victims of the war: they cannot “run away” or “hide,” they can be murdered any second, and they are not humans any longer (Drakulić n. p.).

The Demoralizing Power of War

One of the characters of Shakespeare’s “Troilus and Cressida” describes war as an act involving “too much blood and too little brain” (Shakespeare 172). At the same time, it has often been mentioned that even those who begin a war with honorable intentions are eventually corrupted by it. War inevitably changes people, and the change is usually for the worse. Whether it is a physical pain or mental ache, greed or depression, disappointment or eagerness to kill more, the outcomes of taking part in a war are always adverse.

Shohei Ooka’s “Fires on the Plain” as a Manifestation of War’s Destructive Power

The book “Fires on the Plain” by a Japanese author Shohei Ooka depicts the horrors of World War II experienced by a Japanese soldier in the Philippines. Many of the destructive impacts of war are represented in the book: Private Tamura fights exhaustion, starvation, dementia, and self-perception. The book describes the gradual decline of feelings after experiencing too many war atrocities. If in the beginning Tamura “felt a shock of fear” (Ooka 22) and was “easily frightened of anything new” (Ooka 79), by the end of the book he is no longer shocked by seeing the random body parts of his mates (Ooka 179).

There is an example of how unneeded the soldiers become when they cannot fight any longer: “the only concern of the doctors was how to get rid of their patients and save food” (Ooka 31). This case shows the unacceptable treatment of the government – the power encouraging people to enlist. It, too, is an adverse impact of the war: people give away their lives for the country and then are left to cope with the problems by themselves. However, Tamura mentions that even in the worst circumstances the native land is better to meet the hardships. He says, “in our own country, even in the most distant or inaccessible part, this feeling of strangeness never comes to us” (Ooka 18).

The soldier’s contemplations being him to the conclusion that he has no right to enjoy the world’s beauty but only needs to consider it from a professional standpoint. Tamura says that an infantryman should view “a gentle hollow in the ground” as “a shelter from artillery fire” and the “beautiful green fields” as “dangerous terrain” (Ooka 19).

Shohei Ooka’s book is a powerful illustration of the demoralizing power of war. It shows how war can irrevocably change a person and how unnecessary it is.

The Abhorrent Pictures of War in Slavenka Drakulić’s “S. A Novel about the Balkans”

It is difficult to understand the motives of the soldiers going to war, but they can be explained at least somehow. What cannot be justified, however, is the lot of the women during a war. Having no sufficient strength to take part in the fighting, the female part of the population is left without any support or defense, exposed to many dangers beginning with the attacks and ending with horrific raping and cruelty of the opposing army. Drakulić’s book “S. A Novel about the Balkans” describes this side of the war: outrageously merciless treatment of Bosnian Muslim women by the Serbian soldiers.

The description of the terrible things done to the women makes the blood run cold. The main character is used “to the pain of being hit by a rifle butt, slapped, tied up, to the dull pain of her head being banged against the wall, or being kicked in the chest by a boot” (Drakulić n. p.). At the beginning of the book, S. is at the hospital after giving birth to a baby whose father was an unknown soldier who had raped her. Such cases were not rare in those years: S. became so used to brutal treatment that she “no longer had a will of her own, it has been replaced by something else, as if a robot has taken control of her body” (Drakulić n. p.).

The central theme and the details of this book emphasize the atrocious character of any war and remind us that it is necessary to be humans. The war has the power to turn people into animals, heartless creatures who forget the primary aim of defending their country’s interests and destroy everything and everyone in their way.

“The Company You Keep” by Neil Gordon: Is a Good War Better than a Bad Peace?

Gordon’s book is dedicated to the Weather Underground – an organization which claimed to have people’s interests as its priority. However, the means employed by its activists were far prom peaceful. Therefore, a question arises: is it worthwhile to gain peace and a better life for the country by killing people? Gordon’s character James Grant is trying to persuade his daughter (and the readers) that they were trying to do a good thing. While writing to his daughter about “the bad people murdering each other horribly from Sierra Leone to Bethlehem” (Gordon n. p.), he does not consider his organization guilty of several deaths and other crimes.

I do not think that radical organizations like the Weather Underground deserve to be called democratic. If they employ force in their activity, they cannot say they want to ensure peace. James argues that “if this country had made the three central ideas of the Port Huron Statement – anti-war, anti-racism, and anti-imperialism – the law of the land, today we’d be living in a safe, just, and prosperous society” (Gordon n. p.). However, I believe that they could have chosen a more pacifistic way to show their dissatisfaction with the government.

As we can see from numerous examples in the books and movies, war has the power to corrupt and irrevocably change people. Even if they enter it with noble intentions, they end up becoming either too much hurt and depressed or too much cruel and ready to destroy. Whichever direction we may consider, it will be a bad one. War alters people, it destroys their physical and mental health, and it undermines the good that had been in people’s minds. Shakespeare’s character was right saying that war involves “too much blood and too little brain” (Shakespeare 172). If people were wiser, they would realize that war is the worst method to achieve their plans. The Machiavellian principle of the aim justifying the means is not suitable here. In my opinion, war cannot be justified by any aims.

Works Cited

Drakulić, Slavenka. S. A Novel about the Balkans . Penguin, 2001.

Gordon, Neil. The Company You Keep . Pan MacMillan, 2013.

Howells, William Dean. “ Editha .” Washington State University. Web.

MASH . Directed by Robert Altman, performances by Donald Sutherland, Elliot Gould, Tom Skerritt, Sally Kellerman, and Robert Duvall, 20th Century Fox, 1970.

Ooka, Shohei. Fires on the Plain . Tuttle Publishing, 2000.

Paths of Glory . Directed by Stanley Kubrick, performances by Kirk Douglas, Ralph Meeker, Adolphe Menjou, George Macready, and Wayne Morris, United Artists, 1957.

Shakespeare, William. Troilus and Cressida. Filiquarian Publishing, 2007.

  • Chicago (A-D)
  • Chicago (N-B)

IvyPanda. (2024, April 15). The Destructive Impact of War: Causes and Consequences. https://ivypanda.com/essays/the-destructive-impact-of-war-causes-and-consequences/

"The Destructive Impact of War: Causes and Consequences." IvyPanda , 15 Apr. 2024, ivypanda.com/essays/the-destructive-impact-of-war-causes-and-consequences/.

IvyPanda . (2024) 'The Destructive Impact of War: Causes and Consequences'. 15 April.

IvyPanda . 2024. "The Destructive Impact of War: Causes and Consequences." April 15, 2024. https://ivypanda.com/essays/the-destructive-impact-of-war-causes-and-consequences/.

1. IvyPanda . "The Destructive Impact of War: Causes and Consequences." April 15, 2024. https://ivypanda.com/essays/the-destructive-impact-of-war-causes-and-consequences/.

Bibliography

IvyPanda . "The Destructive Impact of War: Causes and Consequences." April 15, 2024. https://ivypanda.com/essays/the-destructive-impact-of-war-causes-and-consequences/.

  • "The Ocean" by George Gordon Byron
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  • The R v Gordon Wood Case and Court Decision
  • The War of Independence in the United States
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Essay on War and its effects in Malayalam : In this article, we are providing യുദ്ധം വരുത്തുന്ന നാശങ്ങള് ഉപന്യാസം for students. Scroll down to read Malayalam Essay on war. രാജ്യങ്ങൾ തമ്മിലായാലും ജനങ്ങൾ തമ്മിലായാലും യുദ്ധം ചെയ്യു ന്നത് നന്നല്ല. ഏകാധിപത്യമനോഭാവമാണ് യുദ്ധമുണ്ടാക്കുന്നത്. യുദ്ധം കൊണ്ട് യാതൊരു ശാശ്വതനേട്ടവുമുണ്ടാക്കാൻ ആർക്കും കഴിയുകയില്ല. യുദ്ധഭീഷണിയുള്ളസ്ഥലത്ത് ജനങ്ങൾക്ക് സൈ്വരമായി ജീവി ക്കാൻ കഴിയുകയില്ല. യുദ്ധം നടക്കുമ്പോൾ രാജ്യത്ത് വിലക്കയറ്റവും ക്ഷാമവുമുണ്ടാകും. യുദ്ധത്തിനുശേഷം പട്ടിണിയും രോഗവും നേരിടേ ണ്ടതായിട്ടുവരും. യുദ്ധം വരുത്തിവച്ചകെടുതികളിൽനിന്ന് പലരാജ്യങ്ങളും ഇപ്പോഴും മുക്തിനേടിയിട്ടില്ല.

Essay on War and its effects in Malayalam

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Impact of War on Society Essay | War and its Effects

The present generation read about fights and wars in stories and books only but with the proclamation of the Russia and Ukraine war, the impact of war on the modern world is clearly visible to all of us. War has always left the world with death and destruction. Let’s write down an essay on war and its effects on people and countries.

Why you should read this essay –

The world knows about The Russia-Ukraine War. Are you ready for war? Hold on…hold on…don’t take me literally. You might not be aware that the Writing Section in your language paper is guided by current affairs. Last year our newspapers were flooded with the news of the ongoing war between Russia and Ukraine and now it is Israel vs Hamas War. So, you have to have knowledge of Essays and Paragraphs on War and learn new words associated with war, weapons and soldiers. Let’s start reading… Hoping the war stops soon! 

essay on war and its effects in hindi

Impact of War on the Modern World

Outline for an Essay on War

  • History of wars
  • thoughts associated with wars
  • Negative effects of war
  • Why do countries resort to wars
  • any recent example
  • Conclusion – how to avoid wars
“Peace is the virtue of civilization. War is its crime.” -Victor Hugo.

War is a war, it cannot be stated ‘correct’ under any given circumstance. The world had been through two world wars, enough for humanity to learn its lessons. But it seems that the world would rather be a fool and repeat it. Man’s insatiable hunger for power, unquenchable thirst for money and unsatisfiable greed to acquire has resulted in a world of dominance, mistrust, lack of faith, selfishness, self-centeredness and intolerance effectuating conflict and war. Who gains from war? A clamant question not figured out yet.

Jonathan Maberry’s words express the real impact of war, “They won the war but lost the peace”. 

Essay on Effects of War Class 6 -12 (500 words)

War leaves unrest among people, both on the winning and losing sides. The victims are not only those who die in the war but also those who survive. The aftermath of war is so horrendous that many have to live with disabilities, not only physical but emotional, mental and even social.

The use of precision weapons, nuclear and chemical weapons in war causes destruction on a large scale, having long-term effects. The everyday agony of dealing with personal loss aggravates with the economic crisis a country has to cope with. The modern world is not an isolated place, it is a global village, thanks to technology. In the present times, the effects of war are not restricted to a particular country but have a far-reaching impact on the whole world. 

Citing preparedness and uncertainty as reasons, nations tend to allocate a large chunk of money to the army and for the development of war weapons. As a consequence, the country suffers on the front of health and education. It may not be a cause of concern for a developed country but once caught in this vicious circle, the economy of a developing nation deteriorates further impacting every aspect of modern life. 

To deal with such a crisis, many rights of the citizens are taken away and taxes are imposed furthering uproar and uprising. After a war, it takes years for a country to recover and who can guarantee no another? The recent Russia-Ukraine war has taken a toll on the whole world. All countries are suffering from the brunt directly or indirectly.

On one hand when the whole world is fighting a war against climate change, increasing population and pandemics like COVID-19, these political wars or wars of revenge or subjugation, whatever you may call them, seem too extraneous. A misstep of one can result in a disaster for the whole world. Then, why not take responsibility and address the problem of global warming, overuse of resources, overpopulation, poverty etc? 

The modern world needs to achieve the ‘exotic moment’ recommended by Pablo Neruda in his poem ‘Keeping quiet’-

  ‘and we will all keep still’.

During this stillness, as suggested by him, the world will better itself by introspection. 

“It’s time for us to turn to each other, not on each other.”

– Jesse Jackson.

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Difficult word meanings for Effects of War Essay

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  5. Impact of War Speech in Hindi

    युद्ध का प्रभाव निबंध | Hindi Speech on Impact of War | 500 Words Speech on War. युद्ध जीतने वाले और हारने वाले दोनों ही पक्षों के लोगों में अशांति छोड़ कर जाता है। पीड़ित केवल वे ही नहीं ...

  6. रूस-यूक्रेन संघर्ष

    यह एडिटोरियल 26/02/2022 को 'इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित 'Stay the Course' लेख पर आधारित है। इसमें रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष के बारे में चर्चा की गई है।

  7. Essay on War

    ADVERTISEMENTS: Here is an essay on 'War' for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on 'War' especially written for school and college students in Hindi language. Essay on War Essay Contents: युद्ध-विश्लेषण (Introduction to War) युद्ध का अर्थ (Meaning of War) युद्धों के प्रकार ...

  8. युद्ध एक अभिशाप अथवा वरदान पर निबंध। Essay on War in Hindi

    SHARE: युद्ध एक अभिशाप अथवा वरदान पर निबंध। Essay on War in Hindi! प्राचीनकाल में भी राजाओं में युद्ध होते थे, परन्तु उन युद्धों और आज के युद्ध में ...

  9. Essay on the Causes of War

    ADVERTISEMENTS: Read this essay in Hindi to learn about the five major causes of war in the world. 1. राजनीतिक कारण: युद्ध मुख्यतया राजनीतिक कारणों से होता है । अमर्यादित सम्प्रभुता, शक्ति सन्तुलन की समस्या दूसरे ...

  10. युद्ध और शांति पर निबंध

    युद्ध और शांति पर निबंध | War and Peace Essay in Hindi भूमिका: वर्तमान में मनुष्य पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली प्राणी है जिसने पृथ्वी के समस्त प्राणियों पर अपना दबदबा कायम ...

  11. युद्ध और शांति पर निबंध War and Peace OR Yudh Aur Shanti Essay in Hindi

    Essay on War and Peace in Hindi . मानव और शक्ति-संचय-वर्तमान में मनुष्य ने देवताओं के समान शक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न प्रारंभ किया है। उसने देवता ...

  12. Impact of the First World War

    Read this article in Hindi to learn about the impact of first world war. परिणाम की दृष्टि से प्रथम विश्वयुद्ध विश्व-इतिहास का एक वर्तन-बिन्दु था । इसमें जन और धन की जो हानि हुई, वह तो विस्मयकारी थी ...

  13. Essay on Horrors of War in Hindi

    युद्ध की भयावहता पर निबंध Essay on Horrors of War in Hindi युद्ध की विभीषिका पर निबंध मानव सदियों पहले सभ्य बन गया था और आज भी है। उसने सुख शान्ति के .

  14. End of Cold War and International Politics

    ADVERTISEMENTS: Read this essay in Hindi to learn about the end of cold war and its impact on international politics. शीत-युद्ध की ...

  15. 1 Essay On War International Problem

    Essay on War International Problem in Hindi पर आपको इस वेबसाइट में 2 अच्छा निबंध (Essay) मिलेंगे। जो की कक्षा 5 से लेकर Higher Level Exam के students के लिए उपलब्ध हैं।

  16. Cold War: Stages and Influence

    Read this article in Hindi to learn about:- 1. विश्व राजनीति में शीत युद्ध काल (Cold War Period in World Politics) 2. शीत युद्ध के मुख्य सीमा चिह्न (Main Landmarks of the Cold War) 3. मंच (Stages) 4.तनाव शैथिल्य (Stress Staggering) 5. प्रभाव (Influence ...

  17. First World War and it's Effect (in Hindi)

    First World War and it's Effect (in Hindi) Lesson 16 of 23 • 8 upvotes • 12:04mins. Sandeep Kumar Shukla. first world war and reason of this historical tragedy. events of whole first world war. effect of first world war on whole world/India. Gandhi and first world war.

  18. प्रथम विश्व युद्ध कारण और परिणाम

    इस लेख में हम प्रथम विश्व युद्ध (World War I Hindi me) के बारे में विस्तृत तथ्यों के बारे में पढ़ेंगे जिसने इतिहास के पाठ्यक्रम को बदल दिया। प्रथम विश्व युद्ध (World War I ...

  19. तृतीय विश्व युद्ध की संभावना पर निबंध

    तृतीय विश्व युद्ध की संभावना पर निबंध | Essay on The Possibility of World War III in Hindi! ''युद्‌ध का उम्माद संक्रमणशील है, एक चिनगारी कहीं जागी अगर, तुरतं बह उठते पवन उनचास हैं ...

  20. Essay on War and Its Effects

    500 Words Essay on War and Its Effects Introduction. War, an organized conflict between two or more groups, has been a part of human history for millennia. Its effects are profound and far-reaching, influencing political, social, and economic aspects of societies. Understanding the impact of war is crucial to comprehend the intricacies of ...

  21. The Destructive Impact of War: Causes and Consequences Essay

    The majority of people believe that war is a horrible thing. Wars bring millions of deaths and devastation of the land, they separate families and turn friends into enemies, and they change the course of life in the whole countries and continents. However, there have always been people who wanted to start wars and who wanted to win them.

  22. യുദ്ധം വരുത്തുന്ന നാശങ്ങള് ഉപന്യാസം Essay on War and its effects in

    Essay on War and its effects in Malayalam : In this article, we are providing യുദ്ധം വരുത്തുന്ന നാശങ്ങള് ഉപന്യാസം for students. Scroll down to read Malayalam Essay on war. യുദ്ധം വരുത്തുന്ന നാശങ്ങള് ഉപന്യാസം Essay on War and its effects in Malayalam

  23. Impact of War on Society Essay

    Essay on Effects of War Class 6 -12 (500 words) War leaves unrest among people, both on the winning and losing sides. The victims are not only those who die in the war but also those who survive. The aftermath of war is so horrendous that many have to live with disabilities, not only physical but emotional, mental and even social.