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सुभाष चंद्र बोस पर निबंध हिंदी में | Subhash Chandra Bose Essay in Hindi (PDF Download)

Subhash Chandra Bose Essay

Subhash Chandra Bose Essay in Hindi:- नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) हमारे देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं। इतिहास में सुभाष चंद्र बोस जैसे देशभक्त व्यक्ति बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे देशभक्त थे, जो सेनापति, वीर सैनिक, कुशल राजनैतिज्ञ होने के साथ ही एक कुशल नेतृत्वकर्ता भी थे। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया, जो हम सब के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत रहेगा। इन्हीं देशहित और आजादी के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले महान देशभक्त को भारत ने हर साल 23 जनवरी के दिन सुभाष चंद्र बोस जयंती ( Subash Chandra Bose Jayanti ) मनाने का ऐलान किया।

इस दिन देश भर में विभिन्न देशभक्ति कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस लेख में हम आपको निबंध पेश करेंगे, जिसके जरिए आप सुभाष चंद्र बोस के बारे में सारी जानकारी पा सकते है। इस निबंध को हमने सुभाष चंद्र बोस पर निबंध, हिंदी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध, Subhash Chandra Bose Essay in Hindi, सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध,सुभाष चंद्र बोस पर निबंध PDF, सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 500 शब्द, सुभाष चंद्र बोस पर 10 लाइन बिंदुओं पर आधारित है, नेता जी के बारे में सारी जानकारी पाने के लिए इस लेख को पूरा पढ़े।

Subhash Chandra Bose Essay in Hindi- Overview

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध | Subhash Chandra Bose Essay 100 Words

हर साल की तरह इस साल भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ( Netaji Subhash Chandra Bose ) के जन्मदिन को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा। साल 2023 में, सुभाष चंद्र बोस की जयंती रविवार को मनाई गई थी, वहीं इस साल 2024 में यह सोमवार को मनाई जाएगी। इस साल नेताजी के जन्म की 127वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। भारत देश को आजादी दिलाने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अहम योगदान रहा है। उन्होंने अपने क्रांतिकारी कार्यों से भारत में आजादी के लिए लोगों में ज्वलंत नेतृत्व की भावना को बनाए रखा था। 

उनके द्वारा बनाए गए संगठन ने देश के कई हिस्सों को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने का अहम प्रयास किया था। अपने बेहतरीन कूटनीति के द्वारा उन्होंने यूरोप के कई देशों से संपर्क करके उनसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग देने का प्रस्ताव रखे थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी (mahatma Gandhi), जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru), लाला लाजपत राय , भगत सिंह (Bhagat Singh), चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) आदि जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। 

टॉपिक सुभाष चंद्र बोस
लेख प्रकारनिबंध
साल2024
पराक्रम दिवस 23 जनवरी मंगलवार
पराक्रम दिवस कब से मनाया जा रहा है2021
2023 में सुभाष चंद्र बोस की कौन सी जयंती मनाई जाएगी127वीं
सुभाष चंद्र बोस का जन्म23 जनवरी 1897 
सुभाष चंद्र बोस का जन्मस्थानकटक, उड़ीसा 
सुभाष चंद्र बोस पिता नामजानकीनाथ बोस
सुभाष चंद्र बोस पिता का पेशावकील
सुभाष चंद्र बोस प्रसिद्ध भाषणतुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा
सुभाष चंद्र बोस मृत्यु18 अगस्त 1945
सुभाष चंद्र बोस मृत्यु स्थानजापान

सुभाषचंद्र बोस के बारे में निबंध | Subhash Chandra Bose Essay 200 Words

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को बंगाल प्रांत (Bangal Residency) के उड़ीसा (Odisha) प्रभाग के कटक शहर में हुआ था, इस दौरान पूरे भारत (India) में ब्रिटिश राज्य था। नेताजी (Netaji) की माता का नाम प्रभावती देवी और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था। इनके पिता पेशे से वकील थे और उन्हें रायबहादुर की उपाधि प्राप्त थी। जनवरी 1902 में सुभाष चंद्र बोस ने प्रोटोस्टेट यूरोपियन स्कूल में एडमिशन लिया था। इसके बाद इन्होंने रेनवेर्शा कॉलेजिएट स्कूल और फिर प्रेसिडेंसी कॉलेज में साल 1913 में मैट्रिक की परीक्षा में द्वितीय श्रेणी प्राप्त करने के बाद प्रवेश लिया । 

इनका राष्ट्रवादी चरित्र नेताजी की पढ़ाई के बीच में आ गया, जिस वजह से इन्हें स्कूल से निष्काषित कर दिया गया। इसके बाद इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज (Scottish Church College) और फिर कैम्ब्रिज स्कूल में सिविल की परीक्षा में शामिल होने के लिए गए। इसके बाद उन्होंने सिविल परीक्षा (Civil Service) में चौथा स्थान प्राप्त किया, लेकिन इन्होंने ब्रिटिश सरकार के अधीन रहकर काम करने से मना कर दिया। अंत में सिविल की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भारत आ गए, जहां इन्होंने बंगाल प्रांत की (Congress Committee) कांग्रेस समिति के प्रमोशन के लिए स्वराज्य समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। 

Also Read: गांधी जयंती पर भाषण

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध | Subhash Chandra Bose Essay (Pdf Download)

सुभाष चंद्र बोस का पढ़ाई में बहुत मन था। इन्होंने उच्च शिक्षा के लिए विदेशों तक का सफर किया और (civil service) सिविल सेवा में नौकरी तक की है। राष्ट्रवादी विचारधारा के चलते नौकरी तो छोड़ी ही इसके अलावा कई तरह की परेशानियों का डटकर सामना भी किया। 1937 में इन्होंने (Austria) आस्ट्रिया में एमिली शेंकल, जो कि एक पशु चिकित्सक की बेटी थी, के साथ शादी की थी। 

सन 1920-30 के दौरान ये (Indian National Congress) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताथे और साल 1938-39 में इसके अध्यक्ष चुने गए थे। वो अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के साथ-साथ बंगाल राज्य के कांग्रेस के सचिव के तौर पर भी चुने गए थे। वो फॉर्वर्ड समाचार पत्र के संपादक बन गए और (Kolkata) कलकत्ता के नगर निगम के सी.ई.ओ. के रूप में कार्य किया और ब्रिटिश सरकार के द्वारा घर में ही नजरबंद कर दिए गए। फिर उन्होंने ब्रिटिश शासन (British Rule) से भारत को आजाद कराने के लिए सहयोग के तौर पर जर्मनी और जापान तक की यात्रा की । 

आखरी में 22 जून 1939 को अपने राजनीतिक जीवन को फॉर्वर्ड ब्लॉक (Forward Block) से संयोजित कर लिया। मुथुरलिंगम थेवर इनके बहुत बड़े राजनीतिक समर्थक थे। इन्होंने मुंबई में एक विशाल रैली का आयोजन किया। साल 1941-43 तक ये बर्लिन में रहे। नेताजी ने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” जैसे अपने प्रख्यात नारे के जरिए आजाद हिंद फौज का नेतृत्व किया । 6 जुलाई 1944 में इन्होंने अपने भाषण में महात्मा गांधी mahatma Gandhi) को “राष्ट्रपिता” कहा था, जिसका प्रसारण सिंगापुर आजाद हिंद फौज के द्वारा किया गया था। उनका एक और प्रसिध्द नारा “दिल्ली चलो” आई.एन.ए. की सेनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए था। 

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 500 शब्द (Subhash Chandra Bose Essay 500 Words)

भारत की आजादी में उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए प्रतिवर्ष 23 जनवरी के दिन उनकी जयंती(jayanti) के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन देश के विभिन्न स्थानों पर उनके स्मारकों तथा प्रतिमाओं पर राजनेताओं, विशिष्ट अतिथिगण तथा आम जनता के द्वारा माला पहनाई जाती है। इसके साथ ही स्कूलों और कॉलेजों  में कई तरह के देशभक्ति कार्यक्रम किए जाते हैं। 

इसमें बच्चों के द्वारा रैली निकालने के अलावा नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) के जीवन पर भाषण तथा निबंध जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसमें बच्चों द्वारा रैली निकालने के साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर भाषण तथा निबंध जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन का सबसे भव्य इंतजाम पश्चिम बंगाल(West Bengal )में किया जाता है। जहां इस दिन कई तरह के सांस्कृतिक तथा सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत कई तरह के स्वास्थ्य शिविर, निशुल्क भोजन शिविर जैसे कार्यों का आयोजन किया जाता है। 

23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाष चंद्र बोस का जन्म कटक के प्रसिध्द वकील के यहां हुआ था। उनके पिता ने अंग्रेजों के दमन चक्र के विरोध में ‘रायबहादुर’ की उपाधि लौटा दी। इस से सुभाष चंद्र बोस के मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत ने घर कर लिया, तब सुभाष अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने का आत्म संकल्प ले लिया और राष्ट्रकर्म की राह पर चल पड़े। इस बात पर उनके पिता ने उनका उत्साह बढ़ाते हुए कहा ‘जब तुमने देश सेवा का व्रत ले ही लियाहै, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना।’

आजाद हिंद फौज | Azad Hind Fauj

5 जुलाई 1943 को आजाद हिंद फौज(Azad Hind Fauj) का विधिवत गठन हुआ। उन्होंने एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीय का सम्मेलन कर उसमें अस्थाई स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर नेताजी ने आजादी प्राप्त करने के संकल्प को साकार किया। 12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतींद्र दास की स्मृति पर नेता जी ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा- अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है, आप मुझे खून दो और मैं आपको आजादी दूंगा। यही वाक्य देश के नौजवानों में जान फूंकने वाला वाक्य था,

जो भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में भी अंकित है। 16 अगस्त 1945 को टोक्यो(Tokyo) के लिए निकलने पर ताईहोकु हवाई अड्डे पर यह वीर हमेशा के लिए हमें छोड़कर चला गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन(Indian independence movement) के एक अग्रणी नेता थे। बोस जी ने जनता के बीच राष्ट्रीय एकता, बलिदान और साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को जागृत किया था।

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 10 पंक्ति | Subhash Chandra Bose Essay 10 Lines

Subhash Chandra Bose Essay 10 Lines

  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म कटक, उड़ीसा में हुआ था। 
  • वे अपने माता-पिता की नौ वीं संतान थे।
  • नेताजी ने बी.ए. की परीक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में पास की थी।
  • नेताजी ने प्रशासनिक सेवा में चौथा स्थान प्राप्त किया था। 
  • स्वामी विवेकानंद व अन्य से प्रभावित नेताजी ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
  • नेताजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर क्रांतिकारी नायकों में से एक थे।
  • भगत सिंह को फांसी होने के बाद इनका गांधी जी से राजनीतिक मतभेद शुरू हो गया।
  • लगभग 40 हजार भारतीयों के साथ नेताजी ने आजाद हिंद फौज बनाई थी।
  • एक विमान दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 में नेताजी की मृत्यु हो गई थी।  
  • नेताजी के जन्म दिवस को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

FAQ’s Subhash Chandra Bose Essay in Hindi 2024

Q. सुभाष चंद्र बोस की पत्नी का नाम क्या था.

Ans. एमिली शेंकल सुभाष चंद्र बोस की पत्नी का नाम था।

Q. सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब हुआ था ?

Ans. 23 जनवरी 1897 को सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था।

Q. सुभाष चंद्र बोस ने पिता कौन थे?

Ans. सुभाष चंद्र बोस के पिता पेशे से वकील थे।

Q. सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में कितने लोग शामिल हुए?

Ans. 40,000 लोगों ने सुभाष चंद्र बोस की आजादी हिंदी फौज में शामिल हुए थे।

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  • Essays in Hindi /

Essay On Subhash Chandra Bose : छात्र नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर ऐसे लिखें निबंध

essay writing on subhash chandra bose in hindi

  • Updated on  
  • जून 18, 2024

Essay On Subhash Chandra Bose in Hindi

Essay On Subhash Chandra Bose : स्कूलों और प्रतियोगी परीक्षाओं में कई बार, छात्रों को किसी प्रसिद्ध व्यक्तित्व पर एक निबंध लिखने के लिए कहा जाता है, जहां वे उनकी जीवन काल, उनके उपलब्धियों और हम उनसे क्या सीखते हैं, इसके विषय में भी जानकारी देते हैं। निबंध में कौन सी चीज कब और कैसे लिखनी है, इसके विषय में आज आपको इस निबंध में सारी जानकारी मिलेगी। सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें भारतीय सम्मानपूर्वक “नेताजी” भी कहते थे, जो एक स्वतंत्रता सेनानी और एक राजनीतिक नेता थे। सुभाष चंद्र बोस (नेताजी) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से शुरू से जुड़े रहे और दो बार इसके अध्यक्ष भी चुने गये। तो चलिए जानते हैं  Essay On Subhash Chandra Bose in Hindi से सुभाष चंद्र बोस के बारे में। 

This Blog Includes:

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 100 शब्द में, सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 200 शब्द में, सुभाष चंद्र बोस का पारिवारिक और प्रारंभिक जीवन , भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, आजाद हिन्द फौज.

Essay On Subhash Chandra Bose in Hindi 100 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

सुभाष चंद्र बोस ने 20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे, जो राजनेताओं का एक ग्रुप था जिसने स्वतंत्रता की लड़ाई का नेतृत्व किया था। बोस द्वारा फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की गई, एक राजनीतिक संगठन जिसका उद्देश्य भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी सैनिकों को एकजुट करना था, सुभाष चंद्र बोस को लोग नेताजी भी कह कर बुलाते थे। भारत में सुभाष चंद्र बोस को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में सम्मान दिया जाता है। हम 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता हैं की 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में जलने से घायल होने के बाद ताइवान के एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।

सुभाष चंद्र बोस एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे, उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेता भी कहा जाता था। उनका जन्म 1897 में भारत के कटक में एक धनी, सुशिक्षित परिवार में हुआ था। बोस एक असाधारण छात्र थे जो कक्षा में सफल हुए और उन्होंने इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने लेने के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की थी।

इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई को पूरा करने के बाद सुभाष चंद्र बोस अपने देश भारत लौट आए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए, जो ब्रिटिश नियंत्रण से भारत की आजादी के लिए लड़ने वाला एक राजनीतिक संगठन था। बोस ब्रिटिश सरकार के साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद मुखर आलोचक थे। 

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 500 शब्द में

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक (उड़ीसा) में प्रभावती दत्त बोस और जानकीनाथ बोस के घर हुआ था। सुभाष चंद्र के पिता एक वकील थे और उन्हें “राय बहादुर” की उपाधि प्राप्त थी। उन्होंने अपने भाई-बहनों की तरह ही अपनी स्कूली शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल (वर्तमान में स्टीवर्ट हाई स्कूल) में की थी। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 16 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द और रामकृष्ण की रचनाएँ पढ़ने के बाद वे उनकी शिक्षाओं से प्रभावित हो गए थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए (ऑनर्स) दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की और उसके बाद उनके माता-पिता ने सुभाष चंद्र बोस को भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भेज दिया। 1920 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की, लेकिन अप्रैल 1921 में भारत में राष्ट्रवादी उथल-पुथल के बारे में सुनने के बाद उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने देश भारत वापस लौट आए।

नामसुभाष चंद्र बोस
जन्म की तारीख23 जनवरी, 1897
जन्म स्थानकटक, ओडिशा
अभिभावकजानकीनाथ बोस (पिता)प्रभावती देवी (मां)
जीवनसाथीएमिली शेंकल
बच्चेअनिता बोस 
शिक्षारेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल, कटक,  प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड
संघ (राजनीतिक दल)भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, फॉरवर्ड ब्लॉक, भारतीय राष्ट्रीय सेना
आंदोलनभारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
राजनीतिक विचारधाराराष्ट्रवाद, साम्यवाद, फासीवाद-प्रवृत्त

सुभाष चंद्र बोस ने सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में काम करके अपने राजनीतिक करियर की नींव रखी थी। जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था, उनकी अहिंसा की विचारधारा ने सभी को प्रभावित किया हुआ था। नेताजी ने शुरुआत में देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए कलकत्ता में कार्य किया था। जिन्हें उन्होंने 1921-1925 की समयावधि के दौरान राजनीति में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अपना गुरु माना। क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी के कारण बोस और सी.आर. दास को विभिन्न अवसरों पर जेल में डाल दिया गया था। वर्ष 1925 में सी.आर. दास की मृत्यु हो गई और इससे उन्हें गहरा सदमा लगा।

उन्होंने ‘स्वराज’ समाचार पत्र शुरू किया। 1927 में जेल से रिहा होने के बाद बोस कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने और स्वतंत्रता के लिए जवाहरलाल नेहरू के साथ काम किया। 1938 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये और उन्होंने एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया। बोस को 1939 में समर्थन मिला जब उन्होंने एक गांधीवादी प्रतिद्वंद्वी को दोबारा चुनाव में हरा दिया। 1939 में सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारत कांग्रेस के भीतर एक गुट के रूप में ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक भारत में एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था जो उभरा।

1940 के आसपास जब उन्हें कैद किया गया था, तो वे चतुराई से भाग निकले थे। जेल से जर्मनी, बर्मा और जापान जैसे देशों में गए और भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) की नींव रखी, जिसे ‘आजाद हिंद फौज’ भी कहा जाता है। आज़ाद हिंद फ़ौज में लगभग 45,000 सैनिक शामिल थे। 21 अक्टूबर 1943 में सुभाष बोस ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत (आजाद हिंद) की अनंतिम सरकार के गठन की घोषणा की। 1944 की शुरुआत में आज़ाद हिंद फ़ौज (INA) की तीन इकाइयों ने अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिए भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर हमले में भाग लिया। आजाद हिंद फौज के सबसे प्रमुख अधिकारियों में से एक, शाह नवाज खान के अनुसार, भारत में प्रवेश करने वाले सैनिक जमीन पर लेट गए और पूरी भावना के साथ अपनी मातृभूमि की पवित्र मिट्टी को चूमा। हालाँकि, आज़ाद हिंद फ़ौज द्वारा भारत को आज़ाद कराने का प्रयास विफल रहा।

सुभाष चंद्र बोस का नारा

  • एकता में शक्ति है
  • दिल्ली अब हमारी है
  • खून का बदला खून
  • चलो दिल्ली चलें और करो त्याग
  • स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है
  • स्वतंत्रता दी नहीं जाती, ली जाती है
  • तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा
  • सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा

सुभाष चंद्र बोस को असाधारण नेतृत्व और करिश्माई वक्ता के साथ सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानी माना जाता था। उन्होंने आजादी के समय कई नारे दिए जोकि लोकप्रिय बन गए हैं ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ‘जय हिंद’ और ‘दिल्ली चलो’। उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई योगदान दिए। वह स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अपनाए गए अपने उग्रवादी दृष्टिकोण और अपनी समाजवादी नीतियों के लिए जाने जाते हैं।

‘तुम मुझे खून दो-मैं तुम्हें आजादी दूंगा”

कलकत्ता नगर निगम।

एकता, विश्वास, बलिदान है। 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का। 

जानकीनाथ बोस। 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस है। 

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सुभाष चंद्र बोस पर निबंध (Subhash Chandra Bose Essay In Hindi)

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भारत के सभी महान और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सैनानियों में से एक है ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’। जिन्हें लोग प्यार से ‘नेताजी’ बुलाते हैं। सुभाष चंद्र बोस भारत के सच्चे देशभक्त थे। नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 में उड़ीसा के छोटे से गांव कटक में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकी नाथ बोस था जो पेशे से वकील थे। सुभाष चंद्र बोस को 1942 जर्मनी में मौजूद उनके समर्थकों ने उन्हें ‘नेताजी’ कह कर सम्मानित किया था और बाद में भारत में भी वह इसी नाम मशहूर हो गए। बड़े होने के साथ ही सुभाष चंद्र बोस जी कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़ गए थे और दो बार इसके प्रेसिडेंट के रूप में भी चुने गए थे। हमारे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी पूरी जानकारी के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें। यहाँ नेता जी पर छोटा निबंध, बड़ा निबंध,10 पंक्तियां सभी दिए हुए हैं। आइए देखते हैं।

सुभास चंद्र बोस के बारें में यहाँ दस आसान वाक्यों में संझेप में जानकारी चाहिए दी गई है जिसकी मदद से बच्चों को निबंध लिखने में आसानी होगी, तो नीचे दिए गए 10 वाक्यों को ध्यान से पढ़े और याद कर लें।

  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 हुआ था।
  • उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था।
  • सुभाष चंद्र बोस एक सच्चे देशभक्त और राष्ट्रवादी थे।
  • नेता जी 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।
  • सुभाष चंद्र बोस हिंसा से आजादी की लड़ाई लड़ने में विश्वास रखते थे।
  • राष्ट्रीय नारा ‘जय हिंद’ नेताजी द्वारा दिया गया था।
  • ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, यह नेताजी का प्रसिद्ध नारा था।
  • ब्रिटिश के खिलाफ लड़ने के लिए नेताजी ने ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया।
  • नेताजी ने देश के हित में ‘स्वराज’ अखबार शुरू किया था।
  • 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।

अगर आप भी सुभाष चंद्र बोस के बारें में छोटा निबंध लिखना चाहते हैं या फिर आपके बच्चे को अपने होमवर्क के लिए नेता जी के बारें में कम शब्दों में जानकारी चाहिए तो उसके लिए आगे पढ़ें।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होने देश के लिए हर लड़ाई को अपनी जान से ज्यादा ऊपर रखा था। नेताजी की नीति महात्मा गाँधी से बिलकुल अलग थी। महात्मा गाँधी जहाँ अहिंसा के साथ लड़ाई लड़ते थे वहीं नेताजी हिंसा को अपनाकर अंग्रेजों के खिलाफ धावा बोलते थे। उनकी इस जूनून से भरी देशभक्ति ने उन्हें देश का नायक बना दिया था। नेताजी पढ़ाई में काफी अच्छे थे और उन्होंने 1921 में भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आईएएस) और भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) भी पास कर लिया था। लेकिन कुछ समय काम करने के बाद उन्होंने उसी साल इस पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह अंग्रेजों के नीचे काम करना नहीं चाहते थे। नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार प्रेसिडेंट चुने गए थे। 18 जनवरी 1938 में अध्यक्ष बने थे और इनका कार्यकाल 28 जनवरी 1939 तक चला था। वहीं दूसरी बार ये 29 जनवरी 1939 में अधक्ष्य चुने गए थे लेकिन यह कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं चल पाया था, सिर्फ तीन महीने यानि कि 29 अप्रैल 1939 को इन्होंने इस्तीफा दे दिया था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

कम और आसान शब्दों में नेताजी की बारें में आपको ऊपर बताये गए अनुच्छेद से पता चल ही गया होगा, लेकिन यदि आपके बच्चे को सुभाष चंद्र बोस के बारें में विस्तार में निबंध लिखना है उसके लिए नीचे दी गई जानकारी उसकी मदद कर सकती है। यदि आपका बच्चा नेताजी पर 400 से 500 शब्दों में निबंध लिखना चाहता है, तो इस निबंध का सहारा जरूर ले।

सुभाष चंद्र बोस का शुरूआती जीवन और बचपन (Early Life and Childhood of Subhash Chandra Bose)

देश के लोकप्रिय नेता और स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था। नेता जी के पिता का नाम जानकीनाथ बोस था जो उस समय एक जाने माने वकील थे और माता का नाम प्रभावती देवी बोस था। नेताजी का जन्म कटक, ओडिशा में हुआ था। बोस जी एक संयुक्त परिवार में पैदा हुए थे, और वह भारत के प्रतिष्ठित अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े थे। 1902 में जब नेता जी पांच साल के थे तब उन्हें कटक में मौजूद अंग्रेजी स्टीवर्ट हाई स्कूल में एडमिशन दिलाया गया था। तब इस स्कूल को प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल कहा जाता था। कटक में रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल और कोलकाता में प्रेसीडेंसी कॉलेज जो वहाँ के कुछ प्रमुख संस्थान में से एक था वहाँ नेताजी ने अपनी आगे की शिक्षा प्राप्त की थी।

सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक जीवन (Political Life of Subhash Chandra Bose)

ऐसे देखा गया है कि जब नेता जी थोड़े बड़े हुए तब से वह अपनी किशोरावस्था रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद द्वारा बताई गई शिक्षाओं और विचारों से काफी प्रेरित होने लगे थे। उनके राष्ट्रवादी होने का पहला संकेत तब मिला जब उन्होंने कॉलेज में पढ़ रहे छात्रों पर जातीवाद से जुड़ी टिप्पणियों करने वाले प्रोफेसर पर हमला कर दिया था। 1921 में वे आईसीएस पद से इस्तीफा देकर अपने देश भारत लौट आए थे और यहाँ पर पश्चिम बंगाल में ‘स्वराज’ नाम का एक अखबार शुरू किया था। इस दौरान नेता जी ने बंगाल प्रांत कांग्रेस कमेटी के लिए सभी तरह के प्रचार का काम भी संभाला था। 1923 में, उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस के सचिव के रूप में भी चुना गया था। बाद में 1927 में, सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया और भारत की आजादी के लिए उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के साथ काम किया था।

सुभाष चंद्र बोस का वैवाहिक जीवन (Marital Life Of Subhash Chandra Bose)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक सच्चा देशभक्त माना जाता था। अगर बात उनके वैवाहिक जीवन की जाए तो उन्होंने ऑस्ट्रिया में रहने वाली अंग्रेजी महिला एमिली शेंकल से शादी की थी। बता दें की नेताजी इलाज के लिए ऑस्ट्रिया गए थे जहाँ उनकी मुलाकात अंग्रेजी मूल की एमिली से हुई और दोनों में प्यार हो गया। उनकी शादी 26 दिसंबर 1937 को बिना किसी समारोह के हुई थी। साल 1942 नेताजी और एमिली को एक बेटी हुई थी, जिसका नाम अनीता बोस रखा गया था।

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु (Death Of Subhash Chandra Bose)

ऐसा कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में हुई थी।

  • नेताजी ने साल 1918 में दर्शनशास्त्र के साथ प्रथम श्रेणी में अपना ग्रेजुएशन किया था।
  • उन्हें सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान मिला था।
  • नेताजी का मानना था गाँधी जी की अहिंसा राजनीती आजादी के लिए पर्याप्त नहीं है।
  • नेताजी ने जर्मनी में आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की शुरुआत की थी।
  • नेताजी की मृत्यु का सच आज भी एक रहस्य बना हुआ है।

सुभाष चंद्र बोस भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे, जो देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के आगे झुकना बिलकुल पसंद नहीं करते थे। ऐसे प्रसिद्ध सेनानियों के बारें में बच्चों को जानकारी होना जरूरी है ताकि वह जान सकें कि आखिर उनके नेताओं ने आजादी के लिए कितनी मेहनत की है। साथ ही अगर बच्चे से कोई नेताजी के बारें में पूछेगा तो बच्चा इस निबंध को याद कर के उनके बारें में आसानी से सबके सामने बता सकेगा।

1. सुभाष चंद्र बोस द्वारा लिखी गई किताब का नाम क्या है ?

नेता जी ने “द ग्रेट इंडियन स्ट्रगल” किताब लिखी थी, जिसमे भारत में हुए स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास  समझाने की कोशिश की गई थी।

2. सुभाष चंद्र बोस अपने जीवनकाल में कितनी बार जेल गए थे ?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने पूरे जीवनकाल में कुल 11 बार जेल गए थे।

3. नेताजी द्वारा बनाई गई प्रथम भारतीय सशस्त्र बल का नाम क्या था ?

नेताजी द्वारा बनाई गई प्रथम भारतीय सशस्त्र बल का नाम ‘आजाद हिंद फौज’ था।

4. सुभाष चंद्र बोस अपना राजनीतिक गुरु किसे मानते थे?

सुभाष चंद्र बोस अपना राजनीतिक गुरु देशबंधु चितरंजन दास जी मानते थे।

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सुभाष चंद्र बोस के बारे में 10 लाइन

Subhash Chandra Bose Essay in Hindi 1000+ Words | सुभाष चंद्र बोस के बारे में हिंदी में निबंध

Subhash Chandra Bose Essay in Hindi : अगर आप सुभाष चंद्र बोस के बारे में हिंदी में निबंध लिखना चाहते इस तो इस आर्टिकल के माध्यम से आसानी से लिख सकते है|

Subhash Chandra Bose Essay in Hindi सुभाष चंद्र बोस के बारे में हिंदी में निबंध

हमारे देश में ऐसे-ऐसे महान देश-भक्त हुए हैं, जिन्होंने देश के लिए देवा अपना सर्वश्व निछावर कर दिया कि उनके सम्पूर्ण कार्यक तेज के लिए के स्वर्णिम पृष्ठ पर अंकित हो गए। हमारे देश में ऐसे ही इतिहास इताब्दियों से शासन करने वाली अंग्रेजी सत्ता की जड़ें हिलाकर के रख दी। ऐसे देश-भक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का योगदान सर्वोच्च है।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 ई. में उड़िसा राज्य की राजधानी कटक में हुआ था। सुभाषचन्द्र बोस का पिताश्री जानकीनाय बोस था जो की जाने-माने वकिल थे। आपके भाई श्री शरत्चन्द्र बोस एक महान देश-भक्त और प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनकी आरम्भिक शिक्षा एक स्थानीय यूरोपियन स्कूल में हुई। मैट्रिक परीक्षा सन् 1913 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की। इस परीक्षा को वह पूरे विश्वविद्यालय में दूसरे स्थान पर रहकर प्राप्त की।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस बचपन से ही निर्भीक और स्वाभिमानी थे। इनके विद्यार्थी जीवन की कई रोचक घटनाएं हैं। उन घटनाओं में से एक घटना यह भी है कि जिस समय वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के छात्र थे, उसी समय एक अंग्रेजी अध्यापक भारतीयों का अपमान किया करता था। यह सर्वविदित है कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस कट्टर देश-भक्त थे। वे उस अंग्रेजी अध्यापक द्वारा भारतीयों के प्रति किए जा रहे अपमान को सहन नहीं कर पाये।

आवेश में आकर उन्होंने उस अंग्रेजी अध्यापक की पिटाई कर दी। फलस्वरूप आपको विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। इससे वह विवश होकर स्काटिश विश्वविद्यालय में प्रवेश लेना पड़ा। वहाँ से ही आपने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद वह इंग्लैण्ड जाकर आई. सी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस परीक्षा की उत्तीर्ण करके आप स्वदेश लौट आए।

उनके पिताश्री जनाकीनाथ की यह पूरी आकांक्षा थी कि उनका पुत्र आई.सी.एस. होकर सरकारी नौकरी में उच्च स्थान प्राप्त करे। लेकिन यह बहुत विडम्बना उनके लिए थी कि उन के पुत्र का मन इसके विपरीत हो चला था। उनके पुत्र के मन में देश-भक्ति की ऊँची-ऊँची तरंगे उठ रही थीं। इसलिए नेताजी अंग्रेजी-सत्ता को न चाहकर उसके प्रति नफरत के भावों से भर उठे।

वे फलस्वरूप उसे अपने देश से समाप्त करने के लिए सब कुछ त्याग करने हेतु तैयार थे। देश-भक्ति के अति झुके हुए वे पितृ-भक्ति के लिए भीतर-भीतर से समर्पित हो चुके थे। इसीलिए उन्होंने सिविल सर्विस को स्वीकार कर लिया था।

सिविल सर्विस में रहते हुए नेताजी को ऐसा लगा कि वे देश-भक्ति की भावना को दृढ़तापूर्वक बनाए रखने में अधिक समय तक समर्थ न हो सकेंगे। यह भी कि देश को स्वतंत्र कराने की अपनी अंतरात्मा की ऊँची तरंगों को और ऊँचा न उठा सकेंगे। इससे आपका हृदय बहुत ही क्षुब्ध हो उठा।

वे अपनी अंतरात्मा की आवाज को और अधिक समय तक न दबा सके। फलतः उन्होंने आई.सी.एस. से इस्तीफा देकर देश की स्वतंत्रता के लिए कठोर संघर्ष करने का दृढ़ संकल्प कर लिया। इसलिए उन्होंने आई.सी.एस. से इस्तीफा दे दिया ।

आई.सी.एस. से इस्तीफा देकर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस स्वदेश लौट आए। आपने स्वदेश आकर देखा कि अंग्रेजी-सत्ता भारतीयों पर विभिन्न प्रकार से जुल्म ढा रही है। उन्होंने देखा कि इससे देश की जनता अत्यन्त दुखी और विवश हो रही है। उस समय उन्होंने अनुभव किय कि पूरे देश में महात्मा गाँधी का सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने बहुत जोर पकड़ लिया है।

बंगाल में आकर उन्होंने यह अच्छी तरह से समझ लिया कि देशबन्धु चितरंजन दास का अद्भुत अभाव फैला हुआ है। इसे गंभीरतापूर्वक अनुभव करके आपने उन्हें ही अपना राजनीतिक गुरु बना लिया। उनके नेतृत्व में आप देश-भक्ति की प्रमुख धारा से प्रवाहित होने लगे।

जिस समय नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भारत लौटे थे, उसी समय प्रिअफ वेल्स भारत आने वाला था। अतः अंग्रेजी-मत्ता उसके अत्यधिक वापत के लिए जोरदार तैयारियाँ करने लगी थी। चूंकि महात्मा गाँधी उस अंग्रेजी-सत्ता को वापस जाने के लिए कृत संकल्प होकर सविनय आन्दोलन चला रहे थे। इसलिए उन्होंने पूर्ण रूप से इस स्वागत समारोह बहिष्कार करने का मन बना लिया। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की अद्भुत संगठन शक्ति को देखकर अंग्रेजी सत्ता जब हिलने लगी, तब उसने उन्हें तस्तार करके जेल में डाल दिया। छः महिने बाद आपको रिहा कर दिख स्वी।

अंग्रेजी-सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए नेताजी ने विभिन्न प्रकार की अदभुत योजनाओं के तहत अपनी देश-भक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते रहे। इससे वह अंग्रेजी-सत्ता का निशाना बन गए। एक बार उन्होंने सदेहावस्था में उन्हें घर से गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। वहाँ से आप वेश बदल काबुल होते हुए जर्मनी गए। वहाँ पर सन् 1942 ई. में आजाद हिन्द फौज का संगठन किया। इसके द्वारा आपने वहाँ के भारतीयों को ललकारते हुए यह बुलंद नारा दिया- “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।” इस संगठन से अंग्रेजी-सत्ता काँप उठी थी।

कहा जाता है कि 23 अगस्त सन् 1945 ई. को नेताजी की मृत्यु एक हवाई जहाज की दुर्घटना के फलस्वरूप हो गयी। इसे आज भी नेता जी के श्रद्धालु विश्वसनीय नहीं मानते हैं। चाहे जो कुछ भी सत्य-असत्य हो; नेताजी सुभाषाचन्द्र बोस आज भी पूरे देश वासियों के हृदय में श्रद्धापूर्वक विराजमान है। सारा देश उनकी देश-भक्ति पूर्ण कार्यों के प्रति कृतज्ञ रहेगा।

Table of Contents

सुभाष चंद्र बोस के बारे में 10 लाइन

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 ई. में उड़िसा राज्य की राजधानी कटक में हुआ था।
सुभाषचन्द्र बोस का पिताश्री का नाम जानकीनाय बोस था जो की जाने-माने वकिल थे और भाई श्री शरत्चन्द्र बोस एक महान देश-भक्त और प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।
सुभाषचन्द्र बोस आरम्भिक शिक्षा एक स्थानीय यूरोपियन स्कूल में हुई और मैट्रिक परीक्षा सन् 1913 ई. में कलकत्ता विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस बचपन से ही निर्भीक और स्वाभिमानी थे और इनके विद्यार्थी जीवन की कई रोचक घटनाएं हैं।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भारतीय स्वतंत्रा संग्राम में योगदान सर्वोच्च है।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने देश के आजादी के लिए सिविल सर्विस की नौकरी छोड़कर आजादी के लड़ाई में कूद पड़े |
अंग्रेजी-सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए नेताजी ने विभिन्न प्रकार की अदभुत योजनाओं के तहत अपनी देश-भक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते रहे।
सुभाषचन्द्र बोस ने अंग्रेजो से लड़ाई में सन् 1942 ई. में आजाद हिन्द फौज का संगठन किया। 
सुभाषचन्द्र बोस ने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।” का नारा दिया|
कहा जाता है कि 23 अगस्त सन् 1945 ई. को नेताजी की मृत्यु एक हवाई जहाज की दुर्घटना के फलस्वरूप हो गयी।

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FAQ : Subhash Chandra Bose Essay in Hindi 

Q1. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म कब और कहा हुआ था, q2. सुभाषचन्द्र बोस के पिताश्री का क्या नाम था, q3. सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज की स्थापना कब किया था, q4. “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।” का नारा किसने दिया था.

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आशा करता हूँ इस प्रकार आप Subhash Chandra Bose Essay in Hindi 1000+ Words | सुभाष चंद्र बोस के बारे में हिंदी में निबंध लिख सकते है |

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दा इंडियन वायर

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध

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By विकास सिंह

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सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध, essay on subhash chandra bose in hindi (100 शब्द)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी को 1897 में हुआ था और 18 अगस्त को 1945 में उनका निधन हो गया था। उनकी मृत्यु के समय वह सिर्फ 48 साल के थे। वह एक महान नेता और भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान साहसपूर्वक लड़ाई लड़ी।

वे 1920 और 1930 के दशक के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कट्टरपंथी, युवा विंग के नेता थे। वह 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष बन गए लेकिन 1939 में निष्कासित हो गए। वह भारत के एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए बहुत सारे लोगों को प्रेरित किया और बड़े पैमाने पर शामिल किया।

सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध, essay on subhash chandra bose in hindi (150 शब्द)

सुभाष चंद्र बोस एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय देशभक्त थे। उनका जन्म कटक में 1897 में 23 जनवरी को अमीर हिंदू कायस्थ परिवार में हुआ था। वह जानकीनाथ बोस (पिता) और प्रभाती देवी (मां) की संतान थे। वह अपने माता-पिता के चौदह बच्चों में से 9 वें भाई थे।

उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा कटक से पूरी की लेकिन मैट्रिक की डिग्री कलकत्ता और बी.ए. कलकत्ता विश्वविद्यालय से डिग्री (1918 में) प्राप्त की। उच्च अध्ययन करने के लिए वे 1919 में इंग्लैंड गए। वह चित्तरंजन दास (एक बंगाली राजनीतिक नेता) से अत्यधिक प्रभावित थे और जल्द ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।

उन्होंने स्वराज नामक अखबार के माध्यम से लोगों के सामने अपने विचार व्यक्त करना शुरू किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया और भारतीय राजनीति में रुचि ली। उनकी सक्रिय भागीदारी के कारण, उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस सचिव के रूप में चुना गया था। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कठोरता का सामना किया, लेकिन कभी निराश नहीं हुए।

सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध, essay on subhash chandra bose in hindi (200 शब्द)

सुभाष चंद्र बोस देश के एक महान और बहुत बहादुर नेता थे जो अपनी मेहनत के कारण नेताजी के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 23 जनवरी को 1897 में कटक में एक हिंदू परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही बहुत बहादुर और प्रतिभाशाली थे और शारीरिक रूप से भी मजबूत थे।

वह हमेशा हिंसा में विश्वास करते थे और यहां तक ​​कि, एक बार उसने अपने यूरोपीय स्कूल के प्रोफेसर को पीटा था। बाद में उन्हें सजा के तौर पर स्कूल से निकाल दिया गया। उन्होंने बी.ए. 1918 में पहले डिवीजन के साथ कलकत्ता विश्वविद्यालय से सफलतापूर्वक डिग्री।

बाद में वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में ट्राइज की डिग्री के लिए इंग्लैंड चले गए। वह हमेशा अपने देश की सेवा एक उच्च अधिकारी के रूप में करना चाहते थे। ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए अपने देश की सेवा करने के लिए, वह कांग्रेस के आंदोलन में शामिल हुए।

बाद में उन्हें 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया और फिर कांग्रेस की नीति के साथ उनके मतभेदों के कारण निष्कासित कर दिया गया। वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत से भाग गए और जर्मनी से मदद मांगी जहां उसे हिटलर द्वारा दो साल के लिए सैन्य प्रशिक्षण दिया गया था।

उन्होंने जर्मनी, इटली और जापान के भारतीय निवासियों और युद्ध के कैदियों को प्रशिक्षित करके अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना खड़ी की। वह अच्छे मनोबल और अनुशासन के साथ एक सच्चे भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिंद फौज) बनाने में सफल रहे।

सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध, 250 शब्द:

सुभास चंद्र बोस भारतीय इतिहास में एक बहुत प्रसिद्ध प्रसिद्ध व्यक्ति और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रता संग्राम के उनके महान योगदान भारत के इतिहास में अविस्मरणीय हैं। वह भारत के एक असली बहादुर नायक थे जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपना घर और आराम हमेशा के लिए छोड़ दिया था। उन्होंने हमेशा हिंसा में विश्वास किया और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता पाने के लिए एक सशस्त्र विद्रोह का रास्ता चुना।

उनका जन्म कटक, उड़ीसा में 1897 में अमीर हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ बोस थे जो एक सफल बैरिस्टर थे और माता प्रभाती देवी थीं। ब्रिटिश प्रिंसिपल के हमले में शामिल होने के कारण एक बार उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता से निष्कासित कर दिया गया था।

उन्होंने शानदार ढंग से I.C.S परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन 1921 में भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए नॉन-को-ऑपरेशन मूवमेंट में शामिल हुए। उन्होंने चित्तरंजन दास, (बंगाल के एक राजनीतिक नेता) और बंगाल में एक शिक्षक और पत्रकार के साथ काम किया, जिन्हें बांग्लार कथा कहा जाता है।

बाद में वह बंगाल कांग्रेस के स्वयंसेवक कमांडेंट, नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल, कलकत्ता के मेयर बने और फिर निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। वह अपनी राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए कई बार जेल गए लेकिन वह कभी भी थके और निराश नहीं हुए।

उन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था, लेकिन एक बार गांधीजी द्वारा कुछ राजनीतिक मतभेदों के कारण उनका गांधीजी द्वारा विरोध किया गया था। वह पूर्वी एशिया चले गए जहाँ उन्होंने भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिए अपनी “आज़ाद हिंद फौज” (भारतीय राष्ट्रीय सेना) तैयार की।

सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध, essay on subhash chandra bose in hindi (300 शब्द)

subhash chandra bose

सुभाष चंद्र बोस पूरे भारत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह भारत के एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी व्यक्ति थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता में बहुत योगदान दिया था। उन्होंने 1897 में 23 जनवरी को उड़ीसा के कटक में एक अमीर हिंदू परिवार में जन्म लिया।

उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था, जो कटक जिला न्यायालय में सरकारी वकील थे और माता प्रभाती देवी थीं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के एंग्लो-इंडियन स्कूल से प्राप्त की और कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

वह एक बहुत ही बहादुर और महत्वाकांक्षी भारतीय युवक था जिसने सफलतापूर्वक आई.सी.एस. अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए देसबंधु चितरंजन दास से प्रभावित होने के बजाय उन्होंने गैर-सहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने लगातार हम की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ हिंसा आंदोलन चलाया।

उन्होंने 1939 में महात्मा गांधी के साथ कुछ राजनीतिक मतभेदों के कारण कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद भी कांग्रेस छोड़ दी। एक दिन उन्होंने आजाद हिंद फौज नामक अपनी भारतीय राष्ट्रीय शक्तिशाली पार्टी बनाई, क्योंकि उनका मानना ​​था कि गांधीजी की अहिंसा की नीति भारत को स्वतंत्र देश बनाने के लिए पर्याप्त सक्षम नहीं थी।

उन्होंने आखिरकार ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए एक बड़ा और शक्तिशाली आजाद हिंद फौज तैयार किया। उन्होंने जर्मनी में जाकर युद्ध के भारतीय कैदियों और वहां के भारतीय कैदियों की मदद से इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना की। हिटलर द्वारा बहुत निराशा के बाद वह जापान गया और अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना को “दिल्ली चलो” (मार्च से दिल्ली तक) का एक प्रसिद्ध नारा दिया जिसमें आजाद हिंद फौज और एंग्लो-अमेरिकी बलों के बीच एक हिंसक लड़ाई हुई।

दुर्भाग्य से, उन्होंने नेताजी सहित आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। जल्द ही, नेताजी विमान में टोक्यो के लिए रवाना हो गए, हालांकि उनका विमान प्लेन ऑफ़ इनोसा में  दुर्घटनाग्रस्त हो गया। यह बताया गया कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में मारे गए। नेताजी के साहसिक कार्य आज भी लाखों भारतीय युवाओं को देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करते हैं।

सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध, long essay on subhash chandra bose in hindi (400 शब्द)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के एक महान देशभक्त और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। वह राष्ट्रवाद और जीवंत देशभक्ति के प्रतीक थे। भारत का हर बच्चा उनके बारे में जानता है और उनकी प्रेरणा भारत की स्वतंत्रता के लिए काम करती है। उनका जन्म 1897 में 23 जनवरी को कटक, उड़ीसा में भारतीय हिंदू परिवार में हुआ था।

उनकी शुरुआती पढ़ाई उनके गृहनगर में पूरी हुई थी, हालांकि उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज, और कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक किया। बाद में वे इंग्लैंड चले गए और 4 वीं स्थिति के साथ भारतीय सिविल सेवा परीक्षा पास की।

ब्रितानियों द्वारा बुरे और क्रूर व्यवहार के कारण अन्य देशवासियों की दयनीय स्थितियों से वह बहुत निराश थे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के माध्यम से भारत के लोगों की मदद के लिए नागरिक सेवा के बजाय राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया। वह देशभक्त देशबंधु चितरंजन दास से बहुत प्रभावित थे और बाद में कोलकाता के मेयर और फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।

बाद में उन्होंने 1939 में महात्मा गांधी के साथ राय के अंतर के कारण पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद, उन्होंने अपनी खुद की फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी पाई। उनका मानना ​​था कि ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अहिंसा आंदोलन पर्याप्त नहीं है इसलिए उन्होंने देश में स्वतंत्रता लाने के लिए हिंसा आंदोलन को चुना।

वह भारत से दूर जर्मनी और फिर जापान गए जहां उन्होंने अपनी खुद की भारतीय राष्ट्रीय सेना बनाई, जिसे आजाद हिंद फौज के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने युद्ध के भारतीय कैदियों और उन देशों के भारतीय निवासियों को अपनी आज़ाद हिंद फौज में ब्रिटिश शासन से बहादुरी से लड़ने के लिए शामिल किया था। उन्होंने अपनी सेना को दिल्ली चलो और जय हिंद नाम का नारा दिया।

उन्होंने अपनी सेना के लोगों को “तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के अपने महान शब्दों के माध्यम से अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों के शासन से मुक्त करने के लिए प्रेरित किया था। यह माना जाता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 1945 में एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु की बुरी खबर ने उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना की ब्रिटिश शासन से लड़ने की सभी आशाओं को समाप्त कर दिया था।

अपनी मृत्यु के बाद भी, वह अभी भी एक जीवंत प्रेरणा के रूप में भारतीय लोगों के दिल में अपने जीवंत राष्ट्रवाद के साथ जीवित है। विद्वानों के मत के अनुसार, जले हुए जापानी विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। नेताजी के महान कार्यों और योगदानों को भारतीय इतिहास में एक अविस्मरणीय घटना के रूप में चिह्नित किया गया है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Hindi Essay

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध | Subhash Chandra Bose Essay in Hindi 1000 Words | PDF

Essay on subhash chandra bose in hindi.

Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi (Download PDF) | सुभाष चंद्र बोस पर निबंध – नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के महान देशभक्त और बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। भारत के इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी का महान योगदान अविस्मरणीय है। वे देशभक्ति के प्रतीक थे और हमेशा हिंसा में विश्वास करते थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन से आजादी पाने के लिए सैन्य विद्रोह का रास्ता चुना।

वह एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते थे। जिसने अपनी मातृभूमि की खातिर अपना घर और आराम त्याग दिया। 1920 में, वह आई.सी.एस उत्तीर्ण करने वाले कुछ भारतीयों में से एक थे। उन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण की और देश को बेहतर स्थिति में लाने का प्रयास किया। इसलिए, उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर देश को महत्व दिया।

सुभाष चंद्र का जन्म

23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महान नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म ओडिशा प्रांत के कटक में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभाती बोस था।

उनके पिता पेशे से वकील थे। उनकी 6 बेटियां और 8 बेटे थे, सुभाष चंद्र बोस उनकी नौवीं संतान और पांचवें बेटे थे।

नेताजी अपने 14 बहन-भाइयों की नौवीं संतान होने के बावजूद अपने पिता के प्रति अधिक स्नेह और प्यार रखते थे।

सुभाष चंद्र की शिक्षा

सुभाष जी को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। सुभाष चंद्र जी की प्रारंभिक शिक्षा कटक के एक प्रतिष्ठित स्कूल रेवेंशॉ कॉलेजिएट स्कूल में हुई थी। वे 1913 में मैट्रिक परीक्षा में दूसरे स्थान पर रहे और 1916 में अपनी आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ उनकी मुलाकात डॉ। सुरेश बाबू से हुई।

कॉलेज में रहते हुए भी उन मे स्वतंत्रता संग्राम की झलक दिखी। उन्होंने अपने अंग्रेजी शिक्षक द्वारा भारत के खिलाफ की गई टिप्पणी का कड़ा विरोध किया। जिसके कारण उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था, तब आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें ‘स्कॉटिश चर्च कॉलेज’ में भर्ती कराया था। जहां से उन्होंने दर्शनशास्त्र में अपनी प्रथम श्रेणी B.A पूरी की।

B.A परीक्षा के बाद, पिता के आदेश पर, वह ICS परीक्षा के लिए इंग्लैंड गए। उन्हें इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश मिला और वहाँ से आई.सी.एस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद स्वदेश लौटे और उन्हें यहाँ एक उच्च पदस्थ अधिकारी नियुक्त किया गया।

ये भी देखें – Essay on APJ Abdul Kalam in Hindi

जीवन और विचार

सुभाष चंद्र बोस भी स्वतंत्रता सेनानियों में से थे जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया। जिसके लिए भारतीयों ने देश की स्वतंत्रता के लिए शुरुआत की। सुभाष चंद्र बोस ने प्रेसिडेंसी कॉलेज में सुरेश बाबू से मुलाकात की। सुरेश बाबू देश की सेवा के लिए युवाओं का एक संगठन बना रहे थे।

सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्रता के लिए जो रास्ता अपनाया था वह अलग था। इस कारण से, उन्होंने इस संगठन में भाग लेने में बिल्कुल भी देरी नहीं की। उन्होंने अपने जीवन को हमेशा के लिए देश सेवा में समर्पित करने का कठिन संकल्प लिया।

नेताजी के कुछ ऐसे अच्छे विचार जिन्हें हमें देशभक्ति के लिए अपने दिलों में उजागर करना चाहिए।

(1) सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत व्यक्ति के साथ समझौता करना है।

(2) सबसे महत्वपूर्ण विचार सुभाष चंद्र बोस ने दिया था “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”

(3) हमारे जीवन में हमेशा आशा की किरण है, हमें बस इसे पकड़ना चाहिए, भटकना नहीं चाहिए।

(4) यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने और अपने बलिदान और बलिदान से स्वतंत्रता की कीमत चुकाएं कि हमें जो आजादी मिले, उसकी रक्षा के लिए हमें ताकत रखनी चाहिए।

(5) हमारा जीवन चाहे कितना भी प्रथागत और कष्टमय क्यों न हो, लेकिन हमें हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए, क्योंकि सफलता कड़ी मेहनत और समर्पण से निर्धारित होती है।

(6) जो अपनी ताकत पर भरोसा करता है उसे सफलता मिलती है। क्रेडिट सफलता पाने वाला व्यक्ति हमेशा घायल होता है। इसलिए अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त करें।

 (7) हमेशा अपने जीवन में साहस रखें, मातृभूमि से शक्ति और प्रेम बनाए रखें, तो आपको सफलता अवश्य मिलेगी।

हमें उस मातृभूमि की रक्षा के लिए आगे बढ़ना चाहिए, जिस पर हम पैदा हुए थे और ये विचार उन स्वतंत्रता सेनानियों के योद्धाओं में से एक हैं, सुभाष चंद्र बोस को एक कलेक्टर के रूप में ठाठ जीवन जीने की कोई इच्छा नहीं थी। वह एक सच्चे सेनानी थे।

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बोस का महत्वपूर्ण योगदान था। सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के विपरीत हिंसक रुख अपनाया था। बोस ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक क्रांतिकारी और हिंसक तरीके की वकालत की।

स्वतंत्रता आंदोलन

1920 में गांधीजी ने एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जिसमें कई लोग भाग ले रहे थे और इस आंदोलन के कारण लोगों में बहुत उत्साह था। सुभाष चंद्र बोस अरविंद घोष और गांधीजी के जीवन से बहुत प्रभावित थे। कहा जाता है कि 1920 के नागपुर सत्र ने उन्हें बहुत प्रभावित किया।

20 जुलाई 1921 को सुभाष चंद्र बोस पहली बार गांधी जी से मिले। गांधीजी ने सुभाष चंद्र बोस को नेताजी का नाम  दिया था। उस दौरान गांधीजी स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे जिसमें लोग बहुत आक्रामक तरीके से भाग ले रहे थे। क्योंकि दास बाबू बंगाल में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, इसलिए गांधीजी ने बोस को कलकत्ता जाने और दासबाबू से मिलने की सलाह दी।

बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे। क्योंकि वह एक गर्म स्वभाव के क्रांतिकारी थे और महात्मा गांधी उदारवादी थे। सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी जानते थे कि हमारे विचार एक-दूसरे से नहीं मिलते हैं।

उनकी एक क्रांतिकारी विचारधारा थी। उन्हें कांग्रेस के पूर्ण अहिंसा आंदोलन में विश्वास नहीं था, इसलिए उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। इन सभी तालमेलों को नहीं पाने के बाद भी, सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रपिता के रूप में महात्मा गांधी को संबोधित किया था।

उन्होंने देश में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना की। उनके गहन क्रांतिकारी विचारों और कार्यों से प्रभावित होकर, ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। जेल में, वह भूख हड़ताल पर चले गए, जिससे देश में अशांति फैल गई। परिणामस्वरूप, उन्हें नजरबंद रखा गया।

बोस ने 26 जनवरी, 1942 को पुलिस को चकमा दिया। वे ज़ियाउद्दीन के नाम से काबुल के रास्ते जर्मनी पहुँचे। जर्मन नेता हिटलर ने उनका स्वागत किया। उसके बाद वे जापान गए जहाँ उन्होंने अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना, आजाद हिंद फौज ’बनाई।

ये भी देखें – Essay on Rabindra Nath Tagore in Hindi

आजाद हिंद फौज की स्थापना

बोस ने देखा कि एक शक्तिशाली संगठन के बिना स्वतंत्रता प्राप्त करना मुश्किल है। 16 मार्च 1939 को, सुभास ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया रास्ता देते हुए युवाओं को पूरी निष्ठा के साथ संगठित करने का प्रयास शुरू किया और 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में ‘भारतीय स्वतंत्रता सम्मेलन’ के साथ शुरू हुआ।

जापान और जर्मनी की मदद से, उन्होंने अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक सेना बनाई, जिसका नाम उन्होंने “आज़ाद हिंद फौज” रखा। 5 जुलाई 1943 को, ‘आजाद हिंद फौज’ का विधिवत गठन किया गया। नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों के एक समूह को संगठित करके और एक स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना करके स्वतंत्रता हासिल करने के अपने संकल्प का एहसास किया।

12 सितंबर 1944 को शहीद यतींद्र दास के स्मारक दिवस पर रंगून के जुबली हॉल में, नेताजी ने बहुत ही मार्मिक भाषण दिया – अब हमारी स्वतंत्रता सुनिश्चित है, लेकिन स्वतंत्रता बलिदान की मांग करती है। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”। सुभाष चंद्र बोस की इस दहाड़ से अंग्रेजों की शक्ति हिल गई थी। लाखों हिंदुस्तानी लोग इस आवाज़ के पीछे खुद को बलिदान करने के लिए तैयार थे।

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु

दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के कारण आजाद हिंद फौज को भी आत्मसमर्पण करना पड़ा था। जब नेताजी विमान से बैंकॉक से टोक्यो के लिए उड़ान भर रहे थे और माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। लेकिन आज तक नेताजी की मौत का कोई सबूत नहीं मिला। आज भी कुछ लोगों का मानना ​​है कि वह जीवित है। यही कारण है कि देश की स्वतंत्रता पर, सरकार ने उस रहस्य की जांच के लिए एक आयोग का गठन भी किया, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला।

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FAQs. on Subhash Chandra Bose in Hindi

सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब हुआ था.

उत्तर – 23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महान नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म ओडिशा प्रांत के कटक में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभाती बोस था।

आजाद हिंद फौज की स्थापना कब हुई?

उत्तर – जापान और जर्मनी की मदद से, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए एक सेना बनाई, जिसका नाम उन्होंने “आजाद हिंद फौज” रखा ‘5 जुलाई 1943 को’।

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Subhash Chandra Bose Essay in Hindi

नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध हिंदी में | Subhash Chandra Bose Essay in Hindi

Subhash Chandra Bose Essay in Hindi – सुभाष चन्द्र बोस 23 जनवरी, 1897 को बंगाल के हिस्से से एक परिवार में जन्मे थे। उनके पिता एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के समय अपनी सरकारी सेवा से इस्तीफा दिया था।

सुभाष चन्द्र बोस के बचपन में उनकी अच्छी शिक्षा के साथ ही उनके पिता ने उनको भारत को अंग्रजी शासन से मुक्ति दिलाने और स्वतंत्र संग्राम की शिक्षा भी दी।

वे अपने कॉलेज के दिनों में ही स्वतंत्रता संग्राम के लिए आगे आ गए थे!

Subhash Chandra Bose Essay in Hindi

विषय - सूची

सुभाष चंद्र बोस पर 10 लाइन

  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे।
  • वह अपने मजबूत नेतृत्व कौशल और ब्रिटिश शासन से भारतीय स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए बल के उपयोग में विश्वास के लिए जाने जाते थे।
  • बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन किया और भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्थन हासिल करने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान धुरी शक्तियों के साथ मिलकर काम किया।
  • वह अपने प्रसिद्ध उद्धरण “तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के लिए भी जाना जाता है।
  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बोस की भूमिका अभी भी विवाद का विषय है, कुछ लोग उन्हें एक देशभक्त के रूप में और अन्य देशद्रोही के रूप में देखते हैं।
  • 1945 में बोस की मृत्यु एक रहस्य बनी हुई है, जिसमें एक विमान दुर्घटना से लेकर एक अलग पहचान के तहत छुपकर रहने तक के सिद्धांत शामिल हैं।
  • वह भारत में एक राष्ट्रीय नायक थे और उनके जन्मदिन, 23 जनवरी को “नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती” के रूप में मनाया जाता है।
  • वह भारत में कई फिल्मों, किताबों और गीतों का विषय रहा है और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिए आज भी याद किया जाता है।
  • बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसका उद्देश्य सभी ब्रिटिश विरोधी भारतीय दलों को एकजुट करना था।
  • भारत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विरासत का जश्न मनाया जाता है, जहां उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है।

सुभाष चन्द्र बोस का बचपन

नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक शहर संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था।

सुभाष चन्द्र बोस की शिक्षा | Subhash Chandra Bose Essay in Hindi

सुभाष चंद्र बोस ने प्राइमरी की शिक्षा कटक के प्रोस्टेंट स्कूल से प्राप्त करी थी। उसके बाद इन्होंने रिवेन्शा कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया था। जब सुभाष चंद्र बोस जी कॉलेज में थे तब उनके प्रिंसिपल बेनी माधव दास का स्वभाव ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया।

जब सुभाष चंद्र बोस जी केवल 15 वर्ष के थे तब उन्होंने विवेकानंद साहित्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था। जब इंटरमीडिएट की परीक्षा थी तब सुभाष चंद्र जी बीमार पड़ गए थे। फूलों ने इंटरमीडिएट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली थी!

1916 में जब वह बीए के छात्र थे तब तक इसी बात पर कॉलेज के टीचर और स्टूडेंट के बीच झगड़ा हो गया था अरे सुभाष चंद्र जी ने स्टूडेंट का नेतृत्व संभाल लिया इस वजह से उन्हें प्रेसिडेंसी कॉलेज से 1 साल के लिए निकाल दिया था और परीक्षा देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था

स्वतंत्रता संग्राम

सुभाष चन्द्र बोस की कॉलेज की शिक्षा के बाद, उन्होंने ब्रिटिश सरकार की सेवा में काम करने के लिए आवेदन किया। लेकिन उनकी आवेदन को अस्वीकृत कर दिया गया। दरअसल उनकी स्वतंत्रता संग्राम के प्रति स्वच्छ व्यक्तित्व के कारण उनकी आवेदन को अस्वीकृत कर दिया गया।

बाद में सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग करने के लिए अपने देश के बाहर भाग लिया। उनके प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम के कार्यों के कारण उनको “Netaji” के नाम से भी जाना जाता है। उनकी स्वतंत्रता संग्राम के सफलता के कारण आज भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है!

नेतृत्व की शिक्षा

सुभाष चंद्र बोस को बचपन में ही उनके पिताजी ने देश सेवा और अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्तिवके लक्ष्य के लिए प्रेरित किया!

इसके साथ ही उनके पिताजी ने उन्हें नेतृत्व की शिक्षा भी प्रदान की! उन्होंने बचपन से ही संस्कृत और साहित्य को प्रेरित होते हुए देखा। उन्होंने कॉलेज के दौरान अपने साहित्य के क्षेत्र में अधिक सुधार किया।

सुभाष चन्द्र बोस ने भारतीय संस्कृति को समर्पित करने के लिए काफ़ी ज्यादा काम किया। उनके नेतृत्व की शिक्षा के दौरान, उन्होंने अपने समक्ष अंग्रजी शासन और से सम्बंधित समस्याओं का समाधान किया!

सुभाष चंद्र बोस जी के माता पिता का नाम

सुभाष चंद्र बोस जी के पिता का नाम जानकीनाथ बोस था, जो कटक शहर के एक मशहूर वकील थे और माता जी का नाम प्रभावती था। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल 14 संताने थी। सुभाष चंद्र बोस जी 8 भाई और 6 बहन थी, सुभाष चंद्र बोस जी अपने माता पिता के नवी संतान थे।

सुभाष चंद्र बोस जी का विवाह

नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी जी ने अपने देश की आजादी के लिए विश्वंभर का भ्रमण किया था और ब्रिटेन के विरोधी देशों का साथ पाने के लिए इन्होंने बहुत मेहनत की थी।

इसी प्रयास के बीच ऑस्ट्रेलियन मूल की एक महिला एमिली शेंकल से उनकी मुलाकात हुई थी। जब 1937 में सुभाष चंद्र बोस जी अपनी एक किताब लिख रहे थे जिसका नाम था द इंडियन स्ट्रगल तो उस किताब को लिखने के लिए इन्होंने एमिली शेंकल की सहायता ली किताब लिखते लिखते दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया था तो सुभाष चंद्र बोस जी ने एमली के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था।

1937 में जर्मनी में इन्होंने किसी अज्ञात जगह पर जाकर विवाह कर लिया था। परंतु सुभाष चंद्र बोस जी और एमिली के विवाह का जर्मनी सरकार ने पंजीयन की अनुमति नहीं दी क्योंकि सुभाष चंद्र बोस जी ने और एमिली ने हिंदू रीति-रिवाज से विवाह कर लिया था।

बाद में इन्होंने एक संतान को जन्म दिया जिसका नाम इन्होंने अनीता रखा था। 1943 में सुभाष चंद्र बोस जी ने मां एमिली और उनकी बेटी अनीता दोनों को ही जर्मनी में छोड़कर भारत आ गए थे।

सुभाष चंद्र बोस जी ने 49 रेजिमेंट भर्ती की परीक्षा दी परंतु आंखें खराब होने की वजह से उन्हें उसमें एडमिशन नहीं मिला।

सुभाष चंद्र बोस जी का सेना में जाने का बहुत मन था लेकिन जब वह नहीं जा पाए तो उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश लिया वो भी खाली समय का उपयोग करने के लिए, उन्होंने टेरिटोरियल आर्मी की परीक्षा दी और फोर्ट विलियम सेनालय में प्रवेश पा लिया!

और इसके साथ ही सुभाष चंद्र बोस जी ने बीए की परीक्षा की भी तैयारी बहुत ही अच्छे तरीके से कर लिया और उसमें यह प्रथम श्रेणी में पास करा और कोलकाता विश्वविद्यालय में अपना दूसरा स्थान बनाया।

उनके पिताजी की जानकी नाथ जी की इच्छा तो उन्हे आईपीएस बनाने की थी। और उन्हें यह परीक्षा उम्र के हिसाब से एक ही बार में पास करनी थी। और इस एग्जाम को देना है या नहीं इसके लिए उन्होंने अपने पिताजी से 24 घंटे मांगे ताकि वह निर्णय ले सके, बाद में उन्होंने फैसला लिया कि वह इंग्लैंड जाएंगे और परीक्षा की तैयारी करेंगे।

उन्हें लंदन के किसी स्कूल में दाखिला नहीं मिल पाया था इसके बाद उन्होंने किट्स विलियम हॉल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राईपास की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु प्रवेश ले लिया।

इससे उन्हें यह फायदा हुआ कि एक तो उनका खाने और रहने की समस्या का हल हो गया और दूसरा उन्हें आईसीएस बनना था सो उनका मकसद भी पूरा हो गया।

सुभाष चंद्र बोस की मृत्युु | Subhash Chandra Bose Essay in Hindi

कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु विमान हादसे में हुई थी।

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु का कारण अपने समय के लोगों द्वारा अधिक से अधिक रहस्यमय रूप से समझा गया है।

उनकी मृत्यु के कारण अलग अलग माने जाते है, कुछ स्थानों पर उनकी मृत्यु के कारण एक यात्रा से लौटने की कोशिश करते समय हादसा हुआ है।

सुभाष चंद्र बोस जी के सर्वश्रेष्ठ और प्रेरणादायक विचार

भारत को स्वतंत्रता दिलाने में बहुत से महान क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों को त्याग दिया था इन्हीं महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सुभाष जी की सेना का नाम आजाद हिंद फौज था।

● तुम मुझे खून दो में तुम्हे आजादी दी गए ● आज हमारे अंदर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके। ● जीवन में अगर संघर्ष ना रहे किसी भी भय का सामना ना करना पड़े तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है। ● एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की जरूरत होती है। ● अपनी ताकत पर भरोसा करो उधार की ताकत तुम्हारे लिए घातक है। ● आजादी मिलती नहीं बल्कि इसे छिनना पड़ता है। ● भारत में राष्ट्रवाद ने एक कैसी शक्ति का संचार किया है जो लोगों के अंदर सदियों से निष्क्रिय पड़ी थी। ● याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है। ● इतिहास में कभी भी विचार विमर्श से कोई भी ठोस परिवर्तन हासिल नहीं किया गया है। ● संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया मुझ में आत्म विश्वास उत्पन्न हुआ जो पहले नहीं था

नेताजी सुभाष चंद्र जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे उन्होंने गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजादी दिलवाने के लिए अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करी थी। स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे अग्रणी नेता थे सुभाष चंद्र बोस जी उनके अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी।

उन्होंने दित्तिय विश्व युद्ध के दौरान जापान की मदद से आजाद हिंद फौज की स्थापना करी थी।

सुभाष चंद्र बोस जी एक आदर्श नेता और एक महान शख्सियत है। उनके अंदर त्याग और आत्मसमर्पण की भावना अत्यधिक समाहित थी। नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी के आंदोलन के दौरान उनका सबसे बड़ा नारा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा इसमें बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं के अंदर इस आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया था

सुभाष चंद्र बोस जी का राष्ट्रीय नारा जय हिंद भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया था।!

सुभाष चंद्र बोस जी देश के एक ऐसे नेता थे। जिनके द्वारा दिए गए योगदान को हमारा देश कभी भी नहीं भुला सकता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी पर स्वामी विवेकानंद जी का गहरा प्रभाव पड़ा था।

आजाद हिंद फौज की स्थापना (Subhash Chandra Bose Essay in Hindi)

आजाद हिंद फौज का गठन 29 अक्टूबर 1915 में रास बिहारी बोस ने अफगानिस्तान में किया था। उस वक्त मूल रूप से आजाद हिंद सरकार की सेना थी!

जिसका एकमात्र लक्ष्य यह था कि अंग्रेजों से लड़कर भारत देश को स्वतंत्रता दिलाना इस हेतु सुभाष चंद्र बोस जी ने 40,000 भारतीय स्त्री पुरुष को प्रशिक्षित कर इनकी एक सेना का गठन किया था इसका नाम इन्होंने आजाद हिंद फौज रखा था और इसका सर्वोच्च कमांडर सुभाष चंद्र बोस को बनाया गया था।

नेताजी जी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती

नेताजी सुभाष चंद्र बोस उन महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से में से एक है जिनसे आज के दौर के युवा वर्ग भी प्रेरणा लेते हैं। सरकार ने नेताजी के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की है इसलिए सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है 2022 में सुभाष चंद्र बोस जी की 126 वी जयंती मनाई गई।

सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती विद्यालय और सरकारी दफ्तरों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस उपलक्ष्य में कई रंगारंग कार्यक्रम विद्यालयो में करा जाता है।

इस उपलक्ष में भाषण प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता पोस्टर प्रतियोगिता क्विज प्रतियोगिता आदि होती है जिसमें विद्यार्थी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

शिक्षक गण विद्यार्थियों से सुभाष चंद्र बोस जी के बारे में क्वेश्चन पूछते हैं और जो अधिक उत्तर देता है उसे इनाम वितरित किया जाता है। इसलिए बच्चों के लिए यह दिन सबसे उत्साह का दिन होता है और इसकी तैयारी वह कई दिन पहले से करने लगते हैं।

इस दिन विद्यालय की साफ-सफाई करी जाती है। और विद्यालय के मंच पर सुभाष चंद्र बोस जी की मूर्ति रखी जाती है। और मूर्ति पर मालाअर्पण किया जाता है। साथ ही सुभाष चंद्र बोस जी के गीत आदि का आयोजन किया जाता है!

इस तरह से सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती एक समारोह के रूप में मनाई जाती है जिसमें विद्यार्थियो का सबसे ज्यादा योगदान रहता है।

उपसंहार | Subhash Chandra Bose Essay in Hindi

आज केबिस लेख नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध हिंदी में | Subhash Chandra Bose Essay in Hindi से हमे नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन के बारे में जानने को मिला! राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी ने महात्मा गांधी जी को सबसे पहले किया था। सुभाष चंद्र बोस जी ने स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना करी थी। स्वतंत्रता के लिए इनके विचार उच्च कोटि के थे।

इनका मुख्य नारा था तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। सुभाष चंद्र बोस जी ने स्वतंत्रता के लिए कई महत्तम कार्य किए थे।

1 thought on “नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध हिंदी में | Subhash Chandra Bose Essay in Hindi”

हाय दोस्तों,

मैंने इस “Shubhas Chandra Bose in Hindi” की ब्लॉग पोस्ट को पढ़ा है और मैंने इसके बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की है। यह पोस्ट Shubhas Chandra Bose के विवरणों के बारे में, उनके उद्देश्यों के बारे में और उनके लिए अहमियतें के बारे में समझाती है।

मैं इसके लिए लेखक को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहता हूँ। यह पोस्ट हमेशा प्रतिबिंबित होने वाले लोगों के लिए उपयोगी है, जो इतिहास को समझने और मृत व्यक्तियों के लिए सम्मान के विवरण प्राप्त करना चाहते हैं।

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस 10 lines (Subhash Chandra Bose Essay in Hindi) 100, 150, 200, 250, 300, 500, शब्दों मे

essay writing on subhash chandra bose in hindi

Introduction

नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose Essay in Hindi) – सुभाष चंद्र बोस (जिसे सुभाष चंद्र बोस भी कहा जाता है), बंगाल के महान राष्ट्रीय नायक का जन्म कटक, उड़ीसा (अब ओडिशा) में 23 जनवरी, 1897 को हुआ था। वह भारत के एक देशभक्त और निस्वार्थ नेता थे, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय बनाने के लिए जाना जाता था। पार्टी (आईएनए)। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील थे। उनकी माता प्रभावती देवी थीं।

सुभाष चंद्र बोस पर 10 पंक्तियाँ (10 Lines on Subhash Chandra Bose in Hindi)

  • 1) सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था।
  • 2) वे अपने माता-पिता की 9वीं संतान थे।
  • 3) नेताजी 1913 की मैट्रिक की परीक्षा में दूसरे स्थान पर रहे।
  • 4) वे 1919 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में चौथे स्थान पर थे लेकिन 23 जनवरी 1921 को इस्तीफा दे दिया।
  • 5) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव चुने जाने के बाद, उन्होंने 1928 में कांग्रेस स्वयंसेवी कोर का गठन किया।
  • 6) बोस 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे।
  • 7) नेताजी कलकत्ता में हाउस अरेस्ट के दौरान 17 जनवरी 1941 को जर्मनी भाग गए।
  • 8) इंडियन नेशनल आर्मी ने जापान की मदद से 1942 में अंडमान और निकोबार द्वीप पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया।
  • 9) 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू जापान में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गई।
  • 10) नेताजी की अस्थियां टोक्यो में निचिरेन बौद्ध धर्म के रेंकोजी मंदिर में सुरक्षित हैं।

सुभाष चंद्र बोस पर 100 शब्द (100 Words On Subhash Chandra Bose in Hindi)

सुभाष चंद्र बोस 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे। बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे, जो स्वतंत्रता के संघर्ष में सबसे आगे एक राजनीतिक दल था। बोस स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए बल का उपयोग करने में विश्वास करते थे और फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया, जो एक राजनीतिक समूह था जिसने भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी सैनिकों को एकजुट करने की मांग की थी।

भारतीय स्वतंत्रता के कारण बोस के प्रयासों और बलिदानों को भारत में व्यापक रूप से याद किया जाता है और मनाया जाता है, और उन्हें अक्सर नेताजी के रूप में जाना जाता है, जिसका हिंदी में अर्थ “सम्मानित नेता” होता है। उन्हें भारत में एक राष्ट्रीय नायक माना जाता है, और उनके जन्मदिन 23 जनवरी को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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सुभाष चंद्र बोस पर 150 शब्द (150 Words On Subhash Chandra Bose in Hindi)

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक में हुआ था। वह एक बहुत अमीर परिवार से ताल्लुक रखता था और एक मेधावी छात्र था। हालाँकि उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (IC S) की परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन उन्होंने ब्रिटिश सरकार के अधीन सेवा स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

जल्द ही वे राजनीति में शामिल हो गए और कलकत्ता निगम के मेयर बन गए। वे सबसे कम उम्र के कांग्रेस अध्यक्ष भी बने। तब भारत पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। सुभाष चंद्र भारत को एक स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने कई योजनाएँ बनाईं। इसलिए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कैद कर लिया था।

लेकिन उन्होंने देश को भेष बदलकर छोड़ दिया और भारत को ब्रिटिश शासकों के चंगुल से आजाद कराने के लिए INA (इंडियन नेशनल आर्मी) का गठन किया। उन्होंने अपने मिशन को हासिल करने के लिए बड़ी लड़ाईयां लड़ीं। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु एक हवाई दुर्घटना में हुई थी। लेकिन लोगों को इस पर शक है। सुभाष चंद्रा को एक महान भारतीय देशभक्त के रूप में याद किया जाता है।

सुभाष चंद्र बोस पर 200 शब्द (200 Words On Subhash Chandra Bose in Hindi)

सुभाष चंद्र बोस एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता थे। 1897 में, उनका जन्म भारत के कटक में एक शिक्षित, संपन्न परिवार में हुआ था। बोस एक प्रतिभाशाली छात्र थे और अकादमिक रूप से उत्कृष्ट थे, इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति अर्जित की।

भारतीय स्वतंत्रता और सुभाष चंद्र बोस

इंग्लैंड में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, बोस भारत लौट आए और ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित एक राजनीतिक दल, नवगठित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। वह पार्टी रैंकों के माध्यम से तेजी से ऊपर उठे और स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख नेता बन गए।

बोस ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और अधिक आक्रामक कार्रवाई की वकालत करते थे। उनका मानना ​​था कि अकेले अहिंसक प्रतिरोध ही भारत की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा और अधिक उग्रवादी तरीके आवश्यक थे।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई में धुरी शक्तियों (जर्मनी, इटली और जापान) की मदद मांगी। उन्होंने जर्मनी की यात्रा की और भारत की स्वतंत्रता के लिए सैन्य सहायता और समर्थन की मांग करते हुए एडॉल्फ हिटलर से मुलाकात की। बोस का नेतृत्व और INA के प्रयास भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख कारक थे और भारतीय लोगों के बीच स्वतंत्रता के लिए समर्थन को बढ़ावा देने में मदद की। हालाँकि, बोस की 1945 में एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई, भारत को ब्रिटिश शासन से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करने के कुछ महीने पहले।

सुभाष चंद्र बोस पर 250 शब्द (250 Words On Subhash Chandra Bose in Hindi)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम तो सभी जानते हैं। वे एक महान राष्ट्रीय देशभक्त थे। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। नेताजी के पिता जानकीनाथ बोस कटक के एक प्रतिष्ठित वकील थे और उनकी माता प्रभावती देवी एक धार्मिक महिला थीं। उन्होंने नेताजी को उनके लड़कपन में भारत की विरासत के बारे में पढ़ाया।

नेताजी एक मेधावी छात्र थे और उन्हें कई छात्रवृत्तियाँ मिलीं। उन्होंने क्रेडिट के साथ प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की। आईसीएस परीक्षा में भी उन्होंने बहुत अच्छे अंक दर्ज किए। लेकिन उन्होंने अंग्रेजों के अधीन कोई नौकरी स्वीकार नहीं की।

वह विदेशी शासकों से दिल से नफरत करता था और अपनी मातृभूमि को उनके नियमों से मुक्त करना चाहता था। जल्द ही, उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया। वे देशबंधु चितरंजन दास से प्रभावित थे और उन्हें अपना राजनीतिक गुरु और मार्गदर्शक मानते थे। उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।

बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। वह कई बार सलाखों के पीछे रहे लेकिन उन्होंने अपनी मातृभूमि के प्रति अपने गहन प्रेम को नहीं छोड़ा। वह जापान गए और भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) का गठन किया। उनका नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” ने लोगों को देशभक्ति की भावनाओं से भर दिया।

वह एक सच्चे नेता थे और सेना में उन्हें नेताजी कहा जाता था। कुछ लोग कहते हैं कि नेताजी की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हुई थी, लेकिन दूसरों का मानना ​​है कि यह महान नायक अभी भी जीवित था। उनकी मौत का रहस्य अब भी अनसुलझा है। हमारे देश के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के महान बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।

सुभाष चंद्र बोस पर 300 शब्द (300 Words On Subhash Chandra Bose in Hindi)

सुभाष चंद्र बोस का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वह भारत के एक देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में, भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए बिताया था। स्वतंत्रता सेनानी तो बहुत हुए, लेकिन स्वतंत्रता के लिए साहस और जुनून में उनकी बराबरी करने वाला कोई नहीं था।

एक असाधारण देशभक्त

सुभाष चंद्र बोस एक से अधिक कारणों से एक असाधारण स्वतंत्रता सेनानी थे। कई बार महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के समकालीन होने के बावजूद, वह अंग्रेजों के खिलाफ नरम संघर्ष की उनकी नीति से संतुष्ट नहीं थे। उनका मत था कि इस प्रकार हम पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकेंगे और अंग्रेजों की शर्तों पर समझौता भी करना पड़ेगा।

अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह द्वारा ही स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती थी। उनमें अफगानिस्तान, रूस और जर्मनी की यात्रा करने का साहस था, वे जहां भी जाते थे, अपनी पहचान छिपाते थे और उठक-बैठक बदलते थे। वह भारत के इतिहास में पहले स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने विश्व के नेताओं से मुलाकात की और भारत की आजादी की लड़ाई में उनका समर्थन मांगा।

गांधी के साथ दरार

सुभाष चंद्र बोस को दो बार 1938 में और फिर 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। महात्मा गांधी के साथ अनबन के कारण उन्हें जल्द ही अपने दूसरे कार्यकाल से इस्तीफा देना पड़ा। हालाँकि, सुभाष ने गांधी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या को हराकर बहुमत से जीत हासिल की; सुभाष चंद्र बोस के देशभक्ति के उत्साह से गांधी असहज थे। इसलिए उन्होंने अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक बनाने के लिए इस्तीफा दे दिया।

संघर्ष और मृत्यु

बाद में, सुभाष ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में समर्थन जुटाने के लिए अफगानिस्तान, रूस और जर्मनी की यात्रा की। वह हिटलर से मिलने वाले पहले भारतीय नेता थे। बाद में वे जापान भी गए और वहां इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया। जापानी सेना के सहयोग से भारतीय राष्ट्रीय सेना ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया।

18 अगस्त 1945 को जापान के फॉर्मोसा में एक विमान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई। टेकऑफ़ के तुरंत बाद, उनका विमान एक तेज़ आवाज़ के साथ दुर्घटनाग्रस्त हो गया और दो हिस्सों में टूट गया। हालांकि घातक रूप से घायल नहीं हुए थे, लेकिन बोस पेट्रोल में भीगे हुए थे और आग लगे दरवाजे से भागने की कोशिश करते हुए 80% तक जल गए थे। उसकी जलन गहरी थी और अस्पताल में कुछ समय के लिए ही बची थी।

सुभाष चंद्र बोस भारत की स्वतंत्रता के लिए असाधारण साहस और उत्साह के साथ एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी मृत्यु की परिस्थितियाँ उनकी उद्दंड देशभक्ति में और अधिक रहस्य जोड़ती हैं। उन्हें हमेशा भारत की धरती पर जन्म लेने वाले भारत के सबसे बहादुर बेटे के रूप में याद किया जाएगा।

सुभाष चंद्र बोस पर 500 शब्द (500 Words On Subhash Chandra Bose in Hindi)

सुभाष चंद्र बोस बेजोड़ दृढ़ संकल्प और साहस के व्यक्ति थे जिन्होंने अपना जीवन भारतीय स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

23 जनवरी, 1897 को भारत के कटक में जन्मे बोस एक शिक्षित और संपन्न परिवार से आए थे। वह एक शानदार छात्र थे और अकादमिक रूप से उत्कृष्ट थे, इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति अर्जित करते थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, वह भारत लौट आए और ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित एक राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।

राजनीतिक कैरियर

बोस तेजी से पार्टी के रैंकों के माध्यम से ऊपर उठे और स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख नेता बन गए। हालाँकि, वह अपने विश्वास में अन्य कांग्रेस नेताओं से भिन्न थे कि अहिंसक प्रतिरोध अकेले भारत की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा और अधिक उग्रवादी तरीके आवश्यक थे। इसके कारण कांग्रेस नेतृत्व के साथ मतभेद हो गए और 1939 में बोस ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया, जो एक राजनीतिक समूह था जिसने भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी ताकतों को एकजुट करने की मांग की।

द्वितीय विश्व युद्ध और भारतीय राष्ट्रीय सेना

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई में धुरी शक्तियों (जर्मनी, इटली और जापान) की मदद मांगी। उन्होंने जर्मनी की यात्रा की और भारत की स्वतंत्रता के लिए सैन्य सहायता और समर्थन की मांग करते हुए एडॉल्फ हिटलर से मुलाकात की। 1943 में, उन्होंने जापान की यात्रा की और भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन किया, जो युद्ध के भारतीय कैदियों और दक्षिण पूर्व एशिया में रहने वाले प्रवासियों से बना एक सैन्य बल था। बोस का नेतृत्व और INA के प्रयास भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख कारक थे और भारतीय लोगों के बीच स्वतंत्रता के लिए समर्थन को बढ़ावा देने में मदद की।

सुभाष चंद्र बोस की विरासत

बोस एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे, और उनके समर्पण और बलिदान ने लाखों भारतीयों को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। वह एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने एक स्वतंत्र और स्वतंत्र भारत की क्षमता देखी और इसे हासिल करने के लिए जो भी करना पड़े, करने को तैयार थे। दुर्भाग्य से, बोस की मृत्यु 1945 में एक विमान दुर्घटना में हुई, भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने के कुछ महीने पहले।

आज, बोस को भारत में एक नायक के रूप में याद किया जाता है और नाम हमेशा भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष का पर्याय होगा, और उनके बलिदान और समर्पण को आने वाली पीढ़ियों के लिए याद किया जाएगा।

एक घटना जिसने मुझे सुभाष चंद्र बोस के बारे में प्रेरित किया, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) से इस्तीफा देने और फॉरवर्ड ब्लॉक बनाने का उनका निर्णय था। इस राजनीतिक समूह ने भारत में सभी ब्रिटिश विरोधी ताकतों को एकजुट करने की मांग की।

बोस ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और अधिक आक्रामक कार्रवाई की वकालत करते थे। हालाँकि, उनके विचार कांग्रेस पार्टी के भीतर विवादास्पद थे, और वे पार्टी के नेतृत्व से असहमत थे। संभावित परिणामों और जोखिमों के बावजूद, बोस ने डर को अपने पास नहीं आने दिया और अपना राजनीतिक समूह बनाने के लिए साहसिक कदम उठाया। इसने उनके सामने आने वाली चुनौतियों की परवाह किए बिना भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के उनके दृढ़ संकल्प और दृढ़ विश्वास को प्रदर्शित किया।

अपने सिद्धांतों और विश्वासों का पालन करने का बोस का निर्णय, भले ही इसका मतलब मुख्यधारा के खिलाफ जाना हो, मेरे लिए एक प्रेरणा है और एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि किसी को हमेशा अपने विश्वास के लिए खड़ा होना चाहिए।

 सुभाष चंद्र बोस पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q.1 सुभाष चंद्र बोस ने इंग्लैंड में कौन सी परीक्षा पास की थी.

उत्तर. सुभाष चंद्र बोस ने इंग्लैंड में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की।

Q.2 सुभाष चंद्र बोस को लोकप्रिय रूप से क्या कहा जाता था?

उत्तर. वे लोकप्रिय रूप से ‘नेताजी’ के नाम से जाने जाते थे।

Q.3 सुभाष चंद्र बोस ने किस पार्टी की स्थापना की थी?

उत्तर. सुभाष चंद्र बोस ने 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक नाम की पार्टी की स्थापना की।

Q.4 सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक गुरु के रूप में किसे जाना जाता है?

उत्तर. चितरंजन दास को सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक गुरु के रूप में जाना जाता है।

Q.5 सुभाष चंद्र बोस को ‘देश नायक’ की उपाधि किसने दी थी?

उत्तर. सुभाष चंद्र बोस को ‘देश नायक’ की उपाधि रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी।

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हिन्दी निबंध : नेताजी सुभाषचंद्र बोस। Essay on Subhash - Subhash Chandra Bose: Essay on Subhash

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Subhash Chandra Bose Biography: नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

सुभाष चंद्र बोस के बारे में (About Subhash Chandra Bose): सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ। उनेक पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती दत्त था। वह भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ थे।

उनकी देशभक्ति, अचल साहस और वीरता ने उन्हें एक राष्ट्रीय नायक बनाया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाजी पार्टी और इंपीरियल जापान की मदद से उन्होंने अंग्रेजों से आजादी के लिए अथक प्रयास किए। उनका नाम सुनकर हर भारतीय को गर्व महसूस होता है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें अक्सर गांधीजी के साथ विचारधाराओं के टकराव का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्हें वह पहचान नहीं मिली जिसके वह हकदार थे। आईए जानते हैं सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय।

Subhash Chandra Bose Biography: नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

प्रोफ़ाइल

  • जन्म: 23 जनवरी 1897
  • जन्म स्थान: कटक, उड़ीसा
  • माता-पिता: जानकीनाथ बोस (पिता) और प्रभावती देवी (मां)
  • पति या पत्नी: एमिली शेंकल
  • बच्चे: अनीता बोस फाफ
  • शिक्षा: रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल, कटक; प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता; कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड
  • संघ: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस; फॉरवर्ड ब्लॉक; भारतीय राष्ट्रीय सेना
  • आंदोलन: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
  • राजनीतिक विचारधारा: राष्ट्रवाद; साम्यवाद; फासीवाद-झुकाव;
  • धार्मिक विश्वास: हिंदू धर्म
  • प्रकाशन: भारतीय संघर्ष (1920-1942)
  • मृत्यु: 18 अगस्त, 1945
  • स्मारक: रेंक जी मंदिर टोक्यो जापान, नेताजी भवन कोलकाता भारत

सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा

सुभाष चंद्र बोस जानकीनाथ बोस और प्रभावती दत्त की चौदह संतानों में से नौवें थे। उन्होंने कटक में अपने अन्य भाई-बहनों के साथ प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में पढ़ाई की, जिसे अब स्टीवर्ट हाई स्कूल कहा जाता है। वह एक मेधावी छात्र थे और उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया था। उन्होंने कलकत्ता में प्रेसीडेंसी कॉलेज (अब विश्वविद्यालय) में एडमिशन लिया। जब वह 15 वर्ष के थे, तब स्वामी विवेकानंद और श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं और दर्शन से बहुत प्रभावित हुए।

बाद में उन्हें ओटेन नाम के एक प्रोफेसर पर हमला करने के आरोप में कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। हालांकि उन्होंने अपील की थी कि वह इस हमले में भागीदार नहीं थे, बल्कि केवल वहां खड़े थे। इस घटना ने उनमें विद्रोह की भावना को प्रज्वलित कर दिया। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर हो रहे दुर्व्यवहार से वह काफी परेशान थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के तहत स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने वर्ष 1918 में दर्शनशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे अपने भाई सतीश के साथ भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए लंदन चले गए। वहां उन्होंने परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में अच्छे अंकों के साथ पास हो गए। लेकिन उनके मन में अभी भी मिश्रित भावनाएं थीं क्योंकि उन्हें अब अंग्रेजों द्वारा स्थापित सरकार के तहत काम करना होगा, जिसे वह पहले से ही तिरस्कृत करना शुरू कर चुके थे। इसलिए 1921 में उन्होंने कुख्यात जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना के बाद अंग्रेजों के बहिष्कार के प्रतीक के रूप में भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया।

सुभाष चंद्र बोस का परिवार

उनके पिता जानकी नाथ बोस, उनकी माता प्रभावती देवी थीं और उनकी 6 बहनें और 7 भाई थे। उनका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न परिवार था जो कायस्थ जाति का था।

सुभाष चंद्र बोस की पत्नी

सुभाष चंद्र बोस ने एमिली शेंकेल नामक महिला से विवाह किया। क्रांतिकारी नेताजी की पत्नी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। हालांकि, उनकी एक बेटी है जिसका नाम अनीता बोस है। वह हमेशा अपने निजी जीवन को बेहद निजी रखना पसंद करते थे और कभी सार्वजनिक मंच पर ज्यादा बात नहीं करते थे। वह एक पारिवारिक व्यक्ति नहीं थे और अपना सारा समय और ध्यान देश के लिए समर्पित करते थे। उनका एकमात्र उद्देश्य एक दिन स्वतंत्र भारत देखना था वह देश के लिए जिये और देश के लिए मरे भी।

Subhas Chandra Bose Jayanti 2024: 10 लाइनों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध कैसे लिखें

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे और वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) में शामिल हो गए। उन्होंने "स्वराज" नामक समाचार पत्र शुरू किया, जिसका अर्थ है स्व-शासन जो राजनीति में उनके प्रवेश का प्रतीक है और भारत में स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका अभी शुरू हुई है। चितरंजन दास उनके गुरु थे। वर्ष 1923 में वह अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और स्वयं सीआर दास द्वारा शुरू किए गए समाचार पत्र "फॉरवर्ड" के संपादक बने। उस समय वे कलकत्ता के मेयर भी चुने गए थे। उन्होंने नेतृत्व की भावना प्राप्त की और बहुत जल्द INC में शीर्ष पर अपना रास्ता बना लिया। 1928 में, मोतीलाल नेहरू समिति ने भारत में डोमिनियन स्टेटस की मांग की लेकिन जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाष चंद्र बोस ने जोर देकर कहा कि अंग्रेजों से भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के अलावा कुछ भी संतुष्ट नहीं करेगा। गांधीजी ने बोस के तरीकों का कड़ा विरोध किया, जो हुक या बदमाश द्वारा स्वतंत्रता चाहते थे, क्योंकि वे स्वयं अहिंसा के दृढ़ विश्वासी थे।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उन्हें 1930 में जेल भेज दिया गया था, लेकिन 1931 में जब गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे तब अन्य प्रमुख नेताओं के साथ उनका संबंध था। 193 में 1938 में उन्हें कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में चुना गया और 1939 में डॉपी सीतारमैय्या के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करके त्रिपुरी अधिवेशन में फिर से चुना गया, जिन्हें स्वयं गांधी का समर्थन प्राप्त था। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के दौरान सख्त मानकों को बनाए रखा और छह महीने के भीतर अंग्रेजों से भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। उन्हें कांग्रेस के अंदर से कड़ी आपत्तियों का सामना करना पड़ा जिसके कारण उन्हें कांग्रेस से इस्तीफा देना पड़ा और "फॉरवर्ड ब्लॉक" नामक एक अधिक प्रगतिशील समूह का गठन किया।

Subhash Chandra Bose Quotes: देशभक्ति से ओत-प्रोत होने के लिए पढ़े नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ये नारे

उन्होंने विदेशी देशों के युद्धों में भारतीय पुरुषों का उपयोग करने के खिलाफ एक जन आंदोलन शुरू किया, जिसे अपार समर्थन और आवाज मिली, जिसके कारण उन्हें कलकत्ता में नजरबंद कर दिया गया, लेकिन जनवरी 1941 में वे भेस में घर छोड़कर अफगानिस्तान के रास्ते जर्मनी पहुंचे और मिले वहां के नाजी नेता ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए उनसे मदद मांगी। उसने जापान से भी मदद मांगी थी। उन्होंने "दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है" के दर्शन का पूरा उपयोग किया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन कब कैसे हुआ

जुलाई 1943 में वह सिंगापुर पहुंचे और रास बिहारी बोस द्वारा शुरू किए गए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की बागडोर संभाली और आजाद हिंद फौज की स्थापना की, जिसे भारतीय राष्ट्रीय सेना के रूप में भी जाना जाता है। इस समय उन्हें "नेताजी" के रूप में सम्मानित किया गया था, जिसके द्वारा उन्हें आज भी आमतौर पर संदर्भित किया जाता है। INA ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को मुक्त करा लिया लेकिन जब यह बर्मा पहुंचा तो खराब मौसम की स्थिति, साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध में जापान और जर्मनी की हार ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। 18 अगस्त 1945 को ताइपेई, ताइवान में एक विमान दुर्घटना में उनके मारे जाने की खबर है, लेकिन कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

Netaji Subhas Chandra Jayanti 2024: नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर भारत के प्रतिष्ठित स्थानों की लिस्ट

सुभाष चंद्र बोस जयंती को आधिकारिक तौर पर पराक्रम दिवस के रूप में जाना जाता है, हर साल 23 जनवरी को लोग भारत के सबसे महान मुक्ति सेनानियों में से एक के रूप में नेताजी के साहस की याद में सुभाष चंद्र बोस जयंती मनाते हैं, जिसे पराक्रम दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इस साल भी यह 23 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक, उड़ीसा में हुआ था और 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में जलने से घायल होने के बाद ताइवान के एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का पैतृक घर जानकीनाथ भवन उड़ीसा के कटक शहर के उड़िया बाजार में स्थित है। इसी घर में 23 जनवरी को सुभाष बोस का जन्म हुआ था। 1897 और अपना प्रारंभिक बचपन कटक में बिताया।

यह निर्णय नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 124वीं जयंती मनाने और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अथक प्रयासों को श्रद्धांजलि देने के लिए भी किया गया।

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सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 2024 | Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi

नमस्कार आज का निबंध, सुभाष चंद्र बोस पर निबंध 2024 | Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi पर दिया गया हैं, हम नेताजी सुभाष बाबू के जीवन के बारे में इस निबंध में जानेगे.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नेताजी के बारे में स्टूडेंट्स के लिए आसान निबंध यहाँ दिया गया हैं.

Hello In this article, we are providing about Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi. सुभाष चंद्र बोस पर निबंध Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi,

Netaji Subhash Chandra Bose Par Nibandh class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 Students.

सुभाषचंद्र बोस पर छोटा निबंध 2024 | Short Essay On Subhash Chandra Bose In Hindi

महान स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिन्द फौज के सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म २३ जनवरी १८९७ को उड़ीसा के कटक के एक बंगाली परिवार में जन्मे थे.

इनके पिता जानकीनाथ बोस जी एक वकील थे इनकी माताजी का नाम प्रभावती देवी था. इंग्लैंड से ICA की परीक्षा उतीर्ण करने वाले सुभाष बाबू ने अपने प्रारम्भिक शिक्षा कटक तथा बाद में उच्च शिक्षा कलकत्ता से प्राप्त की.

सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने के बाद नेताजी ने ब्रिटिश सरकार के उच्च पदों पर काम करने की बजाय भारत की आजादी के लिए घर से निकल गये. उन्होंने अपने इस अभियान के लिए कांग्रेस की सदस्यता ली.

गरमपन्थ की विचारधारा वाले नेताजी गांधीजी से व्यक्तिगत रूप से बड़ा प्रभावित थे मगर आजादी आंदोलन के लिए अहिंसक आंदोलन और याचना की गांधी नीति का विरोध करने वालों में सुभाष बोस अग्रणी थे.

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय राष्ट्रीय संग्राम के लिए सबसे अधिक प्रेरणा के बिंदु रहे. उन्होंने आजाद हिन्द फौज और भारतीयों को संबोधित करते हुए दो नारे दिए- तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा और दिल्ली चलो.

इन्ही भाव को जगाकर उन्होंने सम्पूर्ण भारत के लोगों को एकजुट किया. एक बार नेताजी जब इंग्लैंड में कक्षा में बैठे थे अंग्रेजी के प्राध्यापक भारत के बारे में गलत बता रहे थे तो उन्होंने इसका विरोध किया,

जिसके बदले उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया जिसके बाद इन्होने स्कोटिश चर्च कॉलेज में आशुतोष मुखर्जी के सहायता से प्रवेश लिया.

देशबंधु चितरंजनदास के साथ इन्होंने कई बार जेल की यातनाएं भी भोगी. जेल में कई बार उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ा मगर वे अपने लक्ष्य से नहीं भटके. दूसरे विश्व युद्ध के समय नेताजी भारत छोड़कर जर्मनी चले गये वहां से सिंगापूर गये तथा उन्होंने वही से आजाद हिन्द फौज का गठन किया.

तकरीबन एक लाख सैनिकों के साथ नेताजी ने दक्षिण एशिया के देशों से यात्रा के बाद पूर्वी भारत में अपने कदम रखे. जल्द ही नेताजी अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह नागालैण्ड और मणिपुर में भारतीय ध्वज फहराने में सफल रहे.

भारत की आजादी में सभी नेताओं और संगठनों से बढकर नेताजी और उनकी फौज का सबसे महत्वपूर्ण योगदान था. 18 अगस्त, 1945 को उनकी मृत्यु एक विमान दुर्घटना में उनकी म्रत्यु बताई जाती हैं. नेताजी की मृत्यु को लेकर बार बार सरकार पर दवाब भी डाला गया.

125वीं जयंती

23 जनवरी 2022 को देश अपने बोस की 125 जयंती मनाने जा रहा हैं इस मौके पर भारत सरकार ने इंडिया गेट स्थित कैनोपी में नेताजी की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया गया.

1968 तक इस स्थल पर जार्ज पंचम का स्टेच्यु हुआ करता था, भारतीय स्वतंत्रता और स्वाभिमान के प्रतीक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भव्य प्रतिमा बनने तक यहाँ होलोग्राम स्टेच्यू शान से खड़ा रहेगा.

सुभाष चंद्र बोस पर निबंध

सुभाषचंद्र बोस भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उन थोड़े से नायकों में से थे जिन्होंने राष्ट्र की स्वतंत्रता का बीड़ा देश और विदेश दोनों में अपने कंधों पर उठाया.

बोस एक महान यथार्थवादी राजनीतिक नेता थे. वे पक्के देशभक्त, कुशल प्रशासक, दृढ़ निश्चयी एवं प्रभावशाली वक्ता थे.

सुभाषचंद्र बोस जिन्हें प्रायः नेताजी कहा जाता है, का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक नामक स्थान पर एक प्रतिष्ठित मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता श्री जानकीदास थे. कहा जाता है कि उनकी मृत्यु 8 अगस्त 1945 को फरमोसा में हवाई दुर्घटना में हुई.

उन्होंने 1919 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1920 में वह भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा में ऊतीर्ण हुए तथा योग्य पद पर कार्य करने लगे.

सुभाषचंद्र बोस का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की भूमिका तथा सक्रिय सहभागिता का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता हैं.

पद त्याग और असहयोग आंदोलन में शामिल होना – यदपि सुभाषचंद्र बोस ics परीक्षा में सफल होकर कार्य करने लगे थे, परन्तु उनमें देशभक्ति और राष्ट्रीय सेवा की भावनाएं इतना उबाल ले रही थीं कि उन्होंने 1921 ई में पद त्याग कर दिया.

राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी – बोस ने राजनीति में अपना जीवन एक असहयोगी के रूप में शुरू किया. देशबंधु चितरंजन दास के प्रभाव में आकर वह शीघ्र ही उनके सर्वाधिक विश्वस्त प्रतिनिधि दाहिना हाथ और स्वराजिस्ट बन गये. 1923 में उन्होंने स्वराज्य दल के गठन और कार्यक्रम का समर्थन किया. कुछ समय नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे.

अक्टूबर 1924 में बंगाल सरकार ने उनकी राजनीतिक गतिविधियों के लिए बंदी बनाकर बर्मा के नगर मांडले में तीन वर्ष के लिए निर्वासित कर दिया. उन्होंने 1930-34 में होने वाले सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और कभी जेल के बाहर तथा कभी जेल के अंदर होते थे.”

कांग्रेस का त्याग – सुभाष ने गांधी इरविन समझौते का कठोर विरोध किया. करांची अधिवेशन के अवसर पर उन्होंने महात्मा गांधी की नीति की तीव्र आलोचना की. गांधीजी के गोलमेज सम्मेलन से खाली हाथ लौटने पर पुनः सत्याग्रह प्रारम्भ होने पर सुभाष बाबू गिरफ्तार कर लिए गये.

बोस फरवरी 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के अध्यक्ष तथा पुनः जनवरी 1938 में त्रिपुरा कांग्रेस के अधिवेशन में महात्मा गांधी के स्पष्ट विरोध करने पर भी अध्यक्ष चुन लिए गये.

गांधी और दक्षिणपंथी सुभाषचंद्र बोस को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए योजना बनाने लगे. परन्तु बोस ने स्वयं ही अध्यक्ष पद से अप्रैल 1939 में त्याग पत्र दे दिया तथा मई 1939 में कांग्रेस के अंदर ही फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की.

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया. इस अवसर पर सुभाषचंद्र बोस ने विदेशियों की सहायता से स्वतंत्रता प्राप्त करने का निश्चय किया. परन्तु ब्रिटिश सरकार ने 2 जुलाई 1940 को सुभाष को गिरफ्तार कर लिया और उनके घर में नजरबंद कर दिया.

26 जनवरी 1941 को सुभाष अपने निवास स्थान से भाग निकले और मास्को होते हुए बर्लिन पहुच गये. सितम्बर 1942 में आजाद हिन्द फौज का गठन किया गया.

आजाद हिन्द फौज का संगठन – जापान से 2 जुलाई 1943 को सुभाष सिंगापुर पहुंचे और रास बिहारी बोस द्वारा बनाई गयी भारतीय स्वतंत्रता लीग के अध्यक्ष बने.

उन्होंने आजाद हिन्द फौज का संगठन किया. सुभाष बोस ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाने और आजाद हिन्द फौज को लेकर भारत जाने की घोषणा की. आजाद हिंद फौज के पुननिर्माण की घोषणा सारे विश्व में रेडियो से की गयी. घोषणा इस प्रकार थी.

एक बार सुभाष और उनके मित्र इस बात पर चर्चा कर रहे थें कि आखिर सफलता प्राप्त करने के लिए किन बातों पर ध्यान दिया जाए ? ऐसी कोनसी महत्वपूर्ण बाते है जिनके माध्यम से हम अपने देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.

एक मित्र बोला- देश के लिए अच्छी योजनाएं हमारे दिमाग में आए, इसकें लिए हमें महान लेखकों की पुस्तकों को पढ़ना चाहिए. दूसरा मित्र बोला- हमें आध्यात्म एवं योग पर बल देना चाहिए.

योग और आध्यात्म से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से बलशाली बन सकता हैं. सभी ने हाँ में हाँ मिलाई, सुभाष सभी मित्रों की बात ध्यान से सुन रहे थे.

तीसरा मित्र बोला- सुभाष बाबू तुम हम सब में प्रतिभाशाली हो और आज चुपचाप बैठे हो. देखों, सभी अपने सुंदर विचार एक दुसरे को बता रहे हैं. आख़िर तुम भी अपनी राय दो न कि कैसे हम देश की आजादी के लिए योगदान दे ?

सुभाष बोले- तुम सब अपने अपने विचार एक दुसरे को बता रहे थे तो गंभीरता से मैं तुम्हारी बातों को ही सुन रहा था. अब तुम मुझे ईमानदारी से बताओं कि तुममें से कितने लोग आज से योग व आध्यात्म पर ध्यान देगे?

यह सुनकर सभी चुप हो गये. उनकों देखकर सुभाष बोले ”और कितने लोग ऐसे है, जो आज से ही प्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकों को पढ़ना शुरू करेंगे?

अब तो सबकी बोलती बंद हो गई. सुभाष बोले, मै यह सब इसलिए नही कह रहा हु कि तुम्हे लगे कि मैं सही और तुम गलत हो, बल्कि मैं यह सब इसलिए कह रहा हूँ क्योकि हमें देश की स्वतंत्रता के लिए केवल विचार भर नही करना हैं, बल्कि कार्य भी करना हैं.

इसके लिए बड़े बड़े विचारकों, आध्यात्मिक ग्रंथों या लेखकों को पढ़ने की आवश्यकता नही है, वरन अपने जीवन की छोटी छोटी बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता हैं. अक्सर हम छोटी छोटी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं. हम उन्हें महत्वहीन या मामूली समझते हैं.

किन्तु कई बार छोटी छोटी बातें बड़े आविष्कारों, कार्यों व कामयाबी का ऐसा नया इतिहास रचती है, जिनकी हम कल्पना भी नही कर सकते हैं. परमाणु अत्यंत छोटा होता है,

लेकिन जब यही परमाणु बम बन जाता है तो पूरी स्रष्टि को नष्ट करने की ताकत रखता हैं. उसी तरह नन्ही चींटी का अस्तित्व नजर नही आता हैं, लेकिन ये चींटी विशालकाय हाथी की मौत का कारण बन जाती हैं.

अनेक आविष्कार भी छोटी छोटी बातो पर ध्यान देकर ही निकले हैं. सुभाष की छोटी छोटी बातों के गुण सुनकर तो सभी मित्र आवाक् रह गये. वे एक साथ बोले ”सुभाष, तभी तो तुम हमारे नेता हो और सर्वाधिक प्रतिभाशाली हो. हम जहाँ तक सोच भी नही पाते है वहां तक तुम कार्य कर आते हो.

इस पर सुभाष बोले- इसका अर्थ यह बिलकुल नही हैं कि तुम पुस्तकों योग और आध्यात्म का महत्व ही छोड़ दो. यदि हम यह भी कर पाते है ,

तो बहुत अच्छी बात है किन्तु इनके साथ साथ हमें जीवन की छोटी छोटी बातों पर ध्यान केन्द्रित कर आगे बढ़ना हैं. सभी मित्र बोले हाँ सुभाष, हम आज से ही यह कोशिश करेगे कि छोटी छोटी बातों का महत्व समझे.

One comment

very nice post subhash chandra essay

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Netaji Subhash Chandra Bose Essay in English and Hindi -_0.1

  • Netaji Subhash Chandra Bose Essay in English and Hindi

Netaji Subhash Chandra Bose Essay in English and Hindi is given in this article. Take a look at the essay on Subhash Chandra Bose for students and children in 100, 150, 200, 250, and 100 words.

Netaji Subhash Chandra Bose Essay

Table of Contents

Netaji Subhash Chandra Bose was one of the most prominent Indian Nationalist and freedom fighters of India who played a significant role in the freedom movement of India. He is also credited with the formation of the Azad Hind Force that fastened the process of freedom movement in India. His unshakable resolve, steadfast passion, and commitment to the cause have made a lasting impression on the history of the country.

Netaji Subhash Chandra Bose

There aren’t many historical figures in India as prominent as Subhas Chandra Bose. Bose, who is known as “Netaji” or the leader, won the respect and affection of the country for his unshakable commitment to India’s freedom. Though his undying patriotism continues to be an unquestionable source of inspiration, his wartime connections, daring escape from house arrest, and command of the Azad Hind Fauj (Indian National Army) continue to spark discussion.

During the fight for Indian independence from British colonial control, Subhash Chandra Bose was initially given the nickname “Netaji” by Indian soldiers of the Azad Hind Fauj (Indian National Army). The Hindi words “Neta,” which means leader, and “Ji,” which means with respect, are combined to form the name “Netaji”. To learn from the life and struggles of such a great leader, students are asked to research about him and write an essay on him. That is why, below we have provided essays on Netaji Subhash Chandra Bose in both English and Hindi.

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Subhash Chandra Bose Essay in 100 Words

Millions of Indians lovingly refer to Subhash Chandra Bose as “Netaji,” who was a political figure and a revered liberation warrior. Netaji was a member of the Indian National Congress since his early manhood and served as its president twice.

Due to his practically violent approach against the British Empire and its Indian supporters, Netaji had significant opponents while he was in India. Throughout his life, Netaji made a valiant effort to enlist the support of supporters worldwide in the struggle for Indian independence. Though he had both successes and failures, he left a patriotic and nationalistic legacy that would serve as an inspiration to many future generations.

Subhash Chandra Bose Essay in English 150 Words

One name that sticks out in the glories of India’s freedom movement is Subhash Chandra Bose. He was a man of extraordinary nationalistic and patriotic passion. Millions of Indians, particularly young people, looked up to, adored, and admired Netaji as an inspiration and a beacon of hope. Millions of people witnessed the advent of a new India under Netaji, one that was autonomous.

Bose was a longtime associate of the Congress and its president twice over. But because of disagreements with Mahatma Gandhi and other party members, he resigned as president. Bose intended to promote a change that would make the Congress more forceful in its policies since he was against the Congress’s soft attitudes toward the British. This went against Mahatma Gandhi’s policies and subsequently attempted to quell Bose’s ambitions.

Nevertheless, in spite of all the odds, Bose achieved great success and nearly brought independence to India; sadly, on August 18, 1945, at the age of 48, he was killed in an aircraft crash.

Netaji Subhash Chandra Bose Essay in English and Hindi -_4.1

Subhash Chandra Bose Essay in English 200 Words

Indian independence warrior Subhash Chandra Bose is revered as a national hero for his exceptional patriotism. Bose, who was born on January 23, 1897, into a prosperous family, had a good education. In 1921, he was also chosen for the prestigious Indian Administrative Services (IAS), also known as the Indian Civil Services (ICS). He did, however, leave ICS that same year after working there for a short time because he thought it was wrong to work for the British. He stated, “Only on the soil of sacrifice and suffering can we raise our national edifice,” in a letter to his brother Sarat Chandra Bose.

In doing so, he bravely left ICS to join the Indian liberation movement and made many sacrifices and sufferings. From January 1939 until January 1941, he was the President of the Indian National Congress twice, and he continued to be involved in politics. After that, in April 1939, he resigned as President of the Congress due to ideological disagreements with Mahatma Gandhi.

Subhash Chandra Bose established “The Forward Bloc,” a distinct party within the Congress, following his resignation. Its primary goal was to bring the left and other forces together in the struggle for India’s independence. He is also remember for slogans like “Dilli Chalo” and “Tum Mujhe Khoon Do, Mai Tumhe Azadi Dunga”.

Essay on Subhash Chandra Bose in 250 Words

Indian freedom warrior Subhash Chandra Bose was born in Cuttack, Orissa, in the Province of Bengal on January 23, 1897. Additionally, he was called “Netaji,” which translates to “leader” in Hindi. In 1942, he received the accolade from German soldiers serving in an Indian legion in Germany.

The Indian National Congress elected Netaji as its president twice: once, on January 18, 1938, to January 28, 1939, and again, on January 29, 1939, until April 29, 1939. His brief second stint as president lasted about three months until he was forced to quit because of disagreements with Mahatma Gandhi.

As a devoted patriot, Netaji supported total freedom from all restrictions and duties. He believed that independence won under British terms would be detrimental to the country’s advancement.

When Netaji couldn’t find any political backing for his beliefs in India, he fled to Germany in 1941. There, he got to know Adolf Hitler, the head of the German military, and managed to win his allegiance.

Many historians and political theorists questioned Netaji’s intention to drive the British out of India with the assistance of German armies commanded by Adolf Hitler. They thought that the axis would win since the Germans would be hesitant to withdraw from Indian territory following their victory.

On August 18, 1945, Netaji Subhash Chandra Bose perished in a plane crash in Taiwan, which was ruled by the Japanese. Japan’s “Renkoji Temple,” a Buddhist shrine, is home to Netaji’s preserved remains.

Netaji Subhash Chandra Bose Essay in English and Hindi -_5.1

Essay on Subhash Chandra Bose in 1000 Words

Introduction

An iconic figure in the Indian independence movement, Netaji Subhas Chandra Bose is still remembered for his bravery, tenacity, and inspiring leadership. Subhas Chandra Bose, who was born in Cuttack, Odisha, on January 23, 1897, was a key figure in the Indian liberation movement against British colonial control. As India commemorates its independence, Bose’s legacy serves as a reminder that obtaining liberty is not always easy and that standing up to the established quo—even in contentious ways—can be a vital first step towards a better future.

Netaji Subhash Chandra Bose Essay

Early Years and Schooling

Netaji Subhas Chandra Bose came from a well-known Kayastha family with a history of public service. Janakinath Bose, his father, was a well-known lawyer, and Prabhavati Devi, his mother, was a progressive and pious woman. It was during these early demonstrations of leadership and resolve that Subhas Chandra Bose laid the groundwork for his eventual involvement in the struggle for India’s freedom.

Having come from a prosperous background, Netaji attended some of British India’s most esteemed educational establishments. At the age of five, he was accepted into the Protestant European School, also known as Stewart High School, in Cuttack in January 1902. Among the prestigious schools he attended to pursue his studies were Presidency College in Kolkata and Ravenshaw Collegiate School in Cuttack.

Bose, who attended Cambridge University, did well on the Indian Civil Service test but resigned from the esteemed administrative post because of his strong belief in the nation’s freedom. His choice was a reflection of the enduring dedication that would characterise his life and work.

Cracking Indian Civil Services (ICS) Exam

Netaji departed for London in 1919 in order to carry out a pledge he had given to his father regarding his preparation for and selection into the Indian Civil Services (ICS). Additionally, his father has set aside Rs 10,000 for his travel to and accommodations in London.

Netaji resided at Belsize Park in London with his brother Satish. He enrolled in Fitzwilliam College, part of the University of Cambridge, to study for Mental and Moral Sciences while he prepared for the ICS.

After being chosen for the Indian Civil Services Examination, Netaji left his position on April 23, 1921, and returned to India. He wrote a letter to his brother explaining his resignation from the ICS, citing his opposition to working for the British government. “On the soil of sacrifice and suffering can we raise our national edifice,” he added in the letter.

Contribution to Indian National Congress

Netaji Subhas Chandra Bose’s significant participation in the Indian National Congress preceded him into politics. He became a force to be reckoned with as a leader of the party, pushing for further steps towards total independence. In 1938 and 1939, Bose was elected President of the Indian National Congress, a pivotal year in India’s independence movement.

Under Bose’s leadership, the demand for “Purna Swaraj” (total independence) emerged as a key subject. However, he resigned from his position as president of the Congress due to ideological disagreements with Mahatma Gandhi and other leaders. Bose persisted in seeking independence through alternative means, unfazed.

The Forward Bloc’s Formation:

The Forward Bloc was a political organisation that Netaji Subhas Chandra Bose created in 1939 with the intention of bringing like-minded people together and advocating for a more aggressive strategy to secure India’s independence. Bose used the Forward Bloc as a platform to rally people behind his idea of a liberated and unified India.

International Efforts

His audacious 1941 escape from house imprisonment in Calcutta is considered one of the most famous moments of Netaji’s life. Bose travelled to Kabul and then Berlin while posing as a pathan in order to get support for India’s cause internationally during World War II. He founded the Free India Centre in Germany and later organised Indian prisoners of war to form the Indian Legion, which sided with the Axis powers.

An important stage in Netaji’s campaign to free India from British control was the alliance he formed with Japan and the establishment of the Indian National Army (INA). The INA was instrumental in the Burma Campaign, and soldiers fighting under Netaji’s command adopted the term “Jai Hind” as a rallying cry.

Netaji Subhash Chandra Bose Essay

Even though the INA was never able to defeat the British on the battlefield, it demonstrated that Indians were prepared to fight for their independence by its sheer existence. Indians all around the world were inspired to believe in themselves and be defiant by Bose’s own audacious feats, which included his escape and his leadership of the INA.

Legacy and Disappearance

The freedom struggle in India benefited greatly from Netaji Subhas Chandra Bose, whose legacy lives on in the hearts of millions of people. Generations after generation have been inspired by his leadership, which is marked by a unique combination of bravery, strategic brilliance, and intense patriotism.

There is still ambiguity regarding the circumstances of Netaji’s death. Although the official story states that he perished on August 18, 1945, in a plane accident near Taipei, there are several competing explanations and disagreements regarding this occurrence. To Netaji’s already legendary stature, the mystery surrounding his disappearance lends an additional degree of fascination.

Honoring Netaji

Netaji Subhas Chandra Bose is regarded as one of the greatest heroes of independent India. On January 23, the day of his birth, people commemorate “Parakram Diwas” in his honour because of his bold leadership and steadfast dedication to the nation’s liberation. His memory is perpetuated by the Netaji Subhas Chandra Bose International Airport in Kolkata and the famous Netaji Bhawan in Delhi.

The life of Netaji Subhas Chandra Bose was a tale of selflessness, tenacity, and leadership that profoundly influenced the direction of India’s independence fight. His beliefs, ideals, and plan for a free and unified India still inspire and speak to the nation’s spirit. Netaji’s legacy, which represents the unwavering spirit of those who dared to dream of a free and sovereign nation, is still an essential component of India’s historical story.

Netaji Subhash Chandra Bose Essay in English and Hindi -_8.1

Netaji Subhash Chandra Bose Paragraph for Class 5

Students from the early years of their school are encouraged to write about Netaji Subhash Chandra Bose. For this purpose, below we are providing students with the paragraph on the Netaji Subhash Chandra Bose for class 5 students.

One of the most well-liked Indian liberation fighters was the nationalist Subhas Chandra Bose. He was born on January 23, 1897, into a prosperous family in Cuttack, Odisha (which was then the Orissa Division of Bengal Province under the British Raj). Janakinath Bose was his father, while Prabhavati Dutt Bose was his mother. He fought for freedom and was greatly impacted by Swami Vivekananda’s teachings. “Give me blood, and I shall give you freedom” is a famous remark he said.

Netaji participated actively in the Indian National Congress. In 1923, he won the All India Youth Congress presidential election. As a freedom fighter, his beliefs diverged greatly from Mahatma Gandhi’s. Gandhiji’s Non-Cooperation Movement included Netaji as a member. The Azad Hind Fauj was another name for Netaji’s Indian National Army. Early in 1942, Indian soldiers in Germany gave him the name Netaji. Ever since, he’s been referred to by the common name Netaji. On August 18, 1945, Netaji Subhas Chandra Bose perished in a plane crash in Taiwan.

Netaji Subhash Chandra Bose Essay in Hindi

Below we have provided an essay on Netaji Subhash Chandra Bose for students studying in the Hindi Medium.

सुभाष चंद्र बोस (23 जनवरी 1897 – 18 अगस्त 1945) भारत के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे जिनके गैर-समझौतावादी देशभक्तिपूर्ण रवैये ने उन्हें राष्ट्रीय नायक बना दिया। स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाने में उनके असाधारण नेतृत्व गुणों ने उन्हें सम्मानित “नेताजी” का नाम दिया, जिसका हिंदी में अर्थ “सम्मानित नेता” है। सुभाष चंद्र बोस एक भारतीय राष्ट्रवादी थे जिनका भारतीय स्वतंत्रता और विकास में योगदान अतुलनीय है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को दोपहर 12:10 बजे एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस था और उनके पिता जानकीनाथ बोस थे, जो उस समय बंगाल प्रांत के अंतर्गत कटक, उड़ीसा में एक वकील थे।

एक संपन्न परिवार में जन्म लेने के कारण, नेताजी ने ब्रिटिश भारत के कुछ प्रतिष्ठित स्कूलों और संस्थानों में पढ़ाई की। जनवरी 1902 में पाँच वर्ष की आयु में, उन्हें स्टीवर्ट हाई स्कूल में भर्ती कराया गया; कटक (तब इसे प्रोटेस्टेंट यूरोपीय स्कूल कहा जाता था)।

कटक में रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल और कोलकाता में प्रेसीडेंसी कॉलेज कुछ प्रमुख संस्थान थे जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए दाखिला लिया। वह अपने पूरे करियर के दौरान पढ़ाई में बहुत अच्छे थे।

Netaji Subhash Chandra Bose Essay

भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) उत्तीर्ण प्रक्रिया

वर्ष 1919 में, भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में तैयारी करने और चयनित होने के बारे में अपने पिता से किये गये वादे को पूरा करने के लिए नेताजी लंदन चले गये। उनके पिता ने उनकी तैयारी और लंदन प्रवास के लिए 10,000 रुपये भी उपलब्ध कराए हैं।

नेताजी अपने भाई सतीश के साथ लंदन के बेलसाइज पार्क में रुके थे। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय के तहत फिट्ज़विलियम कॉलेज में मानसिक और नैतिक विज्ञान के लिए दाखिला लेते हुए आईसीएस की तैयारी की।

सुभाष का भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में चयन हो गया, फिर भी उन्होंने 23 अप्रैल 1921 को अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और वापस भारत की ओर चल पड़े। आईसीएस से उनके इस्तीफे का कारण, जैसा कि उन्होंने अपने भाई को लिखे एक पत्र में बताया था, यह था कि वह ब्रिटिश सरकार के अधीन काम करने के विरोधी थे। पत्र में उन्होंने आगे कहा- ‘केवल बलिदान और पीड़ा की धरती पर ही हम अपनी राष्ट्रीय इमारत खड़ी कर सकते हैं।’

राजनीतिक जीवन

किशोरावस्था से ही सुभाष चन्द्र बोस रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं और विचारों से बहुत प्रभावित थे। नेताजी के राष्ट्रवादी उत्साह का पहला संकेत तब दिखाई दिया जब उन्हें प्रोफेसर ओटेन पर हमला करने और भारतीय छात्रों पर नस्लीय टिप्पणियों के लिए कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया।

आईसीएस से इस्तीफा देकर, बोस भारत वापस आ गए और पश्चिम बंगाल में “स्वराज” समाचार पत्र शुरू किया। उन्होंने बंगाल प्रांत कांग्रेस कमेटी के प्रचार का कार्यभार भी संभाला। इसके बाद 1923 में, बोस को अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस के सचिव के रूप में भी चुना गया।

1927 में, सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने पं. जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए काम किया।

द्वितीय विश्व युद्ध और भारतीय राष्ट्रीय सेना

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई में धुरी शक्तियों (जर्मनी, इटली और जापान) से मदद मांगी। उन्होंने जर्मनी की यात्रा की और भारत की स्वतंत्रता के लिए सैन्य सहायता और समर्थन की मांग करते हुए एडॉल्फ हिटलर से मुलाकात की। 1943 में, उन्होंने जापान की यात्रा की और भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन किया, जो युद्ध के भारतीय कैदियों और दक्षिण पूर्व एशिया में रहने वाले प्रवासियों से बना एक सैन्य बल था। बोस का नेतृत्व और आईएनए के प्रयास भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख कारक थे और उन्होंने भारतीय लोगों के बीच स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाने में मदद की।

सुभाष चंद्र बोस की विरासत

बोस एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे, और उनके समर्पण और बलिदान ने लाखों भारतीयों को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। वह एक दूरदर्शी व्यक्ति थे जिन्होंने स्वतंत्र और स्वतंत्र भारत की संभावना देखी और इसे हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे।

दुर्भाग्य से, भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने से कुछ महीने पहले, 1945 में एक विमान दुर्घटना में बोस की मृत्यु हो गई। आज, बोस को भारत में एक नायक के रूप में याद किया जाता है और नाम हमेशा भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष का पर्याय रहेगा, और उनके बलिदान और समर्पण को आने वाली पीढ़ियों के लिए याद किया जाएगा।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का सम्मान

स्वतंत्र भारत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपने सबसे महान नायकों में से एक मानता है। उनके निडर नेतृत्व और देश की आजादी के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का सम्मान करने के लिए उनके जन्मदिन, 23 जनवरी को “पराक्रम दिवस” ​​के रूप में मनाया जाता है। कोलकाता में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और दिल्ली में प्रतिष्ठित नेताजी भवन उनकी विरासत को स्थायी श्रद्धांजलि के रूप में खड़े हैं।

Netaji Subhash Chandra Bose Essay

नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक श्रद्धेय स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त थे, जिन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई के लिए समर्थन जुटाने के लिए दुनिया भर में अभियान चलाया। उनकी उद्दंड देशभक्ति को भारतीय राजनीतिक हलकों में हमेशा पसंद नहीं किया गया और यह अक्सर उनकी कुछ राजनीतिक असफलताओं का कारण बनी। हालाँकि नेता जी दिल से एक सैनिक थे, लेकिन मातृभूमि की आज़ादी के लिए लड़ते हुए वे एक सैनिक की तरह जिए और एक सैनिक की तरह ही मर भी गए।

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When was Netaji Subhash Chandra Bose born?

Netaji Subhash Chandra Bose was born in a Kayastha family on 23rd January 1897 at 12:10 P.M.

Who were the parents of Netaji?

His mother’s name was Prabhavati Dutt Bose and his father was Jankinath Bose, who was an advocate in Cuttack, Orissa.

How many times Netaji Subhash Chandra Bose was elected the president of the congress party?

He was elected President of the Indian National Congress twice, first in 1938 at Haripur and then in 1939 at Tripura.

Who gave Netaji title to Subhash Chandra Bose?

He was given the title of Netaji in Germany by Indian soldiers in early 1942. Since then, he has been popularly known as Netaji among people.

When did Netaji Subhash Chandra Bose died?

Netaji Subhas Chandra Bose died on 18 August 1945 in a plane crash in Taiwan.

Ashish Kumar

Hi there, I am Ashish and have completed my education from Science Domain. I have 2 years of experience in content creation, catering to the demands of young students. I provide written content related to NEET, JEE, Board Exams, CLAT, CUET (UG & PG) and management exams in a simple manner. My content provides important insights on several topics in depth.

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Biography of subhash chandra bose in hindi.

Read Subhash Chandra Bose biography in Hindi and Subhash Chandra Bose History in Hindi. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए सुभाष चंद्र बोस की जीवनी हिंदी में। Give Subhash Chandra Bose speech in Hindi or say 10 points about Subhash Chandra Bose in Hindi. Subhash Chandra Bose in information Hindi in 400 words

hindiinhindi Subhash Chandra Bose in Hindi

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ – वह नारा था, जिसने लाखों लोगों को आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने की प्रेरणा दी। यह नारा दिया था सुभाषचंद्र बोस ने, जिन्हें हम हिंदुस्तान के लोग प्यार से नेताजी कहते हैं। सुभाष का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक मशहूर वकील थे, जबकि माँ प्रभावती देवी एक धार्मिक महिला थीं। 1920 में सुभाष ने इंग्लैंड से भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास की, लेकिन इसी बीच भारत में जलियाँवाला बाग कांड हो गया। सुभाष को इससे बहुत ठेस पहुँची और वे ट्रेनिंग के दौरान ही 1921 में भारत लौट आए। यहाँ उन पर महात्मा गांधी का बहुत प्रभाव पड़ा और वे कांग्रेस में शामिल हो गए। वे देश की आजादी के लिए किए जाने वाले आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे। 1930 में वे सविनय अवज्ञा आंदोलन के सिलसिले में जेल गए, लेकिन 1931 में गांधी-इरविन समझौता होने पर उन्हें रिहा कर दिया गया।

सुभाष ने यूरोप में रहते हुए वहाँ के देशों की राजधानियों में अपने केंद्र स्थापित करने का प्रयास किया, ताकि भारत और यूरोपीय देशों के बीच राजनीतिक–सांस्कृतिक संपर्क बन और बढ़ सकें। भारत में प्रवेश करने को लेकर अपने पर लगे प्रतिबंधों की परवाह न करते हुए सुभाष भारत लौटे और एक बार फिर गिरफ्तार हो गए। आखिर 1937 में वे फिर रिहा हुए और अगले साल कांग्रेस के हरिपुरा सत्र के अध्यक्ष बने। इस दौरान उन्होंने अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए एक योजना के अनुसार काम करने पर बल दिया। सुभाष अगले चुनावों में इसी पद पर एक बार फिर जीते। दूसरे विश्वयुद्ध के समय उन्होंने अंग्रेजों को छ: महीने का समय देते हुए कहा कि यदि इस बीच अंग्रेज़ भारत नहीं छोड़ते तो उन्हें विद्रोह के लिए तैयार रहना होगा। सुभाष की इस बात का विरोध होने पर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ एक प्रगतिशील समूह ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ बनाया। जब दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की ओर से लड़ने के लिए भारतीय सेना को भेजा गया, तो सुभाष ने इसका भरपूर विरोध किया। इससे अंग्रेज़ सरकार डर गई और सुभाष को कोलकाता में नज़रबंद कर दिया। जनवरी, 1941 में सुभाष कोलकाता के अपने घर से भाग निकले और अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी पहुँचे।

दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी और जापान अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ रहे थे, इसलिए सुभाष ने उनसे मदद माँगी । 1943 में वे सिंगापुर चले गए और ‘आज़ाद हिंद फौज’ का गठन किया। इसमें अधिकतर युद्धबंदी थे। लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध में जापान और जर्मनी की हार के कारण वह अपने मकसद में सफल न हो सके। माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को सुभाष की ताइवान के ताइपेह के ऊपर विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई, हालाँकि आज तक इसके स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं।

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essay writing on subhash chandra bose in hindi

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सुभाष चन्द्र बोस पर अनुच्छेद | Paragraph on Subhash Chandra Bose in Hindi

essay writing on subhash chandra bose in hindi

प्रस्तावना:

सुभाष चन्द्र बोस देश के महानतम नेताओं में गिने जाते हैं । वे नेताजी के नाम से विख्यात हैं । उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी । मातृभूमि के लिए उन्होने अपनी जान न्यौछावर कर दी । उनके निधन से देश को अपार क्षति हुई ।

उनका जन्म और परिवार:

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक नामक स्थान पर 23 जनवरी, 1897 ई॰ को हुआ था । उनके पिता एक प्रसिद्ध वकील थे । उनका परिवार बड़ा समृद्ध था ।

बचपन से ही उनमे महानता के लक्षण दिखाई देते थे । स्कूल में वे बड़े कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी माने जाते थे । उनका शरीर भी बड़ा पुष्ट था । वे प्रारम्भ से ही उग्र स्वभाव के थे । वे तोड़-फोड़ और हिंसा से परहेज नहीं करते थे । उन्होंने भारतीयो का अपमान करने पर स्कूल के एक अंग्रेज अध्यापक को पीट दिया था । सजा के रूप में उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया ।

उनकी शिक्षा:

कटक के ही एक अन्य स्कूल से उन्होंने मैट्रीकुलेशन परीक्षा पास की । इसके बाद उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया । उन्होंने प्रथम श्रेणी में बीए, की परीक्षा पास की । आगे की पढ़ाई के लिए वे इग्लैण्ड चले गए । वही उन्होने कैखिज विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त की । यही पर उन्होने इण्डियन सिविल सर्विस परीक्षा भी पास की । लेकिन वे ऊँचे पद पर भी अग्रेजो की नौकरी करने को तैयार नहीं थे । वे भारत माता की सेवा करना चाहते थे । अत: उन्होंने आई.सी.एस. के पद से इस्तीफा दे दिया ।

उनका राजनीतिक जीवन:

उन्होंने देश की आजादी के लिए कांग्रेस के आन्दोलनों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया । वे कांग्रेस के फारवर्ड ब्लॉक गुट के नेता थे । 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए । कांग्रेस की नीतियों को लेकर महात्मा गांधी से उनका विरोध हो गया और उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया ।

इसी समय दूसरा विश्व-युद्ध छिड़ गया । सुभाष चन्द्र बोस बड़े कौशल से देश के बाहर चले गए । वे भारत की आजादी में सहायता मांगने जर्मनी जा पहुंचे । हिटलर ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया और भारत को सभी तरह की सहायता करने का आश्वासन दिया । हिटलर ने सुभाष को 2 वर्ष तक सैनिक शिक्षा दिलाई । इसका परिणाम यह हुआ कि वे एक कुशल सेनानायक बन गए ।

इण्डियन नेशनल आर्मी:

जर्मनी में रहते हुए उन्होंने वहीं पर भारतीय युद्ध-बन्दियों तथा जर्मनी और इटली में रहने वाले भारतीयों को लेकर इण्डियन नेशनल आर्मी की स्थापना की । इसके बाद वे जापान चले आए । उन्होंने जापान में भी इण्डियन नेशनल आर्मी बनाई ।

ADVERTISEMENTS:

बहुत-से भारतीय युद्धबन्दियों तथा बर्मा और सुदूर पूर्व के देशों के भारतीयो लेकर उन्होने एक बड़ी सेना खड़ी कर ली । जापान की मदद से उन्होंने इन सैनिकों को युद्ध का प्रशिक्षण दिलाया । उन्होंने युद्ध के आधुनिक हथियार खरीदे । यह सच्वे अर्थों में राष्ट्रीय सेना थी । इसके सैनिकों में मरने-मारने का उत्साह और देश को आजाद कराने का जोश था ।

भारत पर आक्रमण और उनका निधन:

इस सेना को लेकर सुभाष ने भारत की आजादी का बिगुल बजाया । उन्होंने आसाम की ओर से भारत पर हमला कर दिया । प्रारंभ में उन्हें सफलता मिली, लेकिन कुछ दिनो बाद जापान और जर्मनी ने हथियार डाल दिए । उनकी हार ने सुभाष की सेना मनोबल समाप्त कर दिया ।

अंग्रेजो ने अब समूची शक्ति उनके विरोध में लगा दी । फलस्वरूप उनके पैर न टिक सके और वे हथियार डालने को मजबूर हो गए । सुभाष एक वायुयान में जापान के लिये रवाना हो गये । लेकिन रास्ते में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त होकर समुद्र में गिर पड़ा और उनका निधन हो गया ।

उनका चरित्र:

सुभाष चन्द्र बोस बड़े विद्वान साहसी और योग्य व्यक्ति थे । उनका चरित्र बड़ा महान् था । वे आजीवन अविवाहित रहे । उनका व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था । उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति उनके व्यक्तित्व से बड़ा प्रभावित होता था । वे एक कुशल सेनानायक थे । उनको सभी हिन्दू मुसलमान, सिद्ध, ईसाई और ऐंग्लो-इण्डियन सैनिक अवतार मानकर उनकी पूजा करते थे । उनके कहने पर वे आग मे कूदने से भी नहीं हिचकते थे । वे बडे कुशल कूटनीतिज्ञ भी थे । वे बड़े पक्के इरादे वाले व्यक्ति थे ।

यद्यपि सुभाष चन्द्र बोरन अब इस ससार में नहीं है, लेकिन उनका नाम अमर रहेगा । देश के लिए उनका बलिदान कमी भुलाया नहीं जा सकता । उनका नारा था ”तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा ।”

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Nibandh

सुभाष चंद्र बोस जयंती पर निबंध

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रुपरेखा : प्रस्तावना - सुभाष चंद्र बोस जयंती 2022 - सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय - सुभाष चंद्र बोस जयंती क्यों मनाई जाती है - सुभाष चंद्र बोस जयंती कैसे मनाई जाती है - उपसंहार।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमारे देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में में से एक है। इतिहास में सुभाष चंद्र बोस जैसे देशभक्त व्यक्ति बहुत बिरले ही देखने को मिलते हैं। सुभास चंद्र बोस एक ऐसे देशभक्त थे जो सेनापति, वीर सैनिक, कुशल राजनितिज्ञ होने के साथ ही एक कुशल नेतृत्वकर्ता भी थे। उनका जीवन जो देश के लिए समर्पित था वह हम सबके लिए एक प्रेरणा के समान है। इन्हीं देशहित और आजादी के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले महान देशभक्त को भारत ने हर वर्ष 23 जनवरी के दिन सुभाष चंद्र बोस जयंती मनाने का ऐलान किया। इस दिन देशभर में विभिन्न देशभक्ति कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती अथवा सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन बड़े उत्साह के संग मनाया जाएगा। वर्ष 2022 में, सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी, रविवार के दिन मनाई जाएगी। इस वर्ष नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्म की 125वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897, बंगाल प्रान्त के उड़ीसा प्रभाग के कटक शहर में हुआ था। इनकी माता का नाम पार्वती देवी और पिता का नाम जानकी नाथ बोस था। इनके पिता पेशे से वकील थे। जनवरी 1902 में सुभाष चन्द्र बोस ने प्रोटोस्टेट यूरोपियन स्कूल में प्रवेश लिया। इसके बाद इन्होंने रेनवेंशा कॉलिजियेट स्कूल और फिर प्रेसिडेंसी कॉलेज में वर्ष 1913 में मैट्रिक की परीक्षा में द्वितीय श्रेणी प्राप्त करने के बाद प्रवेश लिया। इनका राष्ट्रवादी चरित्र इनकी पढ़ाई के बीच में आ गया जिसके कारण इन्हें स्कूल से निष्काषित कर दिया गया। इसके बाद इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज (कलकत्ता यूनिवर्सिटी) में दर्शन शास्त्र से बी.ए. पूरी करने के लिये वर्ष 1918 में प्रवेश लिया। वर्ष 1919 में ये इंग्लैंड के फिट्ज़विलियम कॉलेज, कैम्ब्रिज स्कूल में सिविल की परीक्षा में शामिल होने के लिए गये। तत्पश्चात सिविल परीक्षा में चौथा स्थान की प्राप्ति के साथ चुन लिये गये लेकिन इन्होंने ब्रिटिश सरकार के अधीन रहकर कार्य करने से मना कर दिया। अंत में सिविल की नौकरी से इस्तीफा (त्यागपत्र) दे दिया और भारत आ गये जहाँ इन्होंने बंगाल प्रान्त की कांग्रेस समिति के प्रमोशन के लिये स्वराज्य समाचार पत्र का प्रकाशन शुरु किया। 1937 में, इन्होंने आस्ट्रिया में एमिली शेंकल (जो आस्ट्रिया के पशु चिकित्सक की बेटी थी) से शादी कर ली। वर्ष 1920-1930 के बीच में ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे और वर्ष 1938-39 में इसके अध्यक्ष चुने गये थे। वो अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के साथ-साथ बंगाल राज्य की कांग्रेस के सचिव के रुप में भी चुने गये थे। वो फॉर्वड समाचार पत्र के सम्पादक बन गये और कलकत्ता के नगर निगम के सी.ई.ओ. के रुप में कार्य किया। वर्ष 1927 में जेल से रिहा होने के बाद में इन्हें कांग्रेस महासचिव के रुप में चुना गया। इन्हें वर्ष 1939 में कांग्रेस से निकाल दिया गया और ब्रिटिश सरकार के द्वारा घर में ही नजर बंद कर दिये गये। फिर वो भारत को ब्रिटिश शासन से आजाद कराने में सहयोंग लेने के लिये जर्मनी और जापान गये। अंत में 22 जून 1939 को अपने राजनीतिक जीवन को फॉर्वड ब्लॉक से संयोजित कर लिया। मुथुरलिंगम थेवर इनके बहुत बड़े राजनीतिक समर्थक थे इन्होंने मुंबई में 6 सितम्बर को सुभाष चन्द्र बोस के मुंबई पहुँचने पर एक बहुत विशाल रैली का आयोजन किया था। वर्ष 1941 से लेकर वर्ष 1943 तक, ये बर्लिन में रहे। इन्होंने "तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा!" जैसे अपने प्रख्यात नारे के माध्यम से आजाद हिंद फौज का नेतृत्व किया। 6 जुलाई 1944 में इन्होंने अपने भाषण में महात्मा गाँधी को “राष्ट्रपिता” कहा था जिसका प्रसारण सिंगापुर आजाद हिन्द फौज के द्वारा किया गया था। उनका एक और प्रसिद्ध नारा "दिल्ली चलो" आई.एन.ए. की सेनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए था। आमतौर पर उनके द्वारा प्रयोग किया जाने वाला एक और नारा "जय हिंद", "भारत की जय हो!" था जिसे बाद में भारत सरकार और भारतीय सेनाओं ने अंगीकृत (धारण) कर लिया था। कुछ समय बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को केवल 48 साल की आयु में ताइवन के निकट एक विमान दुर्घटना में हो गई।

भारत देश का आजादी होने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अहम् योगदान है। उन्होंने अपने क्रांतिकारी कार्यों के तहत भारत में आजादी के ज्वलंत नेतृत्व की भावना बनाये रखा था। उनके द्वारा बनाये गये आजाद हिंद फौज ने देश के विभिन्न हिस्सों को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने का महत्वपूर्ण प्रयास किया था। अपने बेहतरीन कूटनीति के द्वारा उन्होंने यूरोप के कई देशों से संपर्क करके उनसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग देने का प्रस्ताव रखे थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु, लाला लाजपतराय, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद आदि जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। भले ही देश की आजादी के लिए उन्होंने हिंसा का मार्ग चुना था, लेकिन उनके कार्यों का भारत की आजादी में एक महत्वपूर्ण योगदान है। यहीं कारण है कि भारत के आजादी में उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए, 23 जनवरी को उनके जन्मदिन पर सुभाष चंद्र बोस जयंती को पूरे देशभर में उत्साह और देशभक्ति संग मनाया जाता है।

भारत के आजादी में उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए प्रतिवर्ष 23 जनवरी के दिन उनके जंयती के रुप में मनाया जाता है। इस दिन देश के विभिन्न स्थानों पर उनके स्मारकों तथा प्रतिमाओं पर राजनेताओं, विशिष्ट अतिथिगण तथा आम जनता द्वारा माल्याअर्पण किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन विद्यालयों में भी कई प्रकार के देशभक्ति कार्यक्रम का आयोजन किये जाते हैं। जिसमें बच्चों द्वारा रैली निकालने के साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर भाषण तथा निबंध जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन का सबसे भव्य इंतजाम पश्चिम बंगाल में किया जाता है। जहां इस दिन कई तरह के सांस्कृतिक तथा सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, इसके तहत कई तरह के स्वास्थ्य शिविर, प्रशिक्षण शिविर, निशुल्क भोजन शिविर जैसे कार्यों का आयोजन किया जाता है।

सुभाष चंद्र बोस देश के आजादी के लिए अपना सब कुछ त्यागकर अपने देश से दूर रहते हुए निर्वासन की जिदंगी बिताई और सन् 1942 में उन्होंने भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया में आजाद हिंद फौज की स्थापना की। जिसने भारत में अंग्रेजी हुकूमत को कमजोर करने में एक अहम भूमिका अदा की, उनके द्वारा राष्ट्रहित में किये गये इन्हीं कार्यों के लिए आज भी देश के जनता द्वारा उन्हें याद करते है । नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती के अवसर पर देश के विभिन्न जगहों पर देशभक्ति कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है तथा कई क्षत्रों में रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाता है। इसके पश्चात कई क्षत्रों में बच्चों के लिए प्रश्नोत्तरी तथा भाषण प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।

Nibandh Category

Subhash Chandra Bose Essay for Students and Children

500+ words essay on subhash chandra bose.

Subhash Chandra Bose was a great Indian nationalist. People even today know him by love for his country. This true Indian man was born on the 23rd of January in 1897. Most noteworthy, he fought with bravery against the British rule . Subhash Chandra Bose was certainly a revolutionary freedom fighter .

Subhash Chandra Bose Essay

Contribution of Subhash Chandra Bose in the Indian Independence

The participation of Subhash Chandra Bose took place with the Civil Disobedience Movement. This is how Subhash Chandra Bose became part of the Indian Independence movement. He became a member of the Indian National Congress (INC) . Also, in 1939 he became the party president. However, this was for a short time only because of his resignation from this post.

The British put Subhash Chandra Bose under house arrest. This was because of his opposition to British rule. However, due to his cleverness, he secretly left the country in 1941. He then went to Europe to seek help against the British. Most noteworthy, he sought the help of Russians and Germans against the British.

Subhash Chandra Bose went to Japan in 1943. This was because the Japanese gave their agreement to his appeal for help. In Japan Subhash Chandra Bose began the formation of the Indian National Army . Most noteworthy, he did the formation of a provisional government. The axis powers during the Second World War certainly recognized this provisional government.

The Indian National Army attacked the North-eastern parts of India. Furthermore, this attack took place under the leadership of Subhash Chandra Bose. Also, the INA was successful in capturing a few portions. Unfortunately, there was the surrender of INA due to weather and Japanese policies. However, Bose made his Refusal to surrender clear. He escaped on a plane but this plane most probably crashed. Due to this, Subhash Chandra Bose died on 18 August 1945.

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Ideology of Subhash Chandra Bose

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Subhash Chandra Bose saw 2nd World War as a great opportunity. He saw this as an opportunity to take advantage of British weakness. Also, he went to USSR, Germany, and Japan to seek help. He led the INA to the fight against the British. Subhash Chandra Bose was a strong believer in Bhagwat Gita. It was his belief that Bhagwat Gita was a great source of inspiration for the fight against the British. He also held Swami Vivekananda’s teachings in high-esteem.

In conclusion, Subhash Chandra Bose is an unforgettable national hero. He had tremendous love for his country. Furthermore, this great personality sacrificed his whole life for the country.

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Sarat Chandra Bose: Elder brother of Subhash Chandra Bose who dreamed of United Bengal

Describing sarat chandra bose, elder brother of subhas chandra bose who has always dreamed of united bengal, as a true national hero is fitting. his steadfast dedication to india's freedom, crucial role in resisting partition, and significant contributions to the nationalist movement..

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essay writing on subhash chandra bose in hindi

  • Sarat Chandra Bose was the mind behind the legacy of Subhas Chandra Bose
  • Sarat Bose’s contributions to independence were overshadowed by his disagreements with the Congress party
  • Sarat Bose, alongside his brother Subhas, faced imprisonment and detention on multiple occasions

On September 6, 1889, the village of Kodalia in the 24 Parganas district of West Bengal cradled a future luminary, Sarat Chandra Bose. Born just at a distance away from the grandeur of Calcutta, Sarat was the fourth child of Janakinath, a revered lawyer, and Prabhabati Devi, known for their boundless compassion. Their family grew with ten more siblings, among them the cherished Subhas Chandra Bose, each adding a thread to the rich tapestry of their shared legacy.

Born into the storied Bose lineage, where India’s freedom fighters first emerged, Sarat Bose's place as a true national hero is well-deserved.

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JOURNEY OF BECOMING A BARRISTER

Sarat Bose’s formative years in Calcutta unfolded against the backdrop of the early 20th century, when the Congress Party was igniting the flames of patriotism and nationalism that would fuel the freedom struggle.

In the early 1900s, he enrolled in Presidency College, earning both undergraduate and master's degrees in English literature, followed by a law degree from the University of Calcutta.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर 10 वाक्य (10 Lines on Netaji Subhash Chandra Bose in Hindi)

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस बड़े व अग्रणी नेता थे। एक संपन्न परिवार से होते हुए और भारत की प्रशासनिक सेवा का हिस्सा बनने के बावजूद नेताजी से देश की ऐसी स्थिति देखी नहीं गयी। आंदोलन का इतिहास बयां करने के लिए नेताजी द्वारा ‘द ग्रेट इंडियन स्ट्रगल’ लिखा गया। नेताजी दृढ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति थे। उनके राष्ट्रवादी दृष्टिकोण ने उन्हें भारत का नायक बना दिया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर 10 लाइन (Ten Lines on Netaji Subhash Chandra Bose in Hindi)

इस लेख से मैंने आपको नेता जी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से अवगत कराने का प्रयास किया है।

Subhash Chandra Bose par 10 Vakya – Set 1

1) नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक क्षेत्र में 23 जनवरी 1897 को हुआ।

2) अपनी माता प्रभावती के 14 बच्चों में नेता जी 9वीं संतान थे।

3) नेताजी के पिता जानकीनाथ बोस कटक के एक मशहूर सरकारी वकील थे।

4) नेताजी बी०ए० की परीक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी से पास किये।

5) सन् 1920 में नेताजी प्रशासनिक परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त करके उत्तीर्ण हुए।

6) स्वामी विवेकानंद व अन्य से प्रभावित नेताजी 1921 में नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिये।

7) नेताजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर क्रांतिकारी नायकों में से एक थे।

8) भगत सिंह को फांसी होने के बाद इनका गांधीजी से राजनीतिक मतभेद शुरू हो गया।

9) लगभग 40000 भारतीयों के साथ नेताजी ने 1943 में ‘आजाद हिन्द फ़ौज’ बनाया।

10) एक विमान दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को ताइवान में उनकी मृत्यु हो गयी।

Subhash Chandra Bose par 10 Vakya – Set 2

1) नेताजी के महान राष्ट्रभक्ति और बलिदान के सम्मान में 2021 से उनके जन्मदिवस 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाते हैं

2) नेताजी 1920 में सिविल सेवक बने और 1921 में देश सेवा के लिए त्यागपत्र दे दिया।

3) इसके बाद नेता जी स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गये, जिसके लिए सबसे पहले उन्होंने गांधीजी का अनुसरण किया।

4) 1938 में नेताजी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया परन्तु पार्टी के भीतर हालात ऐसे बिगड़े की इन्हें 1939 में पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।

5) गांधी जी से मतभेद और अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद नेताजी ने कांग्रेस के अंदर ही ‘ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक’ नामक नई पार्टी का गठन किया।

6) अपने जीवनकाल में नेताजी कुल 11 बार जेल गए. अंग्रेजों द्वारा उन्हें यूरोप भेज दिया जाता था पर वहां भी उन्होंने अपना कार्य जारी रखा।

7) ऑस्ट्रिया में रहने के दौरान ‘एमिली शेंकल’ नामक ऑस्ट्रियन महिला से 1942 में प्रेमविवाह किया, इनकी एक पुत्री ‘अनिता घोष फाफ’ है जो ऑस्ट्रिया में रहती है।

8) नेताजी ने लोगों से आह्वान किया “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा”, वहीं इन्होंने “दिल्ली चलो” का नारा दिया था और ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ का गठन किया।

9) जापानी सेना के साथ नेताजी ने अंग्रेजों से अंडमान और निकोबार द्वीप को जीता और उनका ‘शहीद द्वीप’ और ‘स्वराज द्वीप’ नाम रख दिया।

10) जापान की हार ने इस सेना को तोड़ दिया, नेताजी रूस से मदद के लिए निकले जिसके बाद वो कभी नहीं दिखें और ख़बर आई की उनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गयी।

10 Lines on Subhash Chandra Bose

नेताजी की महानता का परिचय इसी से मिल जाता है जब स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त वीर सांवरकर द्वारा रखे गये क्रांतिकारियों के सम्मलेन में अध्यक्ष के आसन पर नेता जी का चित्र रख कर आयोजन संपन्न किया गया। पूरा देश नेता जी सुभाष चंद्र बोस के बलिदान का जीवनपर्यंत ऋणी रहेगा।

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